कविताएँ ::
सुमेर
बहुत ज़्यादा दूर
उसने कहा—
इस दूरी का मतलब क्या?
मैंने कहा—
रिश्तों के इस जाल में
अब उस मोड़ पर हूँ
जहाँ से ज़रूरी है एक निश्चिंत दूरी।
सबसे पास प्रेमिकाओं के हूँ
दोस्तों से थोड़ा-सा दूर
भाइयों से बहुत दूर
और जिनसे पलता है पेट,
उनके पास दिखकर,
हूँ बहुत ज़्यादा दूर।
सबसे ज़्यादा तमाशा बनाते हैं भाई
तमाशबीन बनते हैं शुभचिंतक
और निर्लिप्त भाव से देखते,
ग़ायब हो जाते हैं दोस्त।
जिनसे पलता है पेट
उनके लिए आप पैकेट
भरे हैं तब तक जेब
ख़ाली उस दिन ऐब ही ऐब।
प्रेमिकाएँ फिर भी होती हैं
अपने तमाम झूठ लिए
तमाम बहाने लिए
साथ हँसने और रोने के लिए
साथ उठने और सोने लिए
हमेशा कहीं न कहीं
जाती हुई जीवन से
जाकर लौटती हुई जीवन में।
कामनाएँ
कामनाओं के हार में कई मनके थे
एक लंबी डोर के टूटे हुए फूल
कोई नहीं सुनता था कहे को
अनकही के थे जवाब कितने
एक धुन थी
क्या बंदिश नामालूम
रुकी हुई कहानी मुकम्मल होनी
और लंबी थी जो बात
एक कोई ठहराव पर अटक गई।
भाषा
धीरे-धीरे ग़ायब हो जाती है ज़ुबान
उगने लगती है एक हिलती हुई पूँछ
एक बेचैन ग़ुर्राहट से भरता जाता है संसार
पूँछ पर पड़े पाँव का बढ़ता जाता है भार।
वार्ड नंबर तीन की खिड़कियों से ताक रहा
सपनों की सुगंध में अर्द्ध बेहोश एक मूर्ख
दिसावरों की गलियों में भटक रहे हैं उसके सपने
आधी रात अचानक चिल्लाता है वो—
गिरफ़्तार, गिरफ़्तार, गिरफ़्तार।
खो चुके अर्थों से भरने लगे हैं खंडहर
कुछ शब्द हैं
उनकी गड्डमड्ड हो चुकी परिभाषाएँ हैं
सफ़ेद कोट वालों को देखकर चिल्लाता है
इन दंगाइयों को बाँधो
कोई हथकड़ियाँ लगाओ इनको।
आग लगाती भीड़ को एकटक देखता है
सैल्यूट की मुद्रा में दोनों हाथ अपने माथे से लगाकर
गा रहा है कोई यशगीत
कि इन्हीं के होने ने बचा रखी है मनुष्यता।
यह क्या स्थिति है
ये कौन-से सपने हैं
कब तक टिकेंगे अर्थों के खंडहर
कब तक रहेगी ये अर्द्धबेहोशी
कितनी लंबी होगी और ये पूँछ
किससे पूछे जा सकते हैं सारे सवाल
ग़ायब हो चुकी ज़बान की कहाँ है आवाज़…
सुमेर हिंदी कवि-लेखक और कलाकार हैं। उनसे और परिचय तथा ‘सदानीरा’ पर इस प्रस्तुति से पूर्व प्रकाशित उनकी रचनाओं के लिए यहाँ देखें : सबसे ज्यादा प्रेम उसने रास्तों से किया │ मैं मुझे ही देख रहा हूँ │ उदासियों से भर गए हैं बारिशों में धुले हुए दिन