कविताएँ ::
सुमित त्रिपाठी

सुमित त्रिपाठी

रंगों के बारे में
प्रयाग (शुक्ल) जी के लिए

नीला

नीला उसके भीतर था
मगर चुप

वह कोमल था
और बेंत की मार से
कराहता हुआ
पीठ पर उभर आता था

नीली काई बन कर
वह उसके मन पर
जम गया था

जिसका अक्स
आसमान में
दिखाई देता था

सलेटी

वह सलेटी के भीतर से
कबूतर को निकाल रहा था

सलेटी अब एक धब्बा भर था
पर कबूतर अब भी
उससे गया नहीं था

और कोई जगह
उसे मालूम न थी

थोड़ा बहुत कबूतर
कस कर सलेटी को थामे था

इस कोशिश में
उसके पंजे लाल हो गए थे

पंख बिखर रहे थे
मानो कैनवस पर सलेटी
एक उड़ान में हो

लाल

चेरी अपने रंगों में
चूर था

मीठे लाल प्रेम में
डूबा हुआ

दूसरे सभी रंग
अर्थहीन थे

तिलिस्मी आसमानों से
लाल
उसमें रिस गया था

सफ़ेद

इतना कठिन था
सफ़ेद को छूना—

वह ख़रगोश के संग
भागता था

हम काग़ज़ को
नहीं रख सके सफ़ेद
सफ़ेद कुर्ते पर
गिर गई दाल

रूई में उसे सहेजते
पर वह घावों को छू कर
सुर्ख़ होता

वर्षों अदृश्य
फिर काले बालों से
निकल कर
हमें डरा देता

श्वेत-कमलिनी की रातें
उसे दूर लिए जाती हैं

वह नहीं होगा
तो कैसे जानेंगे हम
कि कितना
कितना सफ़ेद
था सफ़ेद

हरा

रात एक हरी बेल
तुम्हारे सिर चढ़ गई

हरा तुम्हारा उच्छ्वास
कैनवस पर फैल गया

तुमने एक दिल बनाया—हरा
और रंगों को देखा
लाल भी हरा था
सफ़ेद भी

तुमने बनाए
हरे तालाब में
हरे बगुले और हरी मछलियाँ
जो किसी को दिखाई नहीं दिए

तुमने देखा
आसमान में छुपा हुआ
हरा रंग
और उसे धरती में
मिला दिया

वॉन गॉग का सूरजमुखी

एक

रंग नहीं
पीला
एक अंतराल था

सूरजमुखी
जिससे गुज़रता था

उसे सूर्य पर संदेह था
जिसके पार देखने में
वह असफल था

पीली आश्वस्तियों से ऊब कर
बिना रंग का
एक स्वप्न
वह देखता था

पीली छायाओं से
निकल आना चाहता था

दो

एक झील
बिना प्रेम की—

सूर्यमुखी अपना
प्रतिबिम्ब देखता है

कितना भय उसे
अपने ही
प्रिय रंग से

वह अपनी पंखुड़ियाँ
गिरा देता है

एक पीली मौत
सूर्य से
बरसती है

वह झील पर
झुक जाता है

काला

काला है
अमित अंतर्मुखी

अतीव गहराइयों से पुकारता
और अदृश्य रहता

प्रकाश
जो पुराना पड़ कर
दीवारों पर जम गया है

वह पहनता है मेघ
और चमगादड़ों के पंख

अंतरिक्ष की चुप्पी में
घर बनाता है

वह ज्योतिमय है पुतलियों में
काले को अंधकार कहाँ


सुमित त्रिपाठी हिंदी की नई पीढ़ी से संबद्ध कवि हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : उन्हें बहुत भाते हैं बिना स्तन बिना योनि वाले दिन

1 Comments

  1. Abhishek Pandey फ़रवरी 25, 2024 at 1:40 अपराह्न

    अहा ! बहुत ही बढियाँ कविता।

    Reply

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