कविताएँ ::
विशाल श्रीवास्तव

विशाल श्रीवास्तव

ये एक ख़ास मनोदशा (अवसाद) की कविताएँ हैं, इन्हें एक विशेष अर्थ में अस्वीकृत कविताएँ भी कह सकते हैं; क्योंकि जब और जहाँ इन कविताओं को जिसके लिए लिखा गया था, उसने इन्हें अस्वीकृत कर दिया था।

उदासी

उदासी चली आई है
चुपचाप
इस गर्म और निष्ठुर महीने में
जब देह अकारण टूटती है
मन भी टूटता है उसके साथ

मैंने उसे पहचाना पहले-पहल
मई की दुपहर में उठते
रेत के बग़ूलों को देखते हुए
अचानक बहुत भीतर मन
सूखा और ख़ाली-सा लगने लगा

मैंने सोचा कि उदासी से कहूँ
आओ बैठो
तनिक गला तर कर लो
हम इत्मीनान से बात करेंगे तब
मेरे जीवन के अवसाद के बारे में
उदासी स्वागत है तुम्हारा

जीवन की सुवर्णरेखा है उदासी
दुःख का चंचल स्मित है
फीकी हँसी हँसती हुई
एक साँवली लड़की है उदासी

जब भी कोई प्यार करता है
उदास होता है
ज़रूरी नहीं कि न मिल पाने के कारण ही
मिल लेने के बाद भी कई बार
एक अजनबी-सी गहरी उदासी
उतर आती है जीवन में

कहने और न कह पाने के बीच
उदासियों के असंख्य घने जंगल हैं
जिनमें लापता हैं कितने ही हृदय

कहने से किसी के आहत होने की कल्पना
से कहीं अधिक घातक होता है
न कहने से किसी के जीवन में
नेह का अकाल पड़ जाने का यथार्थ
अब इसे किसी को कैसे बताया जाए
प्रेम आसव से भरा कोई चषक तो नहीं
कि हर बार पीने से होता जाएगा रिक्त

लेकिन यह तो बिना कहे तय है
उदासी हमेशा प्रेम का साथ देगी
बेरुख़ी से विचलित हृदय का तो ज़रूर
जो किसी को दूर जाता हुआ देखता है
और मद्धिम आवाज़ें सुनते हुए
रहता है प्रतीक्षारत

जिससे प्रेम किया हो
उससे उपेक्षित होने पर
माँग लेनी चाहिए मोहलत
नाराज़ होने की नहीं तो
कम से कम
उदास होने की

आख़िर यूँ ही नहीं
चली आई है उदासी
उसका भी तो अपना वैभव है

मृत्यु का सौंदर्य

आह कब सोचा था इससे पहले
तुम इतनी सुंदर भी हो सकती हो मृत्यु
या इतनी चाह हो सकती है तुम्हारे लिए
आओ अपनी पूरी सुंदरता के साथ
मेरी सारी असुंदरता को विलीन करते हुए

कब सोचा था सड़क पर चलते हुए कि
सामने से आता दैत्याकार ट्रक
इतना आकर्षक और शुभचिंतक लग सकता है
आह! कि वह आए और अपने लोहे से एक चुम्बन ले
मेरा सिर लटक जाए शीशे से टकराता हुआ
खिलाता हुआ वहाँ एक रक्त का फूल
जीवित फूलों से जिसे नहीं मना सका
शायद उसे यह मृत्यु का फूल मना पाए

मृत्यु आ जाओ किसी मोक्ष की तरह
अधूरे जीवन को पूरा करते हुए
आओ
मुझे रुकी हुई साँसों का मौन संगीत दो
मन का ख़ालीपन दो
रिक्ति का ऐश्वर्य दो
आओ मृत्यु आओ न
मेरा सारा मैलापन मिटाओ
मुझे एक सफ़ेद चादर की शुभ्रता दो

आओ मृत्यु आओ
अपने सौंदर्य के साथ आओ
मुझे इस मृत जीवन से
मुक्ति देने के लिए आओ

आख़िरी नींद

वह कितनी मीठी होगी
कितनी गहरी और विश्रांति से भरी
उसे नरम बिछौने की दरकार नहीं होगी
वह आहिस्ता आएगी या अचानक
यह भी हमें ठीक-ठीक नहीं पता
कौन से स्वप्नों के पंख होंगे उसके पास
हमें उस पार ले जाने के लिए

