कविताएँ ::
अजंता देव
संगीत-सभा
एक
एक साधारण दृश्य को
एक असाधारण संगीत
दिव्य बना देता है
दो
दिल तोड़ना भी
उतना ही मुश्किल काम है
जितना श्रुति-विच्छेद
तीन
कुछ लोग अनजाने में सही सुर लगा देते हैं
मगर रियाज़ के बाद बेसुरे हो जाते हैं
जैसे तलत महमूद का पंचम
चार
पुरानी बंदिशों में वादी-संवादी का ख़याल रखा जाता था
आज-कल
विवादी सुर तार-सप्तक में गाए जाते हैं
पाँच
गायक के गले की नसों में नीला रक्त दौड़ने लगता है
जब वह तार सप्तक के तीव्र निषाद पर पहुँच कर भी षड्ज को छू नहीं पाता
श्रेष्ठता की इच्छा कई बार कला को युद्ध में बदल देती है
छह
बड़े ख़याल विलंबित लय में ही आते हैं
कुछ उस्ताद अति-विलंबित में भी निभा ले जाते हैं
बाक़ी अक्सर छोटे ख़याल से काम चलाते हैं
सात
राग को पूरी शुद्धता से गाना
और प्यार में सारे संकट को झेलना बहुत भारी काम है
देख-सुन कर ही मंच पर उतरना चाहिए
अजंता देव हिंदी की सुपरिचित कवि हैं। उनसे ajantadeo@gmail.com पर बात की जा सकती है। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 17वें अंक में पूर्व-प्रकाशित।