कविताएँ ::
रत्नेश कुमार

रत्नेश कुमार

ख़्वाहिश

भूख हो
तो भूख की बात करे
बताए कि
धरती को बिना नुक़सान पहुँचाए
सबसे बेहतर फ़सल
कैसे उगाई जा सकती है

एक मँझे हुए अर्थशास्त्री की तरह
बेरोज़गारी पर बात करे
लेकिन दोहराए कि
आत्मनिर्भर होने का मतलब
सड़क पर रेहड़ी लगाना नहीं होता

सुरक्षा चाहे कोई
तो कहे कि
क़ानून में समाहित है
सबकी सुरक्षा
और सबके सम्मान की गारंटी
मगर किसी वंचित या दमित की
आह से पहले
भींच ले अपने होंठ दाँतों से
लहूलुहान कर दे

एहतियात बरते
चीज़ों के
अपनी-अपनी जगह होने की

क़लम को क़लम
कुल्हाड़ी को कुल्हाड़ी
और हल को हल की जगह
रहने में मदद करे

फ़क़त बंदूक़ के तसव्वुर से
एतिराज़ करे हमेशा

मुश्किलों का सबसे पहले
कोई देसी हल निकाले
बाद में किसी बाहरी से मदद माँगे

अपनी अवाम में ज़्यादा यक़ीन रखे

मज़हबों को ताक़ीद करे—
महज़ भाई ही नहीं
दूसरे रिश्तों को भी बहाल करने की

हाँ, सबसे ज़रूरी
कि दोस्त होने की नसीहत दे

कुछ ऐसा ही देश का प्रधान मिले
जो इसी तरह अपनी ज़िम्मेदारी निभाए
और नाकाम रहे तो
जवाबदेही के साथ
इस्तीफ़ा दे दे

कितना आसान था सब

क्या कुछ नहीं
कहा जा सकता था
अगर कह देने की
हिम्मत जुटा लेता मन

किस ताक़त को
नहीं लाया जा सकता था
घुटनों के बल
अगर चाह लिया होता

किससे प्यार नहीं
किया जा सकता था
अगर प्यार की हूक
उठी होती सीने में भीतर

ख़ाली हाथ रह गया जीवन
महज़ यह सोचकर
कैसे कहे जा सकते हैं बोल
कैसे लड़ी जा सकती है जंग
कैसे किया जा सकता है प्यार

जबकि कितना आसान था सब
हमारी सोच और कल्पना से भी
कहीं ज़्यादा आसान!


रत्नेश कुमार (जन्म : 1995) की कविताओं के कहीं प्रकाशित होने का यह प्राथमिक अवसर है। वह गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में शोधार्थी हैं। उनसे ratneshkr740@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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