कविताएँ ::
तनुज

तनुज

भूलना

कुछ तो भूल रहा हूँ—
किसी की देह
किसी का नाम
किसी के दुःख
दुःख का धाम

नीम का स्वाद—जीवन
कितना तैयार करता है हमें
नए प्रसंगों के लिए?

अब अगर मौत से तनकर
कभी होती है घबराहट
टालता हूँ ठोकर
घंटों रो-रोकर
कि एक दिन यह भी भूल जाऊँगा
रोया था ख़ूब उस रात—
प्रेमिका के सीने से नहीं
एक सफ़ेद दीवार से सटकर।

कला किसके लिए

कला कला के लिए नहीं
कला प्रेमिका के लिए
सिर्फ़ प्रेमिका के लिए

फ़ैज़ की एक हल्की नज़्म
दे तुम्हें जवान नींद
और मुझको बरकत
तुम्हारी ख़ाली नंगी पीठ से

एक कोमल और पवित्र धातु पर ही
लिखी जा सकती है कविता।

मेरी मुहब्बत पर कभी शक मत करना

मेरी खिलखिलाहट नक़ली नहीं है
मैं विक्षिप्तता को उत्सव नहीं मानता
पर मेरे नगर के बग़ीचे में एक दिन
जब आग लग गई
मैं तुम्हारी नाभि चूमना चाहता था

आटे की तरह मथ रहा था स्तन
एक फूहड़ और ग़लीज़ समाज की आवाजाही में

तुम्हारी आवाज़
उत्साह की चरम-सीमा पर पहुँचकर
मेरा नाम पुकारती हुई
टूटती है मेरी देह में…

रात का शहद
चिपका रह जाता है पैंट पर

मैं अपनी कमर के ऊपर
फैले हुए सितारे
झाड़ता हूँ!

देह-गीत

देह रोज़ पहले से अधिक जर्जर
इसकी दीवारों पर
कबूतरों के आशियाने हैं
और बीट
दार्शनिक हलफ़नामे हैं

मैं अपनी मातमपुर्सी के बाद का सृजित एकांत
न युद्ध हुआ अब तक इस देह के भीतर
न ही किसी ने किया इसमें विकल्प देकर प्रेम
फिर क्यों इतने चमगादड़?

…पिछले अप्रैल से अटका हुआ
उल्टे मुँह लटका हुआ!

अँधेरा इतनी सहजता से
और किधर पाएगा प्रवेश?

काव्य-रचना

कितनी देर तक हाँफा जा सकता है—
कविता सोचते-सोचते
कि फट जाए छाती
किसी भू-स्खलन के मानिंद
और गाड़ दिए जाएँ
नाम उस प्राण-पखेरू के

दिल के ऊपर
समय जमाता है मोटी काई
हम सब खोंसते हैं
अपने कान में मौसमी फूल
और गंध पाकर पराग की
फिर छींकते हैं धूल

जूते के फीते से
बँधी हुई तितलियाँ—
उस नए शहर की सैर करवाती हैं
जिसकी अजनबियत ने
बेहद उकता दिया था हमें।

दुःख

यह पुकार
अब आख़िरी पुकार होगी
और तुम्हारी देह
वह आख़िरी स्त्री
जिसके माध्यम से
छला जाऊँगा मैं

…यह रात अब आख़िरी रात होगी

कविताओं की तबाह हुई संरचना का दुःख
कवि के मर जाने के दुःख से
कम बड़ा तो नहीं

यहाँ हृदय को कुतरा जाएगा—
गुलाब की एक पंखुरी से
यह कहकर—
सपने नींद में नहीं रहा करते हैं
शयनकक्षों में और मादा आसक्तियों से
लिजलिजा गई प्रतिबद्धता
औपनिवेशिक ज्ञान-कोश में
अशांति का रूपक है

मेरा कोई साथी नहीं
मैं किसी सर्कस का हाथी नहीं।


तनुज की कविताएँ गए वर्ष मार्च में पहली बार ‘सदानीरा’ पर प्रकाशित हुई थीं। इस अवधि में उन्होंने अधैर्य और मूर्खताओं को भरपूर स्पर्श किया है। कविताएँ लिखना और कवियों की आलोचना करना उनके लिए बाएँ पैर का काम हो गया है। वह वाम-वैचारिकता के भद्दे प्रदर्शन से वाम-व्यक्तित्वों को कुचलने में व्यस्त रहते हैं। इस सबके बावजूद ‘सदानीरा’ उनके द्वारा भेजी गई बारह कविताओं में से छह कविताएँ प्रकाशित कर रही है, क्योंकि हम बक़ौल प्रणय कृष्ण ‘असीमित चांस’ देने में यक़ीन रखते हैं। तनुज हिंदी की अभी बिल्कुल अभी आई नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : अगर मैं एक किसान पैदा हुआ होता

1 Comments

  1. प्रमोद जून 2, 2022 at 6:26 पूर्वाह्न

    सुंदर कविताएँ हैंl

    Reply

प्रतिक्रिया दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *