एकाग्र :: राही डूमरचीर कविताएँ | कथाएँ | तस्वीरें | अनुवाद कविताएँ कहा बाँसलोई ने मैं उन्हें बाँसलोई के बारे में बता रहा था कैसे उसने हमें सींचा कितना प्यारा है उसका होना, उसका हमारी ज़िंदगी में बहना उनमें से एक, मुझे बार-बार टोके जा रहे थे— ‘बरसाती नदी है न’ ‘साल भर तो पानी नहीं रहता होगा’ ‘छोटी नदी होगी, पहाड़ी नदियाँ जैसी होती…
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जेंडर : कल्पनाशीलता और क्वियर अनुनय
आलेख :: रिया रागिनी — प्रत्यूष पुष्कर
मेरी स्मृतियों के चिह्न कहाँ हैं
कविताएँ और तस्वीरें :: शोभा प्रभाकर
इतनी सारी नई बातें कहाँ रखूँगी
कविताएँ और तस्वीरें :: गार्गी मिश्र
एक कहानी मर रही है और यह शहर सो रहा है
गद्य :: पीयूष रंजन परमार
डिस्सेंट एंड डिज़ायर
फ़ोटो प्रोजेक्ट :: सुनील गुप्ता और चरण सिंह