कविताएँ ::
रवि यादव

रवि यादव

भाषा की तलाश

भाषा की तलाश में
सुनता रहा कितना संगीत
कितने आलाप-राग भरे
गाये कितने दुःख

इतने ढाढ़स से ज़िंदा रहा
कि शेरखी के फूलों को
जीवन भर कहा कमल
और छोड़ता रहा
न जाने कितना कुछ
एक अनजानी सत्ता के भरोसे

भाषा बोलते मुड़ गई मेरी जीभ
हो गई कुछ आड़ी-तिरछी
मेहनत को कर दिया मेनहत

एक अलसाई भोर जब
चारों ओर बिखरे हुए थे शब्द
तब न जाने पानी की तलाश में
कहाँ भटक रहा था मैं

जिस कास में फूल आ जाने से
नहीं होती बरसात
उसी कास के मैदान में
पानी का भ्रम लिए
भटक रहा था मैं।

अगस्त

सुनसान रास्ते का वह
इकलौता सन्नाटा था
जिसके रंगों पर और रंग
चढ़ता जा रहा था

एक रंग पर
एक ही रंग चढ़ने से
रंग गाढ़ा नहीं हो जाता

रंगों में लिपटा शहर
रंग खोता जा रहा था

बारिश के पानी में
बही जा रही थीं
कुछ मछलियाँ—
चुपचाप!

शोर केवल पानी मचा रहा था

मछलियाँ नहीं कर पा रही थीं विरोध—
पानी की तेज़ धारा का।

अंडे दे रही चिड़िया के
घोंसले के बाहर
घात लगाए बैठे हैं
गिरगिट

घटते पानी की तरह
घट रहा था अगस्त

अपनी बेचैनियों को समेटे
घट रहे थे हम।

घर-घरौना

तारों की दूरियों में भला
कितनी जगहें होती हैं
कितनी जगहें होती हैं
जगहों में!
कितनी जगहों के बाद भी
कितने भरे ख़ाली होते हैं
हम!

इतनी ख़ाली जगहों में
इतने ख़ाली लोग होने के बाद भी
क्यों नहीं भर जातीं जगहें और हम

माटी के घरौने के लिए
चुन लाते थे हम
सबसे अच्छी मिट्टी

एक भरे पूरे घर में रहते हुए भी
बरसात होने पर
मन तड़पता रहता था
ख़ुद के बनाए
माटी के घरौने के लिए

नन्हीं चिड़िया बीन लाती है
खर-खुद्दुर
और बनाती है घोंसला
छोड़ने के बाद
ख़ाली रह जाता है वह भी

भरी-भरी जगहों में ख़ाली-ख़ाली
सब कुछ उतना ही ख़ाली है
जितना भरा हुआ है।

बिछड़ने के बाद

एक ही तार पर बैठे दो पंछी
आपस में बात नहीं करते
क्या सुन पाता होगा तार
उनकी आवाज़ को

इन हाथों में है
उन हाथों की महक
क्या धुलने के बाद उड़ जाएगी!

स्मृतियों के धब्बे
क्या उन जगहों पर
अब भी बरक़रार होंगे
जहाँ साथ बैठा करते थे हम
क्या बारिश ने नहीं धुला होगा उन्हें!

कंधे थोड़े हल्के
हाथ थोड़े ख़ाली
होंठ कुछ सूखे
आँखें कुछ नम लगती हैं

चीज़ों को मिटाना चाहो
वे उभरती जाती हैं… क्यों?

बिछड़ने के बाद
कोई बिछड़ क्यों नहीं जाता
क्यों आ जाता है
वह और क़रीब हमारे
रोज़-रोज़।


रवि यादव नई पीढ़ी के कवि हैं। उनकी कुछ कविताएँ ‘पोएम्स इंडिया’, ‘कृत्या’ और ‘कृति बहुमत’ में प्रकाशित हो चुकी हैं। वह इन दिनों लखनऊ विश्वविद्यालय से हिंदी में शोधरत हैं। उनसे raviyadav7524@gmail.com पर संवाद संभव है।

1 Comments

  1. Akhilesh Singh नवम्बर 15, 2024 at 5:28 पूर्वाह्न

    ‘भाषा की तलाश ‘ बहुत अच्छी कविता है। बाकी कविताएँ भी अच्छी हैं। कहीं कहीं बिंब जितने अच्छे हैं सवाल उतने गहरे नहीं। अगर यह सब शुरुआतें हैं तो स्वागतयोग्य हैं। शुभकामनाएं।

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