क्रम :: ग्रीष्म 2024 समकालीन बांग्ला स्त्री कविता
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नहर से बहर तक—फ़्रॉम द रिवर टू द सी
सामिर अबु हव्वाश की कविता :: अनुवाद : रेयाज़ुल हक़
वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए, जहाँ से जाते हुए तकलीफ़ न हो
एकाग्र :: राही डूमरचीर कविताएँ | कथाएँ | तस्वीरें | अनुवाद कविताएँ कहा बाँसलोई ने मैं उन्हें बाँसलोई के बारे में बता रहा था कैसे उसने हमें सींचा कितना प्यारा है उसका होना, उसका हमारी ज़िंदगी में बहना उनमें से एक, मुझे बार-बार टोके जा रहे थे— ‘बरसाती नदी है न’ ‘साल भर तो पानी नहीं रहता होगा’ ‘छोटी नदी होगी, पहाड़ी नदियाँ जैसी होती…
घोड़े तब तक अधीन हैं जब तक वे दौड़ सकते हैं
एक रात की याद में राख हो जाता है फूल
म्याओ-यी तू की कविताएँ :: अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश पथ सारिया
क्या दुर्लभ को शिकार बनाया जाना चाहिए
शीह पी-शु की कविताएँ :: अनुवाद : देवेश पथ सारिया