श्रीधर तिळवे की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद और प्रस्तुति : अखिलेश सिंह
श्रीधर तिळवे (जन्म : 1964) मराठी दुनिया में वैश्वीकरण युग के प्रशंसित कवि-लेखक हैं। उनके मराठी कविता-संग्रह ‘स्त्री-वाहिनी’ का अँग्रेज़ी अनुवाद मराठी कवि-लेखक-अनुवादक नितिन भरत वाघ ने किया है। इस कविता-संग्रह की कविताएँ स्त्री-नैरेटर के माध्यम से संभव हुई हैं।
नितिन भरत वाघ बहुभाषी हैं और अनुवाद जैसे चुनौतीपूर्ण साहित्यिक कर्म में तन्मयता से सक्रिय हैं। ‘स्त्री-वाहिनी’ का अँग्रेज़ी अनुवाद ‘साम्स ऑफ़ लिलिथ’ (Psalm of Lilith) नाम से है। इसी अँग्रेज़ी कविता-संग्रह से कुछ कविताएँ नितिन भरत वाघ की अनुमति से यहाँ अनूदित और प्रस्तुत हैं।
इस कविता-संग्रह में लिलिथ के विषय में एक उद्धरण के हवाले से बताया गया है, ‘‘लिलिथ वह पहली स्त्री थीं, जिन्होंने आदम के साथ वास्तविक स्वर्ग को साझा किया, वह बहुत ख़ूबसूरत थीं, और ऐसा माना गया कि ईश्वर ने उनका सृजन उसी रीति-भाँति से किया जिस तरह प्रथम पुरुष आदम का। इस तरह वह मानवता के लिए पहली स्त्री हुईं—स्वतंत्र और कुमारी (free virgin), जिन्होंने यौन-वर्चस्व स्थापित करने की आदम की कोशिशों के समक्ष समर्पण नहीं किया। लेकिन ‘बाइबिल’ के बाद के संस्करणों में प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की कहानी से लिलिथ को हटा दिया गया और उनकी जगह एक अपेक्षाकृत कम स्वतंत्र तथा कम समान अधिकार रखने वाली स्त्री ईव को शामिल कर लिया गया, जोकि पृथिवी-निर्मित नहीं बल्कि आदम की एक पसली से बनाई गई है। ऐसा भी कहा जाता है कि वह पहली स्त्री बीस नामों से जानी जाती है जिनमें लिलिथ भी एक नाम है। उन बीस नामों से प्रत्येक नाम को ‘यौन-रहस्यवाद के एक रहस्य’ से संबद्ध किया जाता है।
वस्त्र और फ़ैशन
वह जो कुछ तुम बताना चाहते हो
आसान और सुलझा हुआ होना चाहिए
सीधा और संक्षिप्त
भाषा संवाद के लिए है
उसके पीछे छिप जाने के लिए नहीं
जो चाहता है कि उसे समझा जाए
उसे आवरण हटाना चाहिए
मैं तुम्हारी खाल के बारे में बात कर रही हूँ
और तुमने फिर से फ़ैशन ओढ़ लिया
मेरी नग्नता को सहन करना सीखो
कम से कम अपनी आँखों को समृद्धि का पाठ पढ़ाओ
या क्षण भर के लिए अंधे हो जाओ
मैं स्पर्श की तरह हूँ
जिसके पीछे छिपने की जगह नहीं होती
किंतु जीवन
स्पर्श में जीवन होता है
धत्त तेरी की!
तुम्हारा चोगा और फ़ैशन, फिर से वही सब।
पेड़
मैं तुमसे नहीं लिपटी थी
मैंने पेड़ को गले लगाया था
और महसूस की गाढ़ी हरेरी
तुमने कुछ कहा
मैंने कुछ भी नहीं सुना
सिर्फ़ पत्तियों का ढेर नोट किया
फिर तुम मेरे भीतर आ गए
लेकिन मैंने तुम्हें नहीं देखा
सिर्फ़ शाखों में हवाओं के उन्माद को महसूस किया
अचानक तुम शांत हो गए
लेकिन मैं समझ नहीं पाई
सिर्फ़ अनुभव किया थकी हुई पत्तियों को
अपनी चमड़ी पर गिरते हुए
तुम चले गए
लेकिन मुझे पदचाप नहीं सुनाई पड़ी
मैंने अपने भीतर
तुम्हारे द्वारा काटे हुए पेड़ों को ले जा रहे
ट्रक की घरघराहट सुनी।
मुंतज़िर
कविता लिखना भी उबाऊ हो गया है
घर में ऐसा क़ैद मौसम कि
कोई फूल नहीं
कोई फल नहीं
कोई पेड़ नहीं
पूरा घर प्लास्टिक का हो गया है
मैं घर में हूँ जैसे कि
फूलदान में लगा हुआ गुलाब
मेरी गंध के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं
न ही मेरी साड़ी से किसी को जद्दोजहद
ब्लाउज मुक्त होने के लिए उद्दत
कोई भी नहीं है जिससे
