चॉन्ग ह्यान जॉन्ग की एक कविता ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेशचंद्र शाह
राज्य की धर्म-समाधि
अच्छा, तो कुटम्ब में आप सबको ज़ुकाम है
मुझे मालूम है इन दिनों कोई आसान काम नहीं है—
कुटुम्ब-भाव बनाए रखना।
मगर संक्रामक रोग तो बस इसी तरह फैलता है
पी रहा हो जैसे हर आदमी हर आदमी की
बहती हुई नाक से
अगर सारी गतिविधियाँ हमारी इसी तरह चल सकतीं
चलता है जैसे रोगाणुओं का लेन-देन परस्पर सौहार्द से
तब, शायद मुमकिन होता बनाना एक मिश्रधातु
बुख़ार और बलग़म और रद्दी लोहे को मिलाकर
और गढ़ना एक राज्य यानी
हमारा देश।
बेशक, हमारे देश के कुटुम्ब में सभी जने
पीड़ित हैं किसी न किसी रोग से
पता नहीं चलता जिसका ठीक-ठीक, या फिर
कोई उसके बारे में बात नहीं करता है।
यों बताया जा सकता है कि रोग का नाम ‘अमुक’ है
पर, कुछ लोग कहेंगे, रोग ‘जीवन’ है,
कुछ कहेंगे ‘भय’, कुछ ‘पाशविकता’;
दूसरे शब्दों में—राज्य की धर्म-समाधि।
प्रश्न है : रोग का उपचार क्या है? औषिधि क्या?
‘अज्ञान’—जैसा कि कुछ लोग कहेंगे।
संभव है, ऐसा ही हो—प्राचीन काल से।
हमारे राष्ट्रीय कुटुम्ब के चेहरे
जिन्हें हम चित्रित करते रहे हैं बड़े चाव से
लम्बोतरे चेहरे—अपनी छवियाँ जो हम बनाते रहे हैं
उजले लैम्पशेड पर भागते घोड़ों की तरह
वे हमें देखती हैं निर्विकार उपेक्षा की दृष्टि से
किंतु… रोग का इलाज क्या है? आख़िर क्या?
शायद जिन्सेंग, शायद तम्बाकू का त्याग,
शायद—निश्चयात्मक चिंतन जैसी कोई चीज़,
हालाँकि, कुछ लोग कहते हैं, ख़ून से ही होगा, सिर्फ़ ख़ून से
ख़ून ही कर सकता है इलाज
सिर्फ़ ख़ून…
चॉन्ग ह्यान जॉन्ग (जन्म : 1939) सुपरिचित दक्षिण कोरियन कवि-लेखक और पत्रकार हैं। रमेशचंद्र शाह समादृत हिंदी साहित्यकार और अनुवादक हैं। यहाँ प्रस्तुत कविता जनवरी-मार्च 1989 के ‘साक्षात्कार’ के विश्व कविता अंक से ली गई है।