गद्य ::
एनरिके विला-मतास
अनुवाद और प्रस्तुति : आदित्य शुक्ल

साहित्य रचने की परिपाटी बहुत पुरानी है. हर भाषा के पास अपने प्रतिनिधि रचनाकार हैं. कविता संभवतः लिखित साहित्य की सबसे पुरानी विधा है. मनुष्यता के ज्ञात इतिहास में लाखों कवियों के नाम अंकित हैं और न जाने कितनों के नाम तो खो गए. कितने कवि अमर हो गए, कितने धूल में मिल गए. समूचे विश्व के कवियों ने कविता के लगभग सभी आयामों को खोलकर रख दिया. हर तरह की कविताएं लिखी गईं. हर तरह के कवि आए. तरह-तरह के प्रयोग किए गए. तरह तरह के साहित्यिक आंदोलन हुए. कबीर और ग़ालिब से लेकर गोएथे और दांते तक, या रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर निकानोर पार्रा तक… कविता में क्या कुछ अब भी अछूता बचा है?
साहित्य के खेमों में अक्सर यह सवाल गंभीरता से उठाया जाता है कि क्या अब भी साहित्य रचना संभव है? आखिर ऐसा क्या है जो रचा जाना बाकी है जबकि हम आज भी ग़ालिब, कबीर, गोएथे, नेरूदा को पढ़ रहे हैं? हालांकि हम अब भी नए तरह के साहित्य रचना के प्रति आशान्वित तो हैं ही! आज भी लिखा जा रहा है और खूब लिखा जा रहा है.
इस बहस का दूसरा पहलू यह भी है कि आखिर साहित्यकार है कौन? वे कवि-लेखक जिन्हें साहित्य के नाम पर बनी संस्थाएं मान्यता दे रही हैं (जिनमें तरह-तरह की राजनीति और स्वार्थपरता सम्मिलित है!) या वे जो एकांतवास में रहकर किसी तरह का साहित्य जी रहे हैं या वे जो लिख सकने के बावजूद लिख ही नहीं रहे? क्या आप ऐसे लोगों को नहीं जानते जो साहित्यिक कीमियागीरी से परिपूर्ण हैं, लेकिन उन्होंने अपना जीवन एकदम सामान्य तरीके से बिता दिया? न कुछ रचने की लालसा की, न प्रकाशित होने की, न ही पुरस्कृत या अमर होने की! आखिर कोई साहित्य रचता ही क्यों है? यह प्रश्न जिसके उत्तर अलग-अलग हैं और साथ ही युग-निरपेक्ष हैं. ऐसे लेखकों की कमी नहीं जिन्होंने साहित्य को त्याग दिया. महान पुर्तगाली कवि फर्नान्दो पेसोआ ने अलग-अलग नामों से साहित्य रचा और कभी प्रकाशन में दिलचस्पी नहीं दिखाई.
इस तरह के ही प्रश्नों पर विचार करते हुए स्पैनिश उपन्यासकार एनरिके विला-मतास ने एक अद्भुत उपन्यास लिखा– ‘बर्तलेबी एंड को.’ …बर्तलेबी, हर्मन मेलविले की एक कहानी का पात्र है जो कोई भी काम दिए जाने पर कहता है, ‘‘मैं इसे नहीं करना पसंद करूंगा.’’ विला-मतास ने इसी विचार को केंद्र में रखते हुए उन लेखकों की किंवदंतियां बहुत ही मजेदार सलीके से सुनाई हैं जिन्होंने साहित्य को त्याग दिया. इस प्रसंग में फ्रेंच महाकवि आर्थर रैम्बो से बड़ा उदाहरण और कौन हो सकता है! विला-मतास के इस उपन्यास के कुछ अंशों का अनुवाद यहां प्रस्तुत है. इन अंशों में वह जॉन कीट्स और आर्थर रैम्बो के साहित्य से मोहभंग को प्रस्तुत करते हैं.

