एक किताब, एक कवि और चार कविताएं ::
अनुवाद और प्रस्तुति : अशोक पांडे
यह तेनज़िन त्सुन्दू की किताब है. साधारण अखबारी कागज पर छपी 54 पन्ने की यह किताब उनके नगर धर्मशाला की एक दोस्ताना प्रेस में छपती है. हैंडमेड पेपर वाले आवरण को सद्दी-सुई की मदद से किताब पर नत्थी करते तेनज़िन और उसके दोस्तों को मैंने खुद देखा है. इस किताब की लागत करीब साढ़े नौ रुपए आती है. तेनजिन इसे 50 रुपए में बेचते हैं. यही उनके जीवनयापन का जरिया भी है.
पिछले 20 से अभी अधिक वर्षों से दुनिया-जहान में घूम-घूम कर समाज को अपने निर्वासित देश-नागरिकों की व्यथा से परिचित कराते तेनज़िन त्सुन्दू अपनी हर सभा के बाद इस किताब को बिक्री के लिए प्रस्तुत करते हैं. पुस्तक की कुछ रचनाएं देश-विदेश के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में जगह पा चुकी हैं.
एक अरसे से इस आदमी से दोस्ती रही है. मैंने उसे हमेशा एक-सी पोशाक में देखा है— अनेक बार मरम्मत की हुई नीली जींस, काला कुरता और उनकी प्रतिज्ञा का प्रतीक माथे पर ट्रेडमार्क लाल पट्टा. कपड़े की ऐसी दो जोड़ियां हैं, उसके पास जिन्हें वह बदल-बदल कर पहनता है और बकौल उसके वह खासा ‘स्टाइलिश’ भी दिख लेता है. संपत्ति के नाम पर तार-तार होने को तैयार एक पिट्ठू जिस पर तिब्बत और भारतीय झंडे के स्टिकर्स पैबंद किए गए हैं.
धर्मशाला में जिस घर में वह रहता है उसे रंगज़ेन यानी स्वतंत्रता आश्रम कहा जाता है. हर जरूरतमंद के लिए हर समय खुले रहने वाली उस अन्नपूर्ण कुटी में कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती. वहां उसकी एक बड़ी-सी मेज है जिस पर उसका बाबा आदम के जमाने का कम्प्यूटर है, नेरुदा और फैज़ जैसे कवियों की किताबों का जखीरा है, अनगिनत कागजात हैं, फोटोग्राफ्स और चित्र हैं और उससे सटी उसकी कुर्सी के ऊपर उसकी अनुपस्थिति में भी आजाद तिब्बत के सपने का आभामंडल तैरता रहता है.
बीते दो दशकों में वह हजारों शरणार्थी तिब्बतियों के सपनों की आवाज बन चुका है, जिसकी भागीदारी के बगैर उनके किसी भी आंदोलन-विरोध-सेमिनार या सभा की कल्पना नहीं की जा सकती.
‘कोरा’ की तीस हजार से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं. आशा है पांच-छह सौ प्रतियों के एडीशन में छपने वाले हमारे अपने महाकविगण भी इस प्रस्तुति को पढ़ पाएंगे!
बने रहो तेनजिन!
[ अशोक पांडे ]
मैं थक गया हूं
मैं थक गया हूं
थक गया हूं दस मार्च के उस अनुष्ठान से
चीखता हुआ धर्मशाला की पहाड़ियों से.
मैं थक गया हूं
थक गया हूं सड़क किनारे स्वेटरें बेचता
चालीस सालों से बैठे-बैठे, धूल और थूक के बीच इंतजार करता.
मैं थक गया हूं
दाल-भात खाने से
और कर्नाटक के जंगलों में गाएं चराने से.
मैं थक गया हूं
थक गया हूं मजनूं के टीले की धूल में
घसीटता हुआ अपनी धोती.
मैं थक गया हूं
थक गया हूं लड़ता हुआ उस देश के लिए
क्षितिज
अपने घर से तुम पहुंच गए हो
यहां क्षितिज तलक.
यहां से अगले क्षितिज की तरफ
ये चले तुम.
वहां से अगले
अगले से अगले
क्षितिज से क्षितिज.
हर कदम है एक क्षितिज.
कदमों की गिनती करो
और उनकी संख्या याद रखना.
सफेद कंकड़ों को पहचान लो
और विचित्र अजनबी पत्तियों को.
पहचान लो घुमावों को
और चारों तरफ की पहाड़ियों को.
दुबारा
घर आने की जरूरत पड़ सकती है तुम्हें.
एक प्रस्ताव
अगर आधा नीचे गिरा लें आप अपनी छत
तो बना सकते हैं मेरे वास्ते एक जुगाड़ मंजिल
आपकी दीवारें खुलती हैं अलमारियों में
क्या वहां एक शेल्फ खाली है मेरे वास्ते?
मुझे उगने दीजिए अपने बगीचे में
अपने गुलाबों और कंटीली नाशपातियों के दरमियान
मैं आपके पलंग के नीचे सो जाऊंगा
और आईने में देखा करूंगा टी.वी.
क्या आपको अपने छज्जे से आने वाली ध्वनियां सुनाई देती हैं?
