बिप्लव चौधुरी की कविताएँ ::
बांग्ला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा

बिप्लव चौधुरी

गोल

हम सब हैं एक ही पृथ्वी के पेट में
इसीलिए हमारे व्यवधान हैं इतने गोलाकार…
पहाड़ मुझसे दूर रहता है क्यूँ…
क्यूँ जगता है अकेला आकाश का वो चाँद?

गिलहरी के साथ होती है बात हमारी
जीवन की शराब पीकर शराबी की बहकी हुई बातें

लगभग काला हो चुका जीवन एक दिन था सफ़ेद पन्ना
शहर के दावानल ने जलाकर ख़ाक किया हमारा लिखा हुआ

वृक्ष लोक

सामान्य लोक से पहुँचना चाहता हूँ कहीं। जाता हूँ नदी के निर्जन
तट पर। मैं लहरों की ओर देखता रह गया और संध्याकाश में उग
गया तारा। जल में देखता हूँ उसका प्रतिबिम्ब।

कभी निश्चल नहीं हुए मेरे दोनों पाँव। कीचड़, रक्त में सने हुए।
धुल जाएगा सब अगर मेघों ने दी बारिश। शायद हरे पत्ते ही
निकलेंगे मेरे शरीर से। किसी अरण्य का वृक्ष होकर ज़िंदा
रहूँगा मैं।

किताब

देर तक बैठकर पढूँगा तुम्हें
नर-नारी के प्रेम के बीच
रात के स्टेशन या दीप्र मैदान में,
मछलियों की तैराकी से लेकर पंछियों की उड़ान तक—
अब तक नहीं जान सका जो
आज जान लूँगा उन सबके माने।

मुझे

एक दिन
एक चिड़िया के बराबर
उड़ते हुए देखा जाएगा।

तुम्हें

लगता है पृथ्वी में समस्त दृश्य ही है पुनरावृत्तियाँ का
मनुष्य रहेगा बैठा, घास पर उसका प्रेम
छिलके उतारे हुए समस्त मूँगफली के हृदय-हृदय में
स्वयं को स्थापित करता रहेगा।

भ्रूण-हत्या के बाद भी

ज़िंदा हूँ
ज़िंदा रहूँगा
कम से कम उतने दिन ज़िंदा रहा जा सकता है
दिन भर में अगर हो
एक शिशु के साथ मुस्कान का विनिमय…

वृक्ष

यह छाया, सुनिविड़ संतान है तुम्हारी
और फल—तुम्हारा पतन;
जगत-संसार पाता है परिपूर्ण स्वाद तृप्ति का।
उसके भी भीतर है बीज—कुंडली मारकर बैठा प्राण

दिगंत की ओर और भी संभावनाएँ हैं।

पाप

आगामी वसंत में हो सकता हूँ मैं और भी अधिक नष्ट—
रहस्यमय प्रकाश, प्रीतिमय पाप की प्रतीक्षा से
समुद्र-सिंधु की नशीली आँखें
जासूसी कहानियों की तरह रौशनी जलाकर अगर
मुझे समझाए यह पथ, नश्वरता सब
पिछले जीवन के मोड़ पर रुक गई है
फिर भी मैं नहीं समझता हूँ कुछ भी,
सिर्फ़ जानता हूँ आगामी वसंत में
और कई पाप ख़ूब आंदोलित होंगे।

मूर्ति

लिखा है तुम्हारा नाम, बड़े कष्ट से काटा है पत्थर
रक्त से इसीलिए भीग गए मेरे हाथ;
मुझ अकेले के नहीं, पृथ्वी के सभी प्रेमियों के
भीतर है विनिद्र एक भास्कर का घर।

वे ही लोग तुम्हारी मूर्ति गढ़ लेते हैं रोज़, चक्के पर उठा लाना
किसी युग के प्राचीन पत्थर से तुम्हारे सादृश्य, प्राण
प्रकाशित हो कह उठ कहता है हमारे हाथ खनन के कार्य में सिर्फ़
मुक्त होते रहते हैं…

सुनाई देता है मिट्टी के बहुत नीचे टूटने का मर्मभेदी स्वर
यह जानकर कि मुझ अकेले का हाथ सिर्फ़ मुझ अकेले का नहीं है
पृथ्वी की कोई मूर्ति नहीं है चिरस्थायी।

प्राक्तन

सिरहाने मृत्यु की छाप नहीं आती है जब तक
उससे पहले जानता हूँ तुम नहीं रुकोगी स्मृति।

जिसे अभिज्ञता समझता हूँ किसी भूल-सी प्रकाशित होती है सुबह में।
तुम एकक ही हो या फिर दूर से वह भी चली आती है,

मेरी बाहु का भार सँभाले रखती है टेबल के ऊपर।


बिप्लव चौधुरी बांग्ला कवि हैं। बांग्ला से अपरिचित और कभी-कभी परिचित भी उनके नाम से परिचित नहीं हैं। हिंदी में यह उनकी कविताओं के प्रकाशन का प्रथम अवसर है। ‘सदानीरा’ ने सुलोचना वर्मा से कुछ माह पूर्व बिप्लव चौधुरी की कविताओं के बांग्ला से हिंदी अनुवाद के लिए आग्रह किया था। सुलोचना ने बिप्लव चौधुरी से संपर्क किया। कवि ने उन्हें अपना कविता-संग्रह भेजा और पत्र लिखकर इस पर आश्चर्य जताया कि हिंदी पट्टी के लोग उन्हें कैसे जानते हैं। बहरहाल, उन्होंने इस अनुवाद को भी देखा और इससे संतुष्ट हुए। इन कविताओं को ‘सदानीरा’ के प्रिंट इश्यू में लेने की इच्छा थी, लेकिन महामारी फ़िलहाल यह संभव नहीं होने दे रही; इसलिए इनके प्रकाशन में अब और विलंब करना उचित नहीं लगता। इस प्रस्तुति के लिए हम बिप्लव चौधुरी और सुलोचना वर्मा दोनों के प्रति ही आभार व्यक्त करते हैं। सुलोचना वर्मा से परिचय के लिए यहाँ देखें : समग्र जीवन रहो कथाहीन होकर │ एक अप्रत्याशित दुर्घटना की तरह

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