कवितावार में चंद्रकांत देवताले की कविता ::
प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता
तुम्हारी निश्चल आँखें
तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में
प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता
ईथर की तरह होता है
ज़रूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी
दुनिया भर के पिताओं की लंबी क़तार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वाँ नंबर है मेरा
पर बच्चों के फूलों वाले बग़ीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली क़तार में मेरे लिए
मुझे माफ़ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझता था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो
मैं ख़ुश हूँ सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाईं।
चंद्रकांत देवताले (1936-2017) हिंदी के समादृत कवि हैं। यहाँ प्रस्तुत कविता उनकी कविताओं के एक प्रतिनिधि चयन ‘जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा’ (संवाद प्रकाशन, संस्करण : 2008) से साभार है।