मैं गा रहा हूं तुम्हारी खिड़की पर
अपना दरवाजा खोलो
भीतर आने दो मुझे
मैं आराम कर रहा हूं तुम्हारी देहरी पर
जाग जाओ तो मुझे पुकारना.
शरणार्थी
जब मैं पैदा हुआ
मेरी मां ने कहा
तुम एक शरणार्थी हो.
सड़क के किनारे पर हमारा तम्बू
बर्फ में ढंका हुआ.
तुम्हारे माथे पर
तुम्हारी भवों के बीच
एक “R” खुदा हुआ है
ऐसा कहा मेरे अध्यापक ने.
मैंने उसे खुरच कर निकालना चाहा
और मैंने अपने माथे पर पाई
लाल दर्द की खरोंच.
मैं जन्मजात शरणार्थी हूं.
मेरे पास तीन भाषाएं हैं.
गाने वाली मेरी मातृभाषा है.
मेरी अंग्रेजी और मेरी हिंदी के बीच
मेरे माथे का “R”.
तिब्बती भाषा में इसे पढ़ते हैं–
RANGZEN
रंगज़ेन के माने होता है आजादी.
जिसे मैंने कभी देखा ही नहीं.
*
साल 2001 का पहला आउटलुक-पिकाडोर नॉन-फिक्शन अवार्ड पाने वाले तेनज़िन त्सुन्दू ने चेन्नई से स्नातक की डिग्री लेने के बाद तमाम जोखिम उठाते हुए पैदल हिमालयी दर्रे पार किए और अपनी मातृभूमि तिब्बत का हाल अपनी आंखों से देखा. चीन की सीमा पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर तीन माह ल्हासा की जेल में रखा. उसके बाद उन्हें वापस भारत में ‘धकेल दिया गया.’
70 की दहाई के शुरुआती सालों में मनाली के नजदीक भारत की सरहदों पर बन रही सड़कों पर मजदूरी कर रहे एक गरीब तिब्बती शरणार्थी परिवार में जन्मे तेनज़िन त्सुन्दू की तीन पुस्तकें छप चुकी हैं— ‘क्रॉसिंग द बॉर्डर’, ‘कोरा’ और ‘सेम्शूक : एस्सेज ऑन द तिबेतन फ्रीडम स्ट्रगल’. ‘क्रॉसिंग द बॉर्डर’ कविता-संग्रह है, ‘कोरा’ में कविताएं और कहानियां हैं जबकि ‘सेम्शूक’ में जैसा कि नाम से जाहिर है, त्सुन्दू के निबंध संकलित हैं. 1999 में अपना पहला कविता-संग्रह छापने के लिए उन्होंने अपने सहपाठियों से पैसे उधार मांगे थे, तब वह मुंबई में अंग्रेजी साहित्य से एम.ए. कर रहे थे.
1999 में तेनज़िन ने फ्रेंड्स ऑफ तिब्बत (इंडिया) की सदस्यता ग्रहण की. तब से अब तक वह इस संगठन से जुड़े हैं और वर्तमान में इसके महासचिव हैं. 2002 में उन्होंने मुंबई के ओबेरॉय टावर्स में तिब्बती झंडा और एक बैनर फहराया था जिस पर लिखा था— तिब्बत को आजाद करो. भारत का दौरा कर रहे तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति उसी इमारत में भारत के बड़े व्यापारियों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे. इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान इस कारनामे की तरफ खींचा और जेल में भारतीय पुलिस अफसरान ने अपने अधिकारों की पैरवी करने की उनके हिम्मत रखने की दाद भी दी.
इन दुस्साहसिक कारनामों से घबराई हुई चीनी सरकार ने नवंबर 2006 में चीनी राष्ट्रपति के भारत-भ्रमण के दौरान त्सुन्दू की गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग की. त्सुन्दू को 14 दिन के लिए धर्मशाला में गिरफ्तार रखा गया. उसके बाद 2008 के साल जब बीजिंग में ओलिम्पिक होने थे— त्सुन्दू और उनके साथियों ने तिब्बत चलो आंदोलन का नेतृत्व किया जो बावजूद पुलिस दमन और अत्याचार के अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में बना रहा.
तेनज़िन त्सुन्दू का लेखन द इंटरनेशनल पेन, साहित्य अकादेमी, भारतीय साहित्य, द लिटल मैगजीन, आउटलुक, द टाइम्स ऑफ इंडिया, तहलका, द डेली स्टार (बांग्लादेश), टुडे (सिंगापुर), तिबेतन रिव्यू और अन्य प्रकाशनों से छप चुका है. एक कवि के तौर पर उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तिब्बत का प्रतिनिधित्व किया है.
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यहां प्रस्तुत तेनज़िन त्सुन्दू की कविताएं और उनका परिचय सुप्रसिद्ध हिंदी लेखक-अनुवादक अशोक पांडे द्वारा अनूदित ‘मैं जीवन हूं’ (तिब्बत के क्रांतिधर्मी कवि तेनज़िन त्सुन्दू की कविताएं और गद्य) से साभार है. अशोक पांडे से ashokpande29@gmail.com पर बात की जा सकती है और तेनज़िन त्सुन्दू के बारे में और ज्यादा जानने के लिए tenzintsundue.com की तरफ रुख किया जा सकता है.