नीलमणि फूकन की कविताएँ ::
असमिया से अनुवाद और प्रस्तुति : कल्पना पाठक

नीलमणि फूकन [1933-2023] आधुनिक असमिया कविता के शिखर पुरुष हैं। उनकी कविता में जटिल बिम्बों का संसार अनुभूति के वैशिष्ट्य का भी संसार है, जो किसी काव्यांग की तरह आरोप बनकर प्रस्तुत नहीं होता। असम-जीवन की ख़ूब गहरी और वक्र संवेदनाएँ नीलमणि की कविता में आकर एक ऐसे फूल की तरह खिल उठती हैं, जिसकी सुंगंध पाने की भी एक न्यूनतम पात्रता चाहिए ही चाहिए। हिंदी में शमशेर की काव्य-मुद्राएँ नीलमणि के निकट की मुद्राएँ हैं। उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ और साहित्य अकादेमी जैसे महत्वपूर्ण पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। वर्ष 2023 में उनके देहांत के बाद ही मैंने इन कविताओं का अनुवाद प्रारंभ किया।

— कल्पना पाठक

नीलमणि फूकन

हर बात का कोई न कोई मतलब होता है

हर बात का कोई न कोई मतलब होता है
मान लो प्रेम कविता मिट्टी पानी आग हवा सभी का
काने कुत्ते की भौंक का भी
ख़ून से सनी क़मीज़ की जेब में
चीख़ते एक कीड़े का भी
जब हम अर्थ खोजना शुरू करते हैं
तब हर चीज़ अर्थपूर्ण हो जाती है
ज्योतिषी की दसों अँगुलियों पर बने
नक्षत्रों का भी कोई अर्थ होता है
जैसे बच्चों की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में
तर्कों का एक खेल चलता है
बिल्कुल वैसे ही
मतलब का भी खेल चलता रहता है
आहत शब्द खोजता रहता है
कोई रक्त-मांस का कंठ
प्रेमी और कवियों का
पागलपन भी चलता ही रहता है
शाम का चिहुँकता पत्ता भी ढूँढ़ता रहता है
एक नमकीन जीभ का स्पर्श
बहुत बूढ़ी औरत की हथेली जलाकर
जलता रहता है एक दीपक

हे परम करुणावान् कथावाचक
कृपया मुझे कोई दूसरा अर्थ बताइए
जो उसने इस पीड़ित से नहीं कहा

कुछ देर पहले हम किस बारे में बात कर रहे थे

एक

कुछ देर पहले हम किस बारे में बात कर रहे थे
पत्थर के सख़्त होने के बारे में
पानी के ठंडा होने के बारे में
आग के जलाने के बारे में
मोर के नाचने के बारे में

कैसी रही होगी
पृथ्वी पर पहली सुबह
कड़वा क्यों लगता है
कोई मीठा फल मुँह में डालने पर

रात के ठीक बारह बजने से
चार मिनट पहले
आसमान का
पके अंगारों की तरह जलना

धीरे-धीरे मिट्टी का रेतीली बन जाना
और बाँस के पेड़ों की छाया का राख हो जाना

दो

नहीं, अब तो मुझे
कुछ भी याद नहीं है
कुछ देर पहले तुमने कहा था क्या
कि तुम मुझसे प्यार करती हो

सिर्फ़ इंसानों के लिए
सिर्फ़ भूखे बच्चों के लिए
जो समर्पित है

जो छिपा रहता है समुद्र की तह में
जंगलों और पेड़ों की प्यास में
एक टुकड़ा कोयले में

क्या उसी की बात की थी तुमने मुझसे
उस दिन आधी रात को
चुपचाप आँसू बहाते हुए

तीन

इतने दिनों तक अपना कहने के लिए
एक ज़िंदगी तक नहीं खोज पाया
नहीं खोज पाया ख़ुद की एक मृत्यु

कौन दाँतों से चबाकर
टुकड़े-टुकड़े करता है
दिन और रात को
कैसे पार करूँ मैं
यह लहूलुहान समय

चार

इस धुँधली साँझ में लोग
कौन-सा त्यौहार मना रहे हैं
मृतकों में कौन-कौन आएगा वहाँ

कितनी बार रँभाई गाय-बकरियाँ
कितनी बार ख़ून से लाल होकर
वापस लौटे लोग

जाते समय पीछे मुड़कर क्या देखा उन्होंने
एक टेढ़ा-मेढ़ा सुनसान रास्ता
किसे नहीं देखा

