कविताएं ::
अंकिता आनंद
हस्तकला
मेरे घर की औरतें
हाथों से सांस लेती हैं
उनके दांतों तले आई उनकी जबान
हड़बड़ा कर कदम पीछे हटा लेती है
पलकें अनकहे शब्दों की गड़गड़ाहट
कस कर भीतर बांध कर रखती हैं
कपड़े तह करते,
फर्नीचर की जगह बदलते,
आग से गीली लकड़ी बाहर खींचते,
नारियल तोड़ते…
इन हाथों को प्रशिक्षण दिया गया था
इन पर खुदी लकीरों पर चलने का
सालों का सीखा वे भूल नहीं सकीं
पर जो कर सकती थीं वह किया
लकीरों को खुरदुरा और धुंधला कर दिया
उन रेखाओं से जो उनकी कमाई की थीं
जिनकी अब वे मालिक हैं.
ध्वनि की गति
पिता की दहाड़ में,
मां की सफाई को
जिन बेटों ने डूबते देखा है
उनमें से कुछ अब इतना ऊंचा बोलते हैं
कि खुद को सुन नहीं पाते,
लेकिन कुछ आज भी सुन सकते हैं
अपनी मांओं को,
वे सुनना सीख गए हैं
अपनी प्रेमिकाओं को.
…
ध्वनि तरंगों की गति
वायु से ज्यादा तीव्र
द्रव में पाई गई है.
गंतव्य
चलती ट्रेन
पायदान पर बर्फ पांव
खिड़की की छड़ों पर सुन्न उंगलियां
छत पर पेचीदे आसनों में उलझे कूल्हे…
ये सब
आखिर कहीं न कहीं पहुंचने के लिए.
क्या वाकई
कोई नासमझ मान सकता है
खुद को पहुंचा हुआ–
बगैर सफर किए?
मैं और देश
630 रुपए के होटल के कमरे में एल.सी.डी. टी.वी. थी,
रजाई नहीं.
अपनी चादर को पांव जितना फैलाने की कोशिश में
बंद एल.सी.डी. निहारते मैं सो गई,
कुछ समय के लिए
मैं देश हो गई.
चाय पर चर्चा
बच्चे
एक स्तब्ध चुप्पी में
मेज पर चाय रख चले जाते हैं.
उनके नेता कहते हैं
बच्चों को ‘घर’ के कामों में
हाथ बंटाना चाहिए
…
चाय बेचने वाले बच्चे बड़े बन सकते हैं
पर पहले ‘चाय-चाय’
चिल्लाना पड़ता है.
***
अंकिता आनंद की कविताएं प्रतिष्ठित प्रकाशन-माध्यमों पर देखी गई हैं. कविता के साथ-साथ उनका जुड़ाव नाटकों, सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय अभियान, पेंगुइन बुक्स और ‘समन्वय : भारतीय भाषा महोत्सव’ से भी रहा है. वह दिल्ली में रहती हैं. उनसे anandankita2@gmail.com पर बात की जा सकती है.
बहुत सुंदर भाव….💐💐🎂🎂
अच्छी कविताएँ