कविताएँ ::
अर्पिता राठौर
लड़कियाँ
कवि के
पहले ड्राफ़्ट की भाँति
मान ली जाती हैं—
लड़कियाँ
वे लिखी जाती हैं—
मरोड़कर
फेंक देने के लिए।
कविता
मुझे कविता नहीं आती
वह तो बस कई दफ़े
रोटी सेंकते
नज़र अटक जाती है
दहकते तवे की ओर
और हाथ
छू जाता है उससे
तब उफन पड़ती है—
कविता।
भागी हुई लड़कियाँ
झड़े हुए बालों की तरह होती हैं
भागी हुई लड़कियाँ
उन्हें बुहार दिया जाता है
हमेशा के लिए
भागी हुई लड़कियाँ
होती हैं बदनाम
प्रेम के नाम पर
और प्रेम की ही तरह
भागी हुई लड़कियों को भी
घोषित कर देते हैं
परिवार के मुखिया—
मृत!
और फिर देते हैं उन्हें
मरे हुए पूर्वजों की
ज़िंदा दुहाई…
गेंदा
तुमने
कभी गेंदे का फूल देखा है?
देखा है कि कैसे खिलता है
थोड़ा-थोड़ा…
एक दिन में नहीं लाकर रख देता है
अपने हफ़्तों के किए हुए श्रम को
मेहनत के एक-एक कण को
उभारता है
धीरे-धीरे
इस बीच
गर तुम्हारे सब्र का बाँध टूट जाए
तो घूम आना कुछ देर
गुड़हल के पास
वह ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराता।
जब तक तुम उसे
खिलता-मुरझाता देख आओगे
तब तक गेंदे का ये फूल
इंतज़ार करता रहेगा तुम्हारा
और यूँ ही खिलता रहेगा।
पीपल
सुनो पीपल!
तुमको लिखने की ज़हमत
मैं नहीं उठा सकती
क्योंकि आज तक कभी भी
चार पंक्तियों से आगे
मैं बढ़ी ही नहीं!
पिता
पिता का 49वाँ जन्मदिन
उम्र के साथ उनके चेहरे पर लटकी मुस्कान को
मैंने उनकी उम्र से आधी होते हुए देखा।
माथे की शिकन
जिसने कभी बैठना नहीं सीखा था
वह पिता की उम्र से
दुगुनी हो चुकी है।
रिटायरमेंट तक पहुँचने से पहले ही
पिता मना चुके होंगे
अपनी शिकन की
डायमंड जुबली।
बेईमानी
मैंने अपने जीवन के
सबसे उदास क्षणों पर
कविता तब लिखी
जब उस उदासी को लेकर
मैं सबसे ज़्यादा तटस्थ थी।
अर्पिता राठौर की कुछ कविताएँ यत्र-तत्र प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘सदानीरा’ पर उनकी कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। वह दिल्ली विश्वविद्यालय, इंद्रप्रस्थ कॉलेज से एमए (हिंदी) कर रही हैं। उनसे arpirathor@gmail.com पर बात की जा सकती है।
अच्छी कविताएं, बधाई
शुक्रिया योगेश जी
सहज अभिव्यक्ति की सुंदरता।❤️
शुक्रिया दोस्त❤️
बहुत ही सुन्दर………. रचना
बहुत बहुत शुक्रिया❤️
अर्पिता की कविताओं को समझने के लिए कोई अतिरिक्त दिमाग़ी कसरत नहीं करनी पड़ती। सहजता ही उसकी ताक़त है और सरलता ही ईमानदारी। अर्पिता को बहुत बधाई।
शुक्रिया सर
अच्छी कविताएं हैं
शुक्रिया
बहुत सुंदर कविताएं ।
Very good!
Keep it up👍