पाँच

हवा की तरह घोड़े
आँगन में कूद रहे हैं
सुनो उनकी हिनहिनाहट

तुम्हारी तरह कम बोलने वाले
एक कवि की
बीती रात मौत हो गई

जो जानता था कि झींगुर की आवाज़ से भी
उसकी कविता में
कोई ज्ञानगर्भित बात नहीं बनती थी

कुछ देर पहले हम किस बारे में बात कर रहे थे
पत्थर के सख़्त होने के बारे में
पानी के ठंडा होने के बारे में
आग के जलाने के बारे में
मोर के नाचने के बारे में

मैंने शयनकक्ष में प्रवेश किया
नीलपवन बरुआ के लिए

मैंने शयनकक्ष में प्रवेश किया
वह वहाँ नहीं था
बिस्तर कुर्सी मेज़ दर्पण छड़ी
सब गहरी नींद में थे
लाल-नारंगी जैसी नींद
शुद्ध शांति की दर्दनाक रोशनी में
कैसा समयातीत समय था!
द्वंद्व विषाद अकेलापन भाव-विक्षोभ
आत्मा के पीड़ायुक्त आनंद में
फलों के बीच फूल बन खिलकर वह
रात में एक साइप्रस का पौधा
घुमावदार एक नीला नक्षत्र
हमारे दिल में सजाकर
सूरज के मुख से
एक टुकड़ा पीलापन लाकर
पके हुए गेहूँ के बीच से
बिना किसी की नज़र में आए
वह विंसेंट चला गया
आसमान में हरे बादल
हरी सड़क पर
वह हमारा ही ख़ून है

तुमने मुझे अपना एक हाथ दिया
वास्को पोपा के नाम

तुमने मुझे अपना एक हाथ दिया
जिससे तुमने घुड़सवार सेना द्वारा रौंदे गए
वसंत के पहले सूरज को उठाया

तुमने धूल हटाई
और शाश्वत यौवन की जयध्वनि को
अपनी आँखों में धारण किया

मैं तुम्हें क्या दूँ
एक चमेली का फूल
अपने कलेजे से चुनकर लाया हूँ

तोड़ लो
अपने उसी हाथ को पहनकर

तुमने मेरे लिए रखी एक मुट्ठी मिट्टी
सूरज की रोशनी जैसी मुट्ठी भर आवाज़ें
और एक टुकड़ा बादल

मैं तुम्हें दूँ क्या
अपने शरीर का रक्त देकर
तुमने लोगों को ऋणी बना ही दिया

तुम्हें पाने के बाद अपनी आँखों में देखा
एक इंद्रधनुष
लोगों के दिलों में एक झील
और बेलग्रेड की सड़कों पर
एक शाश्वत जलती हुई दोपहर

तुमने मुझे अपना एक हाथ दिया
जैसे किसी विद्रोही व्यक्ति की
उपस्थिति की चेतना

लटकते हुए गुलाबी जामुन के दिन

कभी न गूँजने वाले कुछ शब्दों के
हाथ की एक मुद्रा

हृदय की टूटी हुई शाखा पर लटके हुए
ओ गुलाबी जामुन के दिन!

जलते हुए शहर के ऊपर उड़ता हुआ
एक समुद्री पक्षी

क्रमशः मरती हुई एक उँगली
और बर्फ़ में बदलता हुआ एक झरना

हृदय के भी हृदय को ढहा कर बहने वाली
गर्म लावे की अँधेरी पागलादिया1एक नदी का नाम

गर्दन तक समुद्र में डूबा हुआ
एक लंबा गान

हृदय की टूटी हुई शाखा पर लटके हुए
ओ गुलाबी जामुन के दिन!

हवा की शून्य गहराइयों में
रात की उन्मुक्त बाँसुरी

कभी न गूँजने वाले कुछ शब्दों की
ओ प्राचीन शीतलता!


कल्पना पाठक से परिचय के लिए यहाँ देखिए : वे रास्ते सीधे नहीं हैं जिन रास्तों से तुम एक भूख, एक नींद, एक दिन के उद्देश्य की व्याख्या करते हो

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