कविताएँ ::
इंदु भूषण बाली

‘सदानीरा’ पर कवि-लेखक का परिचय प्राय: अंत में देने की परंपरा रही है, लेकिन आज हम इस परंपरा को तोड़ रहे हैं। क्या करें प्रसंग ही कुछ ऐसा है। हमें कुछ रोज़ पूर्व ‘सदानीरा’ के ई-मेल पर इंदु भूषण बाली की कुछ कविताएँ और उनके कुछ कविता-संग्रहों की पीडीएफ़ फ़ाइल्स प्राप्त हुईं।

इंदु भूषण जी की कविताओं से अधिक उनके परिचय और कविताओं को पुस्तकाकार प्रस्तुत करने के उनके अंदाज़ ने हमें बहुत प्रभावित-विचलित किया। उनके एक कविता-संग्रह का शीर्षक है—‘मैं अद्वितीय हूँ’। इसके दूसरे पृष्ठ पर उन्होंने अपना साहित्यिक उपनाम परवाज़ मनावरी दर्ज करते हुए स्वयं को सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) का पीड़ित पूर्व कर्मचारी बताया है। वह आगे स्वयं को व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन), वरिष्ठ लेखक, पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की सबसे लंबी ग़ज़ल के रचनाकार, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्त्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता तथा भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी बताते हैं। उनकी इस किताब का ISBN : ************* है। संस्करण : 100 प्रतियों का है। समपर्ण यों है :

परम पूज्यनीय माँ स्वर्गीय आज्ञावंती बाली के आशीर्वाद से ‘मैं अद्वितीय हूँ’ कविता-संग्रह पुस्तक अपने बच्चों के विद्यालय टायनी एसपायरेंटस हायर सेकंडरी स्कूल ज्यौड़ियाँ के संरक्षक श्री विरेंद्र कुमार शर्मा व विद्यालय की आदरणीय प्रधानाचार्य श्रीमति सीमा शर्मा को उनके द्वारा मेरे बच्चों को दी गई मुफ़्त शिक्षा व मुझे मेरे बुरे दिनों में दिया गया साहस, प्रेरणा व अनमोल सहयोग को साक्षी मानकर समर्पित करते हुए गर्व अनुभव कर रहा हूँ। सम्माननीयो, जय हिंद! जय हिंद! जय जय हिंद…

सम्माननीयो, जय हिंद! जय हिंद! जय जय हिंद… यह उनकी कविताओं और बातों की स्थायी रूप से अंतिम पंक्ति है। इस पर उनके सैनिक जीवन का प्रभाव प्रतीत होता है।

इसके बाद डॉ. बी.डी शर्मा (पूर्व निदेशक, जम्मू-कश्मीर स्वास्थ्य विभाग, जम्मू) की शुभकामनाएँ हैं :

श्री इंदु भूषण बाली जी को मैं व्यक्तिगत रूप से पिछले 25 वर्षों से जानता हूँ। वह एक मेधावी व्यक्तित्व के स्वामी हैं। वह सदैव अपने शब्दों पर अडिग रहते हैं। वह हमेशा से अपने अधिकारों के लिए संघर्षशील हैं। उनका समस्त जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित है।

वह डोगरी भाषा के एक प्रसिद्ध कवि हैं और बहुत अच्छी कविताएँ लिखते हैं। वह कर्त्तव्यनिष्ठ एवं कर्मशील व्यक्ति हैं।

इसके बाद अपनी तरफ़ से एक ग़ज़ल है, मानो बाक़ी सब कुछ दूसरों की तरफ़ से हो, पढ़िए :

मत दिखाओ ये आँखें
फोड़ भी देंगे ये आँखें

देश मेरा मुझे अति प्रिय
झुका के देखो ये आँखें
शर्म नहीं आती ओ बेशर्म
क्या बेच खाई ये आँखें

अपना समझ छोड़ा तुम्हें
निर्लज्ज तू तेरी ये आँखें

देशद्रोह हमें सहन नहीं है
झुकाई हैं तेरी ये आँखें

इस ग़ज़ल के ठीक बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछा गया है :

क्या आपके राज का पतन आरंभ हो चुका है? चूँकि कार्यकर्ता से लेकर विधायक, सांसद व मंत्री जनता को मात्र यही कहता है कि (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) मोदी जी आपकी समस्याओं का हल करेंगे?

