कविता :: कृष्ण कल्पित
Posts tagged लोक
कितनी सारी दुनियाएँ हैं इस दुनिया में
कविताएँ :: प्रदीप्त प्रीत
ये आवाज़ें मेरे कान खड़े करती हैं
कविताएँ :: विजय राही
कुछ लोगों के नदी पर आने से
कविताएँ :: गोविंद निषाद
रोने के लिए जगहें कहीं नहीं थीं
कविताएँ :: सपना भट्ट
दिल्ली-द्वार पर किसान
संदीप शिवाजीराव जगदाले की कविता :: मराठी से अनुवाद : गणेश विसपुते