कविताएँ ::
मृगतृष्णा
बुद्ध से
एक
सुनते रहने से आज तक संसार में
कोई कायर साबित नहीं हुआ
आँख मूँदने से
ध्यान लग ही जाए ज़रूरी नहीं
कह देने भर से दुःख भारहीन नहीं हो जाते
जी भरकर नाच लेने से नहीं लगा करते
ख़ुशियों को पर
मौन धारण किया तो लगा
जैसे बुद्ध पेट में हों।
दो
स्त्री के पाँव
हो सकते थे प्रकृति की सबसे ज़रूरी चीज़
उसके तलुवों पर
लिखा जा सकता था
सभ्यता का पूरा इतिहास
उसके नींद में डूबे अँगूठे की ताक में रहते थे बुद्ध
कि जा सकें लेने को संन्यास
धन-लक्ष्मी के पैरों से चलकर आती है समृद्धि जहाँ
वहाँ शिव की छाती पर रखे पाँव की
इतिहास में सबसे कम व्याख्या है।
तीन
प्रेमिकाओं की पीठ पर पाँव रखकर भागे प्रेमी
जब बुद्ध हो जाते हैं
तब मैं चुनती हूँ जीवन
लेकिन प्रेम हर बार मुझे चुन लेता है
आस्तिक चुनता है ईश्वर
ईश्वर प्रेम बन जाता है
और ईश्वर से बड़ा भगोड़ा कोई नहीं।
चार
प्रेम में ख़ूब बोलने वाली लड़कियों को मिले
सबसे चुप्पे प्रेमी
पूरी गृहस्थी को सिर पर उठाए घूमने वाली
लड़कियों के हिस्से आए बुद्ध
पैर पटकने की हद तक ज़िद्दी
कुछ ही लड़कियों को मिलते हैं शिव।
पाँच
कहो बुद्ध! जब निकलते थे तुम्हारे प्राण
तब दिखती थी क्या यशोधरा की पीठ?
जगती थी क्या स्मृतियों में
अधरों पर सोयी मीठी नींद?
छन्न से बजती तो होगी साथ में खाकर छोड़ी गई थाली
जब तुम धरा के अश्रुओं की क़ीमत पर
अश्रुओं के ही स्रोत का पता लगाने जाते थे
कहो बुद्ध! जब निकलते थे तुम्हारे प्राण
गिनते थे क्या कि धरा के कितने अश्रुओं पर
बने थे तुम महान!
ध्यान में
एक
प्रेम में लिखे गए ख़त
सब ईश्वरों के हरकारे हैं
उसका चाबुक
ध्यान की अश्रुपूर्ण अवस्था
प्रेम के सब चुंबन
प्रेमियों की पीठ पर खिले गुलमोहर हैं
प्रेम का घटित होना
संसार में जैसे घर का हो जाना है
फिर मृत्यु के रास्तों को स्वर्ग कहा गया
और दुःख की सबसे पकी फ़सल को प्रेम।
दो
दंतकथाएँ उड़ती थीं
कि दरिया में रहता है कोई नाग
नाग पानी में रहे और ज़हर मीठा हो जाए
मछली हवा में उछले और उसकी साँस फ़ीकी पड़ जाए
किनारों को बीच से जोड़ने के लिए
गिर चुके पेड़ पुल बनाते थे
तब झरनों के संग ब्याह रचता
और झीलों के फेरे पड़ते थे
मैं केश खोले हवा के मंत्र बींधती थी
कि प्रार्थना से प्रसन्न होते हैं देव
आराधना स्वरूप साथ नृत्य करते हैं गंधर्व
ध्यान की स्थिति में
छाती में उतर आती है सारी की सारी प्रकृति
और प्रेम में डूबने को दरिया में उतरता है आकाश।
तीन
जब हठिनी मोह के मनके गले में धारण करे
और वे जीवन के सत्य बन जाएँ
केश कबूतर से शांत हो जाएँगे और छाती चिता-सी शीतल
जब तुम अपनी दोनों आँखों से झाँक सकोगे
