प्रेमिकाएँ

कविताएँ :: सुदीप्ति प्रेमिकाएँ पहले-पहल वे बोलती हैं तो फूल झरते हैं। शुरू-शुरू में जब उनकी नज़रें उठती हैं तो हवाएँ भी दम साध लेती हैं। फिर? फिर और ज़रूरी काम आ जाते हैं। और फिर कई सारे ग़ैरज़रूरी मसले भी उतने ही गंभीर हो उठते हैं। सहज होकर वे कितनी मामूली हो उठती हैं। ●●● पलकों के उठने-गिरने से दिन-रात होते हैं। हथेली के … प्रेमिकाएँ को पढ़ना जारी रखें