कविताएँ ::
सुलोचना वर्मा

sulochana poems in hindi
सुलोचना वर्मा 

दुर्घटना

एक

अपने उस सुनियोजित मृत्य आयोजन के लिए
उसने लिखा सुसाइड नोट किसी निमंत्रण पत्र की तरह
अलग-अलग संबोधन वाले अलग-अलग लिफ़ाफ़े में
एक को रखा मेज़ पर दबाकर श्रीमद्भ्गवद्गीमता से
दूसरे को ज़िला-दंडनायक कार्यालय भेजा परिवार की सुरक्षा के लिए
तीसरा छोड़ आया उसके घर जिसे लोग बता रहे हैं मृत्यु का कारण

हर पत्र में बस इतना ही लिखा कि वह परेशान था बेहद
नहीं लिखा किसी भी पत्र में उसने सटीक कारण आत्महत्या का
वह जानता था नहीं करेगा कोई भी सम्मान उसकी भावनाओं का
कि अलग थे समाज से उसके तय किए हुए रास्ते और मरहले
और नहीं समझ पाते हैं लोग यह शरीर के नष्ट हो जाने से पहले

देश में अब नहीं होती हत्याएँ,
न जाने क्यूँ बढ़ती ही जा रही हैं दुर्घटनाएँ
कृष्ण को पूजने वाले देश में इन दिनों
गीता से दबाए जा रहे हैं सुसाइड नोट्स!

दो

अपने तमाम दुखों को स्थगित करने के लिए
कूद गया सिउरी पुल से बूढ़ी गंडक के जल में
प्रेम में समाज से परास्त अठारह बरस का वह लड़का
फिर हो उठा आतुर नदी का मटमैला जल
उसके शरीर में प्रवेश करने के लिए
मरता रहा पीकर बूढ़ी गंडक का पानी वह गटागट
बढ़ता घनत्व शरीर का डुबाता रहा उसे मोक्ष के जल में
जब बंद हुई प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर की
और शुरू हुआ अपघटन,
क्या देख पाई थी उसकी आत्मा
कि जिस समाज के एक चंद्र खंड के समक्ष
वह था नत ज्योत्स्ना के उत्सव में करते हुए प्रतीक्षा
मन ही मन मिलन तिथि के पूर्णिमा की
उस समाज की विवेचनाओं में सघन थी अमावस्या की कालिख

सावधान! प्रेम इस समाज में वह लक्ष्मण रेखा है
जिसे पार करते ही घट सकती है कोई भी दुर्घटना!

तीन

तुम प्रेम में भी मर सकते थे लड़के
तुमने जल को क्यूँ किया कलंकित!
तुम उठा सकते थे जल से शब्द नदी के वक्ष से
और रख सकते थे अपनी प्रियतमा की आँखों में
फिर ले सकते थे ताप उन आँखों के दीए से
आजीवन अपनी शीतल आँखों में!

देखो तो लड़के! आज नदी है, जल है, प्रियतमा है
बस एक तुम ही नहीं हो कहीं भी
दर्ज होकर रह गए हो तुम प्रियतमा की स्मृति में
एक अप्रत्याशित दुर्घटना की तरह!

चार

समाज से निराश और कितनी युवा लाशों को ढोने के बाद
आप लिख सकेंगे अपनी गौरवगाथा हे वीरो!
देखिए कहीं लज्जित न कर दें आप आदिमानवों को
तोड़कर उनके समस्त पाषाण युगीन कीर्तिमान!

फ़िलहाल आपके काँधे पर जिस युवा का शव है
आप उसे लेकर आगे बढ़िए राम नाम के साथ
आगे बढ़ते हुए जब थोड़ा झुकने लगे आपकी पीठ
तो शायद गलने लगे आपके अहंकार का पहाड़
और यदि ऐसा हुआ सचमुच ही
तो देख सकेंगे आप आस-पास प्रकृति और इंसान
माथे के ऊपर तना मिलेगा इंद्रधनुषी आसमान

बंद कीजिए ऐसी युवा लाशों को ढोने का कारोबार
नहीं तो बहुत समय नहीं लगेगा उस दुर्घटना को घटते
जिसके घटित हो जाने से हम पहुँच जाएँगे पुनः पाषाण युग में!

पाँच

दृश्यमान आँखों से ज्योत के बुझते ही वह आती है
जब वह आती है तो कभी हिलाती है साँकल घर का
चूड़ी और कलाई-विहीन हाथों से या फिर कभी
बिना बताए ही करती है अनाहूत प्रवेश अचानक

वह आती है स्त्रीविहीन उस साड़ी की तरह
जिसके आँचल में बँधा होता है गाढ़ा अंधकार
वह आती है पाँवविहीन भारी जूते की तरह
और बेतरह रौंद कर रख देती है जीवन का सिर

फिर करती है चीत्कार मुखविहीन, जिह्वाविहीन, स्वरविहीन कंठ से
जिससे हो उठता है गुंजायमान दिक्-दिगंत करुण रुदन स्वर से
समय से जीवन की दूरी घटते ही वह आने लगती है बिल्कुल पास
और कर देती है अस्थिर जीवन को स्थिर सुनाकर मृत्यु का काव्य

जीवन के पाठ्यक्रम में समय एक शून्य विषय है जहाँ
भोरे-भिनसारे भी हो सकता है अस्त जीवन का सूरज
और हमारे अतीत में जो प्रगाढ़ शून्यता बची रह गई थी
एक दिन वही शून्यता कर लेती है दख़ल हमारा स्थान

मृत्यु एक अवश्यंभावी दुर्घटना है!


सुलोचना वर्मा (जन्म : 1978) सुपरिचित रचनाकार-अनुवादक हैं। उनकी रचनाएँ और अनुवाद-कार्य हिंदी और बांग्ला के प्रतिष्ठित प्रकाशन-स्थलों पर प्रकाशित हैं। उनसे verma.sulochana@gmail.com पर बात की जा सकती है। इस प्रस्तुत से पूर्व उन्होंने ‘सदानीरा’ के लिए मलय रॉय चौधुरी की कविताओं का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद किया था : समग्र जीवन रहो कथाहीन होकर

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