भावार्थ यह है कि वह स्वयं जनता की समस्याओं से बिल्कुल इस तरह कन्नी काट रहे हैं, जैसे राष्ट्रपति को लिखे मेरे प्रार्थना-पत्र पर मेरे स्थानीय कार्यकर्ता, विधायक, सांसद व मंत्री मात्र हस्ताक्षर करने से भी कन्नी काट रहे हैं?

आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी यदि सभी समस्याओं का हल आपने ही करना है। तो यह विधायक, सांसद व मंत्री क्या भात खाने के लिऐ 1 लाख 70 हज़ार रुपए वेतन व नाना प्रकार की सुविधाएँ ले रहे हैं? आप क्यों जनता पर संवैधानिक बोझ बने हुए हो?

आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी आपके पास बहुमत तो है और यदि आपके पास करने की इच्छाशक्ति व निष्ठा भी हो तो लाल बत्ती की तरह प्रधानमंत्री का सीधा चुनाव करा कर इतिहास रच दें ताकि जनता का धन भी बचे और प्रधानमंत्री सीधा जनता की समस्याओं व हर पहलू का उत्तरदायी (जवाबदेह) हो जाए? इसी प्रकार राष्ट्रपति चुनाव का भी सीधा चुनाव करा कर करोड़ों की घूस बंद करवाएँ?

सम्माननीय, जय हिंद! जय हिंद! जय जय हिंद…

इसके बाद विषय-सूची है जिसमें कविताओं के शीर्षक और वे जिस पृष्ठ पर हैं, उस संख्या का उल्लेख है। उनके दूसरे कविता-संग्रहों की पीडीएफ़ फ़ाइल्स में भी कुछ ऐसा ही आलम है।

‘सदानीरा’-संपादक ने एक नज़र ठहरकर इस सबसे गुज़रने के बाद जब इंदु भूषण बाली जी के दिए गए नंबर पर कॉल की, तब यथार्थ के आगे रचना की सीमाएँ ज्ञात हुईं। उनका ईमानदार यथार्थ बहुत भयानक संघर्ष और राज्य तथा समाज द्वारा दी गई यातना से गतिशील रहा है। उसके आगे कोई रचना ठहर नहीं सकती। स्वीकार के महज़ दो शब्दों ने उन्हें अंदर-बाहर से इस क़दर द्रवित कर दिया कि उन्होंने कहा : ‘‘कोई युद्ध करे तो मैं लड़ सकता हूँ, जीत सकता हूँ; लेकिन प्रेम के आगे मैं हार जाता हूँ।’’

इंदु भूषण बाली जी के बारे में हमें जम्मू के कुछ मित्रों ने विचित्र और विरोधाभासी जानकारियाँ दी हैं। लेकिन उनके अनथक और अब तक जारी संघर्ष को थोड़ा श्रम-समय देकर गूगल पर जाना जा सकता है। वह कवियों की जितनी कोटियाँ हैं, उनसे बहुत भिन्न हैं। वह ड्राइंग-रूम पोएट नहीं हैं। वह अकादेमी या विभागों या संघों-संगठनों के कवि नहीं हैं। वह क्या लिख रहे हैं, इसके अच्छे-बुरेपन से परे वह बस अपने जीवन-संघर्ष और देश-प्रेम को दर्ज करने वाले रचयिता हैं।

हमारा अब यह स्पष्ट मानना है कि कवि और उसकी कविता के मूल्यांकन का एकमात्र आधार कभी भी सिर्फ़ श्रेष्ठता नहीं होना चाहिए। रचनाकार कब, कैसे और कहाँ से लिख रहा है; इसे भी एक मुख्य आधार बनाना चाहिए। ‘सदानीरा’ ने गए वर्षों में इस पर काफ़ी विचार किया है और इसके बाद स्वयं को बहुत लचीला किया है। हमने अपने सख़्त मानकों को थोड़ा शिथिल किया है, क्योंकि स्वयं से अलग प्रकाशित होने की विश्वसनीय जगहें हिंदी संसार में अब बेहद कम हैं और इस कम के अपने लक्ष्य, मंतव्य तथा चयन हैं। ऐसे में हमने ख़ुद को आ रहे के लिए बिल्कुल खुला और वेध्य बना लिया है। समय-समय पर हमारा शिकार हुआ है और हो रहा है, लेकिन हम फिर भी नियमित प्रस्तुत हैं। हमने वरिष्ठ और स्थापित कवियों की ठीक-ठाक नई रचनाएँ अस्वीकृत की हैं, पर एक बिल्कुल नए कवि की किंचित कमज़ोर रचनाओं को भी पहली बार ससम्मान और प्रमुखता से प्रकाशित किया है। हमने न पहचाने जा रहे अत्यंत प्रतिभायुक्त कवियों को बार-बार प्रकाशित किया है, क्योंकि सच तो यह है कि उनसे वह कम ‘सदानीरा’ अधिक प्रकाशित हुई है। हमारा केंद्र, लक्ष्य और प्रकाश : अनुवाद, अलक्षित और बिल्कुल नए रचनाकार हैं।

