एकाग्र :: राही डूमरचीर कविताएँ | कथाएँ | तस्वीरें | अनुवाद कविताएँ कहा बाँसलोई ने मैं उन्हें बाँसलोई के बारे में बता रहा था कैसे उसने हमें सींचा कितना प्यारा है उसका होना, उसका हमारी ज़िंदगी में बहना उनमें से एक, मुझे बार-बार टोके जा रहे थे— ‘बरसाती नदी है न’ ‘साल भर तो पानी नहीं रहता होगा’ ‘छोटी नदी होगी, पहाड़ी नदियाँ जैसी होती…