कवितावार में एक अनाम कवि की कविता ::
अभी हूं
अभी हूं तिरस्कृत, वंचित, अर्थहीन
अभी हूं अरण्य में झूमता बांस स्वर-विहीन
अभी हूं ठूंठा कुबड़ा पलाश, पत्रहीन
जागूंगा, पहुंचूंगा कल
शिखरों के निकट
भरूंगा स्वर दुखित अरण्य से
बिखेरूंगा रंग-प्रखर, दमित, सुप्त तपते भू-खंड से
अभी हूं राग अनसुना
अभी हूं ज्ञान अनगुना
अभी हूं नियति के हाथों का झुनझुना
कल पिघलेंगे पहाड़ सुनकर उसका करुण राग
कल होंगे निर्वसन, छद्म ज्ञान के जगमग खंड
कल होंगे बौने धराशायी, आज जो हैं मंचासीन
बनूंगा कल भूडोल का कंपन
भूगर्भ ज्वाल का उर्ध्वपुंज
अभी हूं घुमड़ते ज्वार की करवट बैचैन
कल फेंटूंगा काल के कुटिल छद्म
कल होंगे रजतमहल और स्वर्णशिखर सब भूमिसात
कल होंगी अलंघ्य ऊंचाइयां जलमग्न
रचेगी धरती कल फिर नए शिखर
कल होंगे उर्वर मरुक्षेत्र
कल होगा ही प्रस्थान खोज में उसकी
जिसे हमेशा झुठलाया जाता रहा है
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आज से करीब चार वर्ष पूर्व ‘सदानीरा’ के पांचवें अंक में दूधनाथ सिंह ने एक अनाम कवि की कुछ कविताएं और लोरियां प्रस्तुत की थीं. यहां प्रस्तुत कविता इस अंक से ही ली गई है. इस अनाम कवि की रचनाएं दूधनाथ सिंह को कैसे प्राप्त हुईं, इसका जिक्र उन्होंने इस प्रस्तुति की एक संक्षिप्त भूमिका में किया था. इस संक्षिप्त भूमिका को और संक्षिप्त करते हुए कहें तो कह सकते हैं कि इन कविताओं+लोरियों की पांडुलिपि उन्हें ‘वाणी प्रकाशन’ से प्लास्टिक के एक थैले में मिलीं— 80-90 के दशक में जो कम्प्यूटर टाइप चलता था उसी में टंकित. इस संदर्भ में दूधनाथ सिंह आगे कहते हैं, ‘‘मैंने वाणी प्रकाशन के मालिक अरुण महेश्वरी से पूछताछ की. उन्हें इस टंकित पांडुलिपि की याद थी, लेकिन उन्हें इसके कवि के बारे में कुछ भी याद नहीं था. मैंने उनसे कहा कि वह अप्रकाशित पांडुलिपियों की सूची में देखें कि इन अद्भुत कविताओं का रचनाकार कौन है. लेकिन वह, यह बताने में असमर्थ रहे. हालांकि मेरी इसमें इतनी आसक्ति देखकर उन्होंने प्रस्ताव दिया कि वह इसे छाप देंगे. मैं इस प्रस्ताव पर चुप लगा गया.’’
इस प्रस्तुति से पहले ‘सदानीरा’ के संपादकीय में आग्नेय कहते हैं, ‘‘सचमुच इस अनाम कवि की कविताएं हीरे की तरह चमकती हैं. इन्हें पढ़ने के बाद मैं रात भर ठीक से सो नहीं सका. उस अदृश्य अनाम कवि और दृष्ट उपस्थित कविताओं ने मुझे दुःख और अवसाद की एक गहरी भंवर में डाल दिया.’’
बहरहाल, इस घटना के लगभग दो बरस बाद यानी 2016 में इस अनाम कवि की पांडुलिपि ‘एक अनाम कवि की कविताएं’ शीर्षक से राजकमल प्रकाशन से शाया होकर आई. प्रस्तुतकर्ता : दूधनाथ सिंह.