बहरहाल, यहाँ हम इंदु भूषण बाली जी की कुछ कविताएँ दे रहे हैं और अंत में ‘सदानीरा’ की परंपरा के विरुद्ध जाकर उनका पता और फ़ोन नंबर भी; कृपया एक जीवन भर लड़ते आए, लड़ रहे व्यक्ति तक अपना संदेश और प्रेम ज़रूर पहुँचाएँ, ताकि लड़ने में यक़ीन सलामत रहे।

जय हिंद!

इंदु भूषण बाली

धैर्य की आवश्यकता

मेरा लक्ष्य बड़ा था
संभवतः उसकी पूर्ति हेतु
मन-मस्तिष्क
सहित
समय भी अधिक लगना था।

चूँकि विषैले विष का असर
शीघ्रता से समाप्त करना
असंभव था
और
असंभव को संभव करने हेतु
धैर्य की आवश्यकता
तो होती ही है।

सम्माननीयो,
जय हिंद!

व्यथा मेरी

व्यथा मेरी
एक काल्पनिक कहानी नहीं है
यथार्थ है
मेरे अनमोल जीवन का
जिसमें न्याय के नाम पर
कलंकित हुआ है
हर संवैधानिक पद
और अछूता नहीं रहा
अभिशापित होने से
नालसा (नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी)
उच्चतम न्यायालय
व उसका मुख्य न्यायाधीश
एवं मेरे देश का
संविधान?

सम्माननीयो,
जय हिंद!

चरित्र हनन

जब तक मानव
पशुओं और परिंदों की भाँति
घूमते थे नंगे
चरित्र हनन का
इतना प्रचलन नहीं था?

सम्माननीयो,
जय हिंद!

मरने से पहले

बुरा क्या है इसमें कि
मैं जीना चाहता हूँ भरपूर
मरने से पहले?

सम्माननीयो,
जय हिंद!

मैं अद्वितीय हूँ

जी हाँ,
मैं
अद्वितीय
हूँ
क्योंकि
मैं विश्व का
अकेला ऐसा पेंशनभोगी लेखक हूँ
जो पागल नहीं
किंतु भारत सरकार
संविधान के विरुद्ध
मुझे पागल की पेंशन देती है?

सम्माननीयो,
जय हिंद!

क्षमा नहीं करूँगा

कभी किसी ने भी
मुझे सुनने, समझने और परखने का
किया नहीं प्रयास
और सुना दीं मनगढ़ंत कहानियाँ
घर, परिवार, मित्र और पड़ोसियों से लेकर
राज्य और देश भर में
मेरे निक्कमे, नकारा, पागलपन
एवं राष्ट्रविरोधी, राष्ट्रद्रोही की
बच्चों को
न्यायालयों को
इसलिए प्रताड़ना और दंड
दोनों भुगते हैं मैंने
किंतु ठान लिया है अब मैंने
क्षमा नहीं करूँगा
किसी को भी
शनि की भाँति
चूँकि पैदा हुआ था अकेला
और मरना भी है अकेले
भवसागर को भी
करना है पार अकेले ही
फिर करूँ क्यों
युद्ध-विराम
साक्ष्य
हर लड़ाई में
संपूर्ण विजय के पहले भी थे
और अब भी हैं?

सम्माननीयो,
जय हिंद!


संपर्क :

इंदु भूषण बाली
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियाँ,
ज़िला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर,
पिन कोड-181202
मो.: 7889843859
ई-मेल : baliindubhushan@gmail.com

1 Comments

  1. Savita Singh Rajput सितम्बर 24, 2023 at 5:37 पूर्वाह्न

    आदरणीय इंदु भूषण बाली जी को अपने जीवन संघर्ष की अथाह पीड़ा से उपजे शब्दों को कविताओं का संवेदन देने के लिए आत्मीय आभार ! 🙏🏼🙏🏼

    Reply

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