आख़िरी नींद में जाते ही
घृणा प्रेम के जल में तैर जाएगी
अँधेरे के उदात्त उजास से चमकती
यह नींद मन के पानी को थिर कर देगी
आख़िरी नींद में सब बेमानी हो जाएगा
कि कौन कितना ठीक था कौन ग़लत
उस नींद में कोई हलचल नहीं मचा पाएगा
सारे आँसू नींद के बुलबुलों में बदल जाएँगे

आख़िरी नींद एकदम एकाकी होगी
कोई उस नींद के सपनों में भी
दाख़िल नहीं हो पाएगा

जिससे मिलना हो उस नींद से पहले मिलो
जिसे सज़ा देनी हो उससे पहले दो
जिसे माफ़ करना हो उससे पहले करो
क्योंकि
आख़िरी के बाद का
कोई आख़िरी नहीं होता
उस नींद की
कोई सुबह नहीं होगी

उस पार से

अंगुलियाँ छोड़ ही दी हैं जब
तो उस पार अकेला जाने दो मुझे
अँधेरे की काली नदी को
हताशा की
डगमग डोंगी से पार करते हुए
वहाँ जहाँ सब कुछ अपार है
लेकिन फिर भी कहते हैं उसे पार

वहाँ से देखूँगा तुम्हें
एक बार फिर से
हँसता और चहचहाता हुआ

तुम्हारी निर्मल हँसी के धागे
बुनते रहेंगे इस कायनात का वस्त्र
तुम्हारी अनूठी ख़ुशबू से महकेगा
धरती का हर संभव बसंत
तुम्हें अर्जित करते देखूँगा
तुम्हारी कामनाओं का अनंत

देखूँगा खिलता हुआ
तुम्हारी मुस्कान का किसलय
अरे यह सृष्टि और वह एक लय
तुम्हारी त्वचा के प्रकाश से चमकता
तरल संसार का यह विरल विस्मय

सब कुछ होगा वहाँ मेरे अस्तित्व के सिवा
धूप पानी किरन पर्वत बादल और हवा
सब तुम्हारे अक्ष पर ही बद्ध होंगे
विनत सम्मान में सन्नद्ध होंगे

फिर भी इतनी मोहलत देना
उस पार से कभी देख पाऊँ
तुम्हारी आँखों की चमक के बीच
एक कोर पर ठहरा हुआ
पानी का क़तरा
भले मत करना मुझ अकिंचन से कभी प्यार
पर दे सको तो देना बस इतना-सा अधिकार

मृत्यु

मृत्यु आएगी
कितना भी चुपचाप
मुझे सुनाई दे रही
अभी से एक पदचाप

वह आएगी तो विश्राम देगी
थके-टूटे पराजित अस्तित्व को
मृत्यु पूरा करेगी मन की साध
कोई क्षमा करे न करे
मृत्यु क्षमा करेगी सारे अपराध

इतना तय है
मृत्यु जब साथ ले जाएगी
तब भी मुड़-मुड़कर
करूँगा मैं तुम्हारे
सिर्फ़ तुम्हारे
स्मित का इंतज़ार


विशाल श्रीवास्तव सुपरिचित और सम्मानित कवि हैं। वह फ़ैज़ाबाद में जन्मे और अभी वहीं रहते हुए एक कॉलेज में हिंदी पढ़ने-पढ़ाने से वास्ता रखते हैं। कविताओं का एक संग्रह ‘पीली रोशनी से भरा काग़ज़’ साहित्य अकादेमी से प्रकाशित हो चुका है। उनसे vis0078@gmail.com पर बात की जा सकती है।

3 Comments

  1. प्रमोद जून 11, 2024 at 10:57 पूर्वाह्न

    बहुत बढ़िया कविताएँ हैं l

    Reply
  2. अरुण सातले, खण्डवा जून 11, 2024 at 4:46 अपराह्न

    बहुत बढ़िया कविताएं।
    जीवन के सच से साक्षात्कार कराती सुंदर कविताएं

    Reply

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