कविताएँ ::
सौरभ अनंत
दोहराव
बारिश का आना
बारिश के आने की
याद की तरह है
सारे भीगते पहाड़ी मंदिर
जहाँ हम साथ थे
तुम्हारी स्मृतियों के
खंडहर लगते हैं
प्रार्थनाओं ने हमसे
हमेशा कुछ छीना ही है
मुझे अहसास है
मैं हर बार मंदिरों में
और अकेला पहुँचा हूँ
जैसे इस बार बिना तुम्हारे
बिना तुम्हारे
बारिश किसी प्रार्थना की तरह
दोहराती है ख़ुद को
और मंदिर धुँध में
ओझल होते जाते हैं
एक धुँधला दिन
एक चिड़िया
बारिश में फैलाती है
पंख अपने
और बादल टकराकर टूटता है
बूँदें बिखरती रहती हैं पृथ्वी पर
दूर किसी बस की खिड़की में
झाँकता है एक धुँधला दिन
एक पुराने सफ़र से, तुम्हारे साथ वाले
तुम्हारी उँगलियाँ
लिखती हैं प्रेम उस भाप पर रोज़ ही
और शीशे पर बहते पानी-सा
बहता है पहाड़ एक
एक चिड़िया गाती है गीत, पहाड़ी
सूखते पंख और भीगती आवाज़ में
और वह फाहा बर्फ़ का
अब भी बैठा इंतज़ार में, झाँकता है
उस खिड़की से इस पार
उस पार
एक चिड़िया
बारिश में फैलाती है
पंख अपने
दूर के शहर
वह अपनी
बिखरी ज़ुल्फ़ों में
बारिश… लिए फिरती है!
फिरती है दूर के शहर
कि पहचान न ली जाएँ
प्रेम की बारिशें
इस शहर में
वह अपनी आँखों में समेटे
झील, दोनों ही
एक दूर के शहर
समंदर बनी फिरती है
कविता का शीर्षक ‘बारिश’ है
आसमान के
न जाने कौन से माले से
एक डाकिये के हाथ से गिरकर
फैली हैं चिट्ठियाँ तुम्हारी
धरती हर लिफ़ाफ़ा खोलती है मेरे लिए
अबके सितंबर
तितलियों के परों पर लिखूँगा
जवाब सारे
पढ़ना तुम,
उड़ती तितलियाँ
नए मौसम की
बारिश
डाकिये के झोले हैं बादल
आसमान साल भर लिखता है
कितनी ही चिट्ठियाँ
तुम्हारे नाम की
प्रेम, मिट्टी की कोई गंध है सोंधी
गद्य
सुनो… तुम पहली बारिशों में भीगना न छोड़ना। और देखना एक दिन कोई बूँद अचानक यूँ खुलेगी जैसे मेरी बाँहें तुम्हें गले लगाने खुल जाती हैं। तुम उस दिन जानोगे खुली बाँहें प्रेम में भीगी चिट्ठियाँ होती हैं। बारिश की बूँद की तरह गहरी। और जिस दिन तुम आगे बढ़कर ज़ोर से गले लगोगे तो पढ़ पाओगे कि पानी पर कैसे लिखी होती हैं—प्रेम की इबारतें… और जानोगे खारापन असल में आँसू या समंदर का स्वाद नहीं—वह प्रेम शब्द का पानी पर अनुवाद है।
सौरभ अनंत हिंदी कवि-लेखक और कलाकार हैं। उनकी कहन कविता में प्रेम और सौंदर्य को फिर-फिर बसाने वाली कहन है। उनसे anantsourabh@gmail.com पर बात की जा सकती है।
आपने बहुत दिल की गहराइयों से, अपनी बात को हम सबके सम्मुख रख दिया
बहुत आभार पारुल जी 🌼
वाह! अनुभूतयां, अहसास जैसे शब्द बन गए हैं इन कविताओं में..
वाह, बहुत ही भावसिक्त कविताएँ हैं। 🌼
बहुत खूबसूरत कविताएँ हैं , बार बार पढता हूँ ।