कविताएँ :: शिवदीप तुझे बार-बार चूमना चाहता हूँ देह के पहले अध्याय में तू मेरी गुरुदेव फिर सहेली; पत्नी, प्रेमिका, औरत दूसरी, तीसरी, चौथी घर बाज़ार हाहाकार! बाक़ी सभी अध्याय व्याख्या। मैं तेरी व्याख्या में उलझा कामदेव का वह तीर हूँ जो जन्म लेने से रह गया था किसी अछूत विचार करके। तुझे बार-बार चूमना चाहता हूँ। लेकिन पता नहीं क्यों माँ की एक कथा … सुख सिर्फ़ अनलिखे में होता है को पढ़ना जारी रखें
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