तस्वीरें :: अलबर्ट ड्यूरर
प्रस्तुति : महेश वर्मा
![The Rhinoceros by Albrecht Dürer](https://sadaneera.com/wp-content/uploads/The-Rhinoceros-300x157.jpg)
गैंडे के इस चित्र का भारत से सीधा रिश्ता है. यह एक भारतीय गैंडा है जिसे पुर्तगाल ले जाया गया और इसको बिना देखे न्यूरेमबर्ग (अब जर्मनी में) के एक चित्रकार अलबर्ट ड्यूरर ने इसका वुडकट बनाया जिससे हजारों प्रतियों में यह चित्र छापा गया.
पुर्तगाल शासित भारत के गवर्नर अल्फांसो दे अल्बुकर्क ने गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह के पास अपना दूत भेजकर दीव के पास एक फाटक बनाने की अनुमति मांगी. सुल्तान ने यह अनुमति तो नहीं दी, लेकिन उस समय के चलन के अनुसार उपहारों का आदान-प्रदान हुआ. गुजरात के सुल्तान ने अन्य उपहारों के साथ-साथ एक गैंडा भी भेंट में भेजा. गवर्नर अल्बुकर्क ने इस गैंडे और इसके परिचारक ओशिम को पुर्तगाल के सम्राट किंग मैनुअल प्रथम को भेंट मं भेजने का निर्णय लिया. पानी का एक जहाज दुर्लभ भारतीय मसालों और अन्य कीमती उपहारों के साथ गैंडे को भी लेकर जनवरी 1515 में पुर्तगाल के लिए रवाना हुआ और बड़ी तेजी से यात्रा करते हुए इसने 120 दिनों में ही गैंडे को पुर्तगाल की धरती पर उतार दिया. रोमन साम्राज्य के समय से यूरोप में गैंडा नहीं देखा गया था, इसलिए इसके कुछ मिथकीय विवरण बस वहां मौजूद थे.
गैंडे को किंग मैनुअल के चिड़ियाघर में अलग से रखा गया. तीन जून को मैनुअल ने गैंडे और अपने संग्रह में मौजूद एक हाथी की लड़ाई आयोजित की, क्योंकि वह इस बात को परखना चाहता था कि गैंडा और हाथी जन्मजात शत्रु होते हैं. हाथी इस अजीब से प्रतिद्वंद्वी को देखकर और तमाशाइयों के शोर से घबराकर भाग गया.
गैंडे की चर्चा शुरू हो गई. कई वैज्ञानिकों और शोधार्थियों ने गैंडे का अवलोकन शुरू किया. लिस्बन में रह रहे जर्मन चित्रकार वैलेंटाइन फर्डिनांड ने गैंडे का एक अनगढ़-सा रेखाचित्र बनाकर और इस जानवर का विवरण एक पत्र में लिखकर न्यूरेमबर्ग के व्यापारिक समुदाय को भेजा.
रेनेसां काल के महान चित्रकार और गणितज्ञ अल्बर्ट ड्यूरर ने जब इस विचित्र पशु का विवरण पढ़ा तो सम्मोहित-सा हो गया. वह इतना सम्मोहित हो गया कि उसने इस पशु का पेन स्केच बनाना शुरू किया जिससे बाद में वह वुडकट तैयार किया गया जिससे शुरू में इस ऐतिहासिक चित्र की एक हजार प्रतियां छापी गईं. अपने जीवनकाल में ड्यूरर इसकी पांच हजार प्रतियां बनाईं.
मूल गैंडे से आश्चर्यजनक समानताएं और मिथकीय और फंतासी किस्म की भिन्नताएं लिए हुए यह रेखाचित्र अगले ढाई सौ वर्षों तक विज्ञान की पाठ्य-पुस्तकों तक में गैंडे के नाम से प्रकाशित किया जाता रहा. जब तक यूरोप के वासियों ने असली गैंडा न देख लिया, तब तक यह काल्पनिक चित्र गैंडे का प्रामाणिक चित्र माना जाता रहा.
यथार्थ पर कला की विजय का यह अप्रतिम उदाहरण है. चित्र में इसकी मोटी गर्दन पर एक और सींग है जो संभवतः यूनीकॉर्न की कथा से आया है. इसका शरीर जिरह-बख्तर जैसे शल्कों से ढका है और इसके पैर रेगिस्तानी सरीसृपों जैसे हैं. इसमें काफी कुछ ऐसा है कि जिससे यह किसी पुराणकथा से निकले हुए योद्धा-सा दिखाई देता है.
ब्रिटिश म्यूजियम के पूर्व निर्देशक नील मैकग्रेगर ने एक निबंध में लिखा है