मेरे भीतर के तीसरे नेत्र की उपस्थिति को
तुम्हारे समक्ष बैठी मेरी प्रतीक्षाएँ
जब कट-कटकर गिरने लगेंगी
तुम चुन सकोगे उन्हें मेरे होश-ओ-हवास में रहते हुए
और जब हम संसार के ध्यान से उठ खड़े होंगे
तब भी दुनिया को ख़त्म करने से पहले
तुम्हें अंतिम बार करना होगा प्रेम।
चार
मैं अपनी प्रार्थनाओं की चिट्ठियाँ
धूप पर लिखती रही
उनको पढ़ सकने वाला कहीं आसमान में बस बैठा
धूप की नियति आसमान से बरसने की हुई
और धरती पर गिरा हुआ ईश्वर
इतना गिरा कि फिर उठ न सका।
पाँच
जैसे मृत्यु पश्चात करने होते हैं
अंतिम संस्कार
प्रेम में टूटने के बाद
कविताएँ उस प्रेम का अंतिम अधिकार हैं
और अश्रु सब प्रसंगों का अंतिम स्नान।
स्वयं से
प्रेमिकाएँ रिश्ता बचा रही हैं और पत्नियाँ घर
इन दोनों को बचा लेने से धरती बच जाए शायद।
लड़कियाँ कह रही हैं कि खूँटे से बँधी बछिया के
अब चार पैर तय किए जाएँ।
वेश्याएँ जिन्हें पुकारते हो
वे दिन के काम चाहती हैं।
ग़रीब की जोरू अब भी
सारे गाँव की भौजाई है।
महीने वाले कपड़ों का अब भी
बक्सों के पीछे सूखना बंद नहीं हुआ है।
चलो!
स्त्री वाली क़िताबों में ये औरतें ढूँढ़ते हैं।
अनपढ़ स्त्री सबसे पहले
पढ़ी हुई का मुँह ताकती है।
पढ़ी-लिखी औरत
अधिकार माँगती है।
क़स्बे की लड़कियाँ अलगनी पर सूखते
रंग वाले अंतःवस्त्रों से दुपट्टा हटाना चाहती हैं।
शहर वाली लड़की सुरक्षित एकांत में
निर्वस्त्र नृत्य का स्वप्न देखती है।
कामकाजी स्त्री पीठ सीधी करने भर को
आरामदेह बिस्तर चाहती है।
घुमक्कड़ औरतें
रकसैक भर दुनिया कमाती हैं।
शेल्फ़ पर सजी स्त्री वाली क़िताबें
अब ज़मीन पर उतरना चाहती हैं।
मृगतृष्णा की कविताएँ गए कुछ वर्षों में सामने आई हैं। उनसे और परिचय तथा ‘सदानीरा’ पर इस प्रस्तुति से पूर्व प्रकाशित उनकी कविताओं के लिए यहाँ देखें : अधूरे समय की अधूरी डायरी से
Kya baat
Kayak ho gye janab aapke
तुम्हारी कवितायेँ रक्त में मिल कर दिल दिमाग तक जाती है।
The poems are simply beautiful,penetrating and touching.
Lovely lines really means a lot ❤️
Super
कामकाजी स्त्री पीठ सीधी करने भर को
आरामदेह बिस्तर चाहती है।
Dukh ki sbse pki fasal prem
..
Ashru antim snan…
Ldkiyan jo mehsus krti h… Use shabd aapne diye h…
बेहतरीन कविताएं । कहन का नया अंदाज । साधुवाद
आखरी कविता तो बस कमाल है। दिल की गहराइयों में उतर गई। एक एक शब्द जिया हुआ सा लगता है।
Kya khoob sab behad lajvab
स्त्री के पूर्ण अस्तित्व को जिन शब्दों में प्रकट किया…. निशब्द कर दिया।
कोरी लफ्फाज़ी । आपको न गौतम की खबर ना बुद्ध का पता। हां लाइक्स कमैंट्स आपको खूब मिलेंगे।
क्यों?
आपको भी पता ही है।