कविताएँ ::
सुशांत कुमार शर्मा
विप्रलब्ध
राह भूल जाओ
तो पता चलती है राहें
ठगे गए लोग
अनुभवी कहलाए
मरने वाले अगर
लौट कर आए होते तो
मनुष्य पा गया होता
अमरत्व
उसी तरह
दुःख जब गहराए तो
प्रेम करना सीखना
सोचना कि मुझ जैसे दुःखी लोग
जब प्रेम पाते होंगे
तब उन्हें कितना अच्छा लगता होगा
बुजुर्गों से सुना है न :
‘सकल वस्तु संचय करो…’
जिस साल किसान पिता ने
खेती में लागत गँवा दी
उस साल हमने सोचा था—
काश आँसुओं से
धान रोपने भर पानी मिल सकता
मैंने अपनी वसीयत में यह लिखा है
और कुछ लोगों ने उसे पढ़कर
अपने हृदय में इकट्ठे किए हैं—
ख़ूब सारे आँसू
ताकि एक दिन जब नदी प्यासी होकर
अपने पुण्यों का फल माँगने आए
तो हम देवताओं की तरह
उसे ख़ाली हाथ न लौटा सकें
उन लोगों को मेरा प्यार देना
कहना,
प्रेम नहीं मिला तो कोई बात नहीं
आँसू सहेजना तो आया न!
कुछ हारी हुई प्रार्थनाएँ
प्रारंभ में न थी
प्रार्थना की ज़रूरत
अ-प्राप्ति ने भीरू बनाया और
हमने बस कहा :
मुझे मत कहना प्रिय
परंतु प्रेम में विश्वास रखना
मेरी देह मत छूना भले
लेकिन इसके स्पर्श को न कहना अनैतिक
मुझे छोड़ जाना कहीं
पर स्वीकार का ढोंग न करना
मेरे अकेलेपन पर तरस न खाना बिल्कुल भी
पर मेरे स्नेह को अपनी दिनचर्या के
बचे-खुचे समय को बहलाने तक
सीमित न करना
कोई रिश्ता न रखना
पर दिखना कहीं अचानक
तो मुस्कुरा देना
और अंत में
सबसे हार कर
हमने प्रार्थना की
तब जाना कि
एक और बार हारना
शेष था।
क्षमा-प्रार्थना
सत्य है मन में भरे
आराधना के भाव
पर तुम्हारे द्वार आते
दुख रहे हैं पाँव
मुझको क्षमा करना!
क्षमा करना
ठीक जैसे वृंत पर खिलकर
वहीं अर्पण की अपने साध ले
झरते हुए
वन के प्रफुल्लित पुष्प को
करते रहे हो!
जो तुम्हारे शीश पर शोभा
नहीं झरने से पहले
जो तुम्हारे पाँव में
बिछ न सका मरने से पहले
गंध जिसकी बस हवा के काम आई
(वह हवा जो थी कभी तुमने बनाई)
फूल भी वह क्या करें
जिसकी नियति में स्वयं तुमने
लिख दिया ठहराव
मुझको क्षमा करना!
तुम अगर पहचानते हो भाव
मुझको क्षमा करना!
सुशांत कुमार शर्मा (जन्म : 1993) की कविताओं के किसी प्रतिष्ठित प्रकाशन स्थल पर प्रकाशित होने का हिंदी में यह प्राथमिक अवसर है। भोजपुरी में उनका एक खंडकाव्य ‘जटायु’ शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के शोध छात्र हैं। उनसे sushantbhu431@gmail.com पर बात की जा सकती है।
बहुत अच्छी कविताएं, बधाई आपको।