कविताएँ ::
अमित झा

अमित झा

आरंभ

माँ के मरने से पहले
मातम अपनी जगह ले रहा था
हवा के नीचे
हाँ, हवा के नीचे एक जगह है
कुछ चीज़ें हवा में काग़ज़ की तरह
इधर-उधर खरखरा रही थीं
रिवाज के दूत बेड़ी में
एक कड़ी जोड़ने की तैयारी में थे
आस-पड़ोस अपने घर की दीवार थामने लगे थे
जैसे गाँव में बाढ़ के प्रवेश से पहले होता है

माँ का मायका क़दम पीछे खींच रहा था
जैसे टीले के धँसने से पहले
लोग पीछे हो जाते हैं
ससुराल के कुछ सदस्य पास हो रहे थे
जैसे अपनों के गिरने से पहले
अपनों के क़दम खिंच जाते हैं

डॉक्टर अपना किरदार निभाकर
कहानी के अंत का इशारा कर गया

फिर लोग जुटे
जैसे आपदा के घट जाने के बाद
विध्वंस देखने जुटते हैं
फिर सब हटे
जैसे उत्सव हो जाने के बाद हटते हैं

वहाँ रह गया—
एक खंडहर,
एक बूढ़ी,
कुछ गाय,
कुछ लोग
और उन लोगों की
धीमी और शोकमय गतिविधि।

मैंने यह कविता
देश की स्थिति देखते हुए शुरू की थी।

दुःख

दुःख मैंने रचे हैं
दुःख मेरी कुरूप रचना है

जबकि ईश्वर बताता रहा हमेशा
बेहतर विकल्प

मैंने क्यों चुने दुःख?

बेहोश आग में बार-बार
हाथ दे सकता है
गँवार कोहिनूर बेच सकता है
मूर्ख भगवान-प्राप्ति के बाद भी
भीख माँग सकता है
मैं जीवन में होते हुए
जीवन खोज सकता हूँ
और खोजने के लिए
जीवन को ही खोद सकता हूँ

अगर आप मुझसे मिलें
तो आपको दिख सकता है
मैंने ख़ुद को बना दिया है—
प्रयोगशाला

मेरी देह पर
प्रयोग की विफलता के निशान हैं।

इच्छा

मेरी इच्छा नोचने-पटकने-तोड़ने से बनी है

कोई बच्चा ज़रा-सा मुस्काता
मैं उसके गाल खींच उसे रुला देता

कोई फूल अच्छा लग जाता
मैं उसे तोड़ लेता

अब मैं तुम्हें देखता हूँ
और ख़ुद को फँसा पाता हूँ

अब मैं ये कर न सकूँगा

मैंने जिस पेड़ का फल खाया
उसे कभी देखने नहीं गया
मैं जिस गोद में खेला
उससे कभी ख़ास बात तक नहीं की

मैं लिया और भागा

मुझे जिन्होंने ज़िंदा रखा
मैं उनसे भी लड़ा
उन्हें भी रुलाया

मैंने पाप किए
और भागा
एक और पाप करके

मैं हमेशा भागने के चक्कर में
धर्म का फल लेने के लिए भी नहीं रुका

मैंने जिस लड़की को पसंद किया
उसके बंधन से भागा
उसे प्यार करने से भागा

मैं किसी लड़की को देखता
तो साथ में बुढ़ापा दिख जाता

मैं साथ से भागा

मैं कभी रुका नहीं
मैं कहीं पहुँचा नहीं

पर तुमने मुझे फँसा दिया
अब या तो मैं तुम्हारी शरण में रुकूँगा
या भागते हुए मृत्यु पार कर दूँगा।

जंगल

मुझे लगता है—
इंसान पर सभ्यता का भार
लाद दिया गया है

इंसान भी एक जंतु है
यह मानना कितना सुकून भरा है
आप नहीं जानते

हत्यारा जब जेल से निकलकर हाथ हिलाता है
तब मुझे स्वागत में खड़ी भीड़ और हत्यारा दोनों
मानवता के प्रति निराश कर देते हैं
लेकिन तभी मैं जंगल से
एक हृष्ट-पुष्ट बायसन निकलते देखता हूँ
उसके सींग
उसकी चाल की आग
उसकी सुगठित पेशियों की अकड़

ये सब देखकर मेरी निराशा हट जाती है
और मुझे मानवता पर दया आती है
क्यों इनके नाख़ून छीन लिए गए
क्यों इन्हें मजबूर किया गया अदब सीखने को?
क्या ग़लत किया है इन्होंने
बाघ भी तो शिकार को नोचकर
अपने बच्चों को देता है
और इस बात पर बाघिन को
उस पर प्यार उमड़ता है
कुटिलता में क्या समस्या है
चुपके से ही तो शिकार किया जाता है

जिस तरह बैल के पास सींग हैं
गैंडे के पास मोटी चमड़ी
भैंसे के पास चौड़ापन
अन्य जानवरों के पास नख-पंजे-दाँत…
ऐसे ही मानव के पास बुद्धि है
क्या हुआ अगर उसने नाख़ून काट लिए
और भेष बदलकर शिकार करता है
क्या कई जानवर पत्तों में नहीं छुपते
क्या गिरगिट
शिकार और सुरक्षा के लिए
रंग नहीं बदलते

इस पर आप कहेंगे,
तो क्या इंसान को भी
जानवर हो जाना चाहिए

मैं पूछता हूँ,
क्या इंसान जानवर नहीं है?
क्या वह अपने बच्चे को रोटी
किसी और को मारकर नहीं दे रहा?
क्या वह अपनी मादा को
किसी और को नोचकर नहीं रिझा रहा?
क्या वह जंगल के पेड़-पौधे नहीं चबा रहा?
क्या वह नदी पर पानी पीने आते हिरण पर
छुपकर हमला नहीं कर रहा?

अब आप अगर मुझसे चिढ़ रखते हैं
तो मुझसे ज़रूर पूछेंगे,
जो कमजोर हैं
जैसे विकलांग
उन्हें जंगल में मार दिया गया होता

मैं आपसे पूछता हूँ,
क्या जंगल में बीमार जानवर ज़िंदा नहीं रहते?
और क्या कमज़ोर मनुष्य
उनसे बेहतर तरीक़े से ज़िंदा है?

जंगल में कम से कम मादा-शोषण नहीं है
जंगल में नटुआ हीरो नहीं है
जंगल में यूट्यूबर ज्ञानी नहीं है
जंगल में काइयाँ सरकार नहीं है
जंगल में ट्रंप नहीं है

लेकिन रुकिए?
क्या बस्ती जंगल के बीच ही बसी नहीं है?
क्या बस्ती भी जंगल नहीं है?
क्या राजनीति शिकार की एक कला नहीं है?
क्या अर्थतंत्र भोजन का जुगाड़ नहीं है?
क्या यूरोप के हाथी अफ़्रीका चरके
लैटिन अमेरिका नहीं जाते?
क्या दो गुटों के बीच
शिकार को लेकर लड़ाई नहीं है

हमने बाल काट लिए हैं
मैं इसको भी
एक सामाजिक नहीं जीववैज्ञानिक
इवोल्यूशन मानने लगा हूँ
ये सुकून भरा है!
क्योंकि विरोध करने पर
जंगल में कवि को जेल हो जाती है।


अमित झा की कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। वह राजनीति विज्ञान से स्नातक करने के बाद वर्तमान में बीपीएससी की तैयारी कर रहे हैं। उनसे ajha0825@gmail.com पर संवाद संभव है।

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