नग्न होने के दर्शन पर वाद-विवाद हो सके
हर कोई चमड़ी को चाटता है सिर्फ़
मानो औरत कोई मसालेदार भोजन हो
और चाटने वाला एक जिह्वा
मैं बहुत अरसे से अकेली बैठी हूँ
और दरवाज़े की घंटी तक नहीं बजती।
श्रीधर
मैं श्रीधर को पसंद करती हूँ
क्योंकि वह घोर पुरुषवादी है
उसकी कविताओं में ऐसा दिखता है।
मैं दिलीप को पसंद नहीं करती
क्योंकि वह पुरुषवादी है
किंतु उसकी कविताओं में ऐसा नहीं दिखता।
मैं श्रीधर को सुधार सकती हूँ
दिलीप सुधरा हुआ है,
उसकी कविताएँ इसकी तस्दीक़ हैं।
मैं श्रीधर से खुलकर बतिया सकती हूँ
जबकि मेरे और दिलीप के बीच
एक ढोंगी सुरक्षा की दीवार है।
दिलीप की काव्यमय दीवार पर बैठकर
मैं ख़रीदारी कर सकती हूँ
लेकिन श्रीधर के साथ
मैं रह सकती हूँ एक ही घर में।
कमाठीपुरा
चंदू अक्सर कहता है :
हमेशा सबसे गंदी वेश्या के साथ जाओ
वह ज़्यादा मज़ा देगी
श्रीधर कहता है :
मैं वेश्याओं की हथेली देखूँगा
लेकिन उन्हें कभी नहीं ख़रीदूँगा
इसे तुम मेरी नैतिकता कहो या कुछ और
बालकृष्ण कहता है :
मैं वहाँ जाता हूँ और संगीत तैयार हो जाता है
लेकिन मैंने कभी कुछ नहीं कहा
मैं जानती थी कि
सबका कमाठीपुरा
मेरे साथ शुरू होता है
संभोग से समाधि तक
संभोग नहीं पहुँच सकता था समाधि तक
पुरुष समाधि तक पहुँच सकता था—संभोग के रास्ते
उसे सिर्फ़ दो चीज़ों में सफल होना था
पहला उसे संभोग करने में समर्थ होना था
दूसरा संभोग के दौरान
इसके बारे में बेपरवाह होना था
मेरे दिमाग में बैठ गई हैं
तुम्हारी अनगिनत यात्राएँ
और तुम्हारी समाधि—
मैं विवश होकर देख रही हूँ,
ख़यालों में खोई हुई।
चूचुक
क्या मुझे वैश्वीकरण को दूध पिलाना होगा?
ओह! यह फ़ेयरेक्स खाते-खाते थक गया है
शायद इसे सचमुच माँ की ज़रूरत हो
इसे मेरे हाथों में सौंप दो
मेरे हाथ थोड़े छोटे हैं, फिर भी
दूध पिलाने के लिए मेरे चूचुक पर्याप्त बड़े हैं।
डाटा
सारा डाटा करप्ट हो गया है
पावर्टी लाइन प्रॉपर्टी लाइन में खो रही है
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग़रीबी पर ख़बर नहीं करता
भूख—चैनलों का टॉपिक नहीं है
पेट ख़ाली ऊसर हैं
उसने अनिवार्य स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है
सबकी आँखों से तनाव पिघल कर बह रहा है
वैश्वीकरण का समुद्र उबल रहा है
बर्बाद ज़िंदगियों के बादल, वर्षा होगी या नहीं?
लेकिन कमनीय फ़िगर वाली कोक की बोतलें
कुँओं से निकल रही हैं
लोगों के पास पीने को पानी नहीं है
हर कहीं जल शुद्धिकरण संयंत्र खुल रहे हैं
संगीत और पैसे से हो रहा है
इच्छाओं का वैश्वीकरण
वीडियो जॉकी के घटिया जोक्स, समझा रहे हैं ‘कैसे जिएँ’ का विजन
सभी व्यास और वाल्मीकि लिख रहे हैं
कलियुग में सोप ऑपेरा
और टैलेंट की कहानियाँ
अनुवाद के लिए पँक्ति में खड़ी हैं
डेल कार्नेगी ने खोल ली हैं
मैनेजमेंट युग के लिए फ़िटनेस कक्षाएँ
जाली समय में पैसा घुलाने की तरकीबें
यहाँ तक कि मृत्यु भी ग्लोबल है अब
दाह-संस्कार का वैश्विक टेलीकास्ट हो रहा
किसी भी समय में, पब्लिसिटी की ऐसी गारंटी नहीं थी
लेकिन विस्मरण हर समय रहा है
मैं भूल गई कि मैंने अभी क्या लिखा
और तुम पूछ रहे हो कि कल क्या हुआ था!
अखिलेश सिंह हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय तथा ‘सदानीरा’ पर इस प्रस्तुति से पूर्व उनके काम-काज के लिए यहाँ देखें : मैं चाहती हूँ, मेरे उरोज तुम्हें उत्तेजित कर दें │ संपादक के नाम │ एक दिन जीवन की बाँसुरी कोई चुरा ले जाएगा