एक
एक कवि, जॉन कीट्स, जो ‘एक कवि’ होने के प्रति जागरूक थे, कविता के बारे में निश्चयात्मक विचारों के लेखक हैं, जिन विचारों को उन्होंने कभी किसी प्राक्कथन या सिद्धांत की किताब में नहीं दर्ज किया बल्कि उन पत्रों में दर्ज किया जो उन्होंने अपने मित्रों को लिखे, विशेषकर वह पत्र जो रिचर्ड वुडहाउस को 27 अक्टूबर 1818 में लिखा गया. इस पत्र में वह एक अच्छे कवि की ‘नकारात्मक’ क्षमता के बारे में बात करते हैं, ऐसा कवि जो खुद को चीजों से दूर रख सके और अपने कथनों के संदर्भ में उदासीन रह सके, जैसे कि शेक्सपीयर के पात्र करते हैं, जो वस्तुओं और स्थितियों से सीधा संवाद स्थापित करके उन्हें कविता में तब्दील कर देते हैं.
इस पत्र में, वह इस बात को अस्वीकार करते हैं कि कवि के पास अपना ‘खुद’ का कुछ होता है, या अपनी कोई एक अलग पहचान, एक स्व जहां से वह निष्कपट होकर कुछ कह सके. कीट्स के लिए, एक अच्छा कवि बहुत हद तक एक गिरगिट की तरह होता है, जो अपना बुरा चरित्र छिपाने में आनंद महसूस करता है (जैसा ‘ओथेलो’ में यागो करता है) या उसे छिपाने के लिए दैवीय रूप (जैसा इमोगेन ‘सिम्बेलीन’ में करता है) में प्रगट होता है.
कीट्स के लिए एक कवि चरित्र, ‘‘सब कुछ है और कुछ नहीं है – उसका कोई चरित्र नहीं है – वह छाया और प्रकाश दोनों का आनंद लेता है […] जो बात एक गुणवान दार्शनिक को अचंभित करती है, वही बात एक गिरगिट कवि को आनंदित करती है.’’ और ठीक इसीलिए ‘‘एक कवि दुनिया में पाए जाने वाली हर एक चीज से कहीं ज्यादा अकाव्यात्मक अस्तित्व है, क्योंकि उसकी कोई अपनी पहचान नहीं है. वह लगातार किसी न किसी देह में आवागमन कर रहा है.’’
‘‘सूर्य’’, वह अपने मित्र को लिखते हैं, ‘‘चंद्रमा, सागर, पुरुष और स्त्री, जो आवेगों से बने जीव हैं, सभी काव्यात्मक हैं, और उनमें कुछ ऐसा गुण हैं जो बदल नहीं सकता, कवि के पास ऐसा कुछ भी नहीं है, कोई पहचान नहीं, वह निश्चय ही ईश्वर की बनाई सबसे अकाव्यात्मक कृति है.’’
यहां कीट्स ‘आत्म-विघटन’ की प्रचलित अवधारणा से काफी पहले उसकी घोषणा करते प्रतीत होते हैं. अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता और आत्मज्ञान की शक्ति से उन्होंने बहुत कुछ पहले ही भांप लिया था. यह तब स्पष्ट हो जाता है जब वह कवि के ‘गिरगिटिया गुण’ की बात करते हैं. वह अपने मित्र वुडहाउस से उस समय के हिसाब से बहुत ही चौंकाने वाला प्रश्न करते हैं :
‘‘अगर कवि का कोई आत्म नहीं होता, और अगर मैं एक कवि हूं, तो इसमें क्या आश्चर्य है अगर मैं कहूं कि मैं अब नहीं लिखूंगा?’’

दो
‘विदा’ एक संक्षिप्त text है जिसे आर्थर रैम्बो ने ‘अ सीजन इन हेल’ (कविता संग्रह) में शामिल किया है, जिसमें कवि वास्तव में साहित्य को अलविदा कहता जान पड़ता है : ‘‘पतझड! हम शाश्वत सूर्य की कामना क्यों करें जब हम किसी दैवीय प्रकाश की तलाश में हैं और उनसे बहुत दूर हैं जो दूसरी ऋतुओं में भी मृत्यु को प्राप्त होते हैं?’’
एक परिपक्व रैम्बो – ‘‘पतझड़!’’ – उन्नीस वर्ष के परिपक्व रैम्बो उसको विदा कह देते हैं जो उनके लिए ईसाइयों का मोह है, कविता के उन भिन्न चरणों को जिनसे वह होकर गुजर चुके हैं, जो उनका दैदीप्त सिद्धांत है और जो संक्षिप्त में उनकी महत्वाकांक्षा है. अपने सम्मुख वह एक नया रास्ता खुला हुआ देखते हैं :
‘‘मैंने नए फूलों की तलाश की, नए सितारों की, नए जीवों की और नई भाषा की तलाश की. मुझे लगा मुझमें अति-प्राकृतिक शक्तियां आ गई हैं. अब देखो! मुझे अपनी कल्पनाओं और स्मृतियों को दफना देना चाहिए! एक कलाकार और कथाकार की दैदीप्यमान प्रतिष्ठा छिन गई है!’’
वह इस कथन पर अंत करते हैं. यह काफी प्रसिद्ध है, और निश्चय ही उच्च गुणवत्ता का विदाई-कथन है : ‘‘हमें अत्यंत आधुनिक होना चाहिए. इस गतिहीन जीवन में : उस निर्णय से चिपके रहना चाहिए जो ले लिया गया है.’’
हालांकि डेरेन ने अपने लिखे हुए पत्र में इस बात का कोई जिक्र नहीं किया है, लेकिन मैं रैम्बो के उस कथन को अधिक महत्व देता हूं जो कि सीधे साफ शब्दों में साहित्य के लिए उनका विदाई-कथन है. यह कथन ‘अ सीजन इन हेल’ की ड्राफ्ट कॉपी में पाया जा सकता है और वह यह है :
‘‘अब मैं यह कह सकता हूं कि कला एक तरह की मूर्खता है.’’
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यह प्रस्तुति जोनाथन डन के अंग्रेजी अनुवाद पर आधृत है. आदित्य शुक्ल हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं. उनसे shuklaaditya48@gmail.com पर बात की जा सकती है.