कविताएँ ::
मनीषा जोषी
मैं रहती हूँ चीज़ों के कमरे में
कभी-कभी मेरी आँखें
इस क़दर धोखा खा जाती हैं
कि मुझे लगता है कि कमरे के
एक कोने में रखा हुआ
प्लास्टिक का पौधा
दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है
और उसमें नई पत्तियाँ आ रही हैं।
होता है कभी-कभी ऐसा
जब काफ़ी देर तक
चीज़ों को देखते रहो
देखते ही रहो।
यूँ तो मेरे कमरे में ज़्यादा कुछ सामान नहीं
लेकिन कभी-कभी देखते ही देखते
अचानक कमरा इतना भर जाता है कि
मैं दफ़्न हो जाती हूँ चीज़ों के तले।
कितनी सारी चीज़ें
जो कभी नहीं ख़रीदीं मैंने
लेकिन मेरे देखने भर से
जो हो गई थीं मेरी।
कितनी सारी चीजें
जो खो देने के बाद भी
बनी रही थीं मेरी।
चीज़ें दुगनी हो जाती हैं
उन्हें देखते रहने से
कभी तो इनके रंग-रूप भी
बदलने लगते हैं
कभी चीज़ें टूट जाती हैं
सिर्फ़ देखने भर से
कभी खो जाती हैं
रोज़ देखने के बावजूद
और कभी अचानक से सारी चीज़ें
गिरने लगती हैं मेरे ऊपर इस क़दर
कि मुझे भागना पड़ता है
अपना कमरा छोड़कर।
मैं रहती हूँ चीज़ों के कमरे में
उनकी दया पर
और अब मुझे कोई आश्चर्य नहीं
कि मेरे कमरे में कुछ भी नहीं
बहुत सारी चीज़ों के अलावा।
एवज़
मैंने एवज़ के बारे में तब तक नहीं सोचा
जब तक मेरे पास मूल चीज़ें थीं
पर अब लगता है कि
कहीं मूल चीज़ें ही तो नहीं थीं एवज़?
मेरे कमरे में रखी हुईं
ये सारी प्रतिनिधि चीज़ें
कब प्रतिफल बन गईं
मुझे पता तक नहीं चला।
थाली के ठौर पर चम्मच
और चम्मच के ठौर पर गिलास
गिलास के ठौर पर पानी
और पानी के ठौर पर बर्फ़
बर्फ़ के ठौर पर छुरी
और छुरी के ठौर पर मेरे सुंदर हाथ।
चीज़ें खुद ही बदल लेती हैं
मेरे कमरे में
अपनी नियत जगहें
और इस स्थानापन्न में
मैं ही एवज़
चीज़ों की दया पर
जी रही हूँ
चीज़ों पर आँखें गाड़कर।
चीज़ें मुझे कहती हैं—
मैं वह नहीं हूँ
जो मैं हूँ
और मैं मान लेती हूँ
इनकी हर एक बात
बिना किसी बहस के।
चीज़ें
चीज़ों से
मैंने कभी नहीं पूछा
कि उनका काम क्या है?
दरअस्ल, चीज़ें कभी मेरे काम आती ही नहीं।
कल रात वाइन की बोतल खोलनी चाही
लेकिन वाइन ओपनर का स्क्रू ड्राइवर
बोतल के मुँह पर लगाए गए कॉर्क पर
इस क़दर अटक गया कि बोतल खुलने से रही।
काग वृक्षों के तनों की बाह्य त्वचा से बने हुए
इस कॉर्क में वृक्ष की मृत कोशिकाएँ रहती हैं
और कहते हैं कि इस कॉर्क की उम्र
पचास साल से अधिक होती है।
बोतल पर अटककर रह गए
इस कॉर्क से कई वर्ष अधिक उम्र थी
मेरी वाइन पीने की इच्छा की
लेकिन मैंने कभी कोई दलील नहीं दी चीज़ों को।
चीज़ों से अगर अपेक्षा ही निकाल दी जाए
तो क्या बचता है उनमें
यह सवाल भी नहीं उठाया कभी
क्योंकि मैं जानती हूँ
चीज़ें मेरे सामने रहती हैं
अपने सुंदरतम रूप में भी बेइंतिहा प्रतिशोधी
जैसे कि मेरे सामने पड़ा है
लड़ाई के लिए तैयार
स्टेनलेस स्टील का यह सुंदर
चमकदार वाइन ओपनर।
चीज़ों की बदौलत
मैं ऋण चुका रही हूँ
उन सारी चीज़ों का
जो देखती रहीं चुपचाप
आत्महत्या की तैयारियाँ।
वे सारी चीज़ें
जो पड़ी रहीं ज्यों की त्यों
किसी के हमेशा के लिए
चले जाने के बाद भी।
किसी ने टेबल पर रखे हुए गिलास में से
एक आख़िरी बार थोड़ा पानी पिया होगा।
किसी ने पैंतीस मंज़िला फ़्लैट की खिड़की से
नीचे कूदने से पहले
एक बार फिर पीछे मुड़कर
पूरे कमरे को जी भरकर देखा होगा।
तब अगर गिलास का बाक़ी पानी
फ़र्श पर गिर पड़ता
फ़्लैट में टेबल पर रखा हुआ नाइट लैम्प भी
खिड़की से बाहर कूद जाता तो?
लेकिन चीज़ें ऐसा नहीं करतीं।
चीज़ें कभी प्रतिक्रियाएँ नहीं देतीं।
जीवन हो या मृत्यु
दुनिया बनी रहती है तो बस
इन चीज़ों की बदौलत।
मैं कैसे अदा करूँ शुक्रिया
इन सारी चीज़ों का जो सिर्फ़ देखती हैं
अनेकानेक पूर्व तैयारियाँ।
मेरे कपड़े—मेरे जाने के बाद
नए कपड़े ख़रीदने के साथ
अक्सर दिए जाते हैं कुछ अतिरिक्त बटन
जिन्हें मैं हमेशा रख लेती हूँ सँभालकर।
पुराने कपड़ों के कुछ निकले हुए बटन भी
रखे रहते हैं मेरे पास।
पता नहीं क्यूँ जमा करती हूँ
मैं ये सारे बटन
लेकिन अच्छा लगता है
इन्हें रख लेना।
बटन याद दिलाते हैं
कुछ ऐसे पुराने कपड़े
जो कब के ग़ायब हो चुके हैं
जीवन से
और फिर मैं ढूँढने लगती हूँ
वे पुराने दिन
बक्से में बंद कुछ पुरानी तस्वीरों में।
कई बार सोचती हूँ
क्या होगा मेरे कपड़ों का
मेरे जाने के बाद?
बटन का यह डिब्बा
कभी किसी के हाथ में आएगा
तब बिना कपड़ों की स्मृति के ये बटन
कितने अर्थहीन होंगे
यह मैं सोच भी नहीं सकती।
मेरी नीली क़मीज़ का यह बड़ा-सा बटन
कितना दूर चला जाएगा उस बाज़ार से
जहाँ से ख़रीदी गई थी वह नीली क़मीज़
और कितना क़रीब आ जाएगा मेरे शरीर से
जो नहीं होगा उस बाज़ार में
जो नहीं होगा उस बाज़ार की स्मृति में
जो नहीं होगा स्मृतियों के किसी भी बाज़ार में।
मेरे कपड़े किसी धोबी की दुकान में
गर्म इस्त्री के नीचे करवटें बदलते हुए
ज़िंदा रहेंगे शायद कुछ और वक़्त
मेरे जाने के बाद
तब उन कपड़ों पर लगे हुए बटन
कितने अलिप्त दिखाई देंगे
और मेरे कपड़ों की पत्ते-बूटों की
डिजाइन भी दिखेगी कि
तनी छलरहित।
मेरे जाने के बाद
प्रियजन देखेंगे मुझे तस्वीरों में
कुछेक वक़्त तक
और फिर नहीं रहेंगे वे भी
लेकिन मुझसे मुक्त होकर
कहाँ जाएँगे मेरे कपड़े!
मनीषा जोषी से परिचय के लिए यहाँ देखिए : जन्म के वक़्त मैं रोई थी किस भाषा में अब याद नहीं, पर वही थी शायद मेरी भाषा