सुंदर रामास्वामी की कविता ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : गार्गी मिश्र

सुंदर रामास्वामी

अन्य उपस्थिति

पत्थर का एक चौड़ा खंबा
जो मेरे सामने खड़ा है
मुझे मेरी तश्तरी में रखी
तंदूरी रोटी खाने से रोक रहा है

भीड़ से भरे इस रेस्त्राँ में
जब किसी तरह मुझे बैठने की
एक जगह मिली
तब मैंने इस खंबे की
शरारतों के बारे में सोचा न था

मैंने ख़ुद को शुभकामनाएँ दीं
उस खाने के स्वाद और गुण के लिए
जो कि सुंदर था
तब भी जब मैं अकेला बैठा रहा

अब इस खंबे ने
मेरा पूरा मुँह ढक लिया है
बाहर सड़कों को अँधेरे से भर दिया है
उसकी विशाल छाया
मेरी तश्तरी पर पड़ रही है
अपनी छवि मेरी छाती पर दबाती हुई
वह छाया एक राक्षसी अनुपात में
मेरे मुँह और तंदूरी रोटी के बीच बढ़ती जा रही है

क्रोधित,
मेरी उपस्थिति,
मेरी स्थिति और मेरे स्वभाव से टकराव,
टूटन और सब कुछ तितर-बितर,
मैं चीख़ पड़ता हूँ
मैं यह पत्थर का खंबा नहीं खा सकता

‘कौन है वह पागल आदमी?’
भीतर से मैनेजर की आवाज़ आती है।

Translated from Tamil to English by Lakshmi Holmstrom


सुंदर रामास्वामी (1931-2005) समादृत तमिल कवि-लेखक और अनुवादक हैं। गार्गी मिश्र से परिचय के लिए यहाँ देखें : इतनी सारी नई बातें कहाँ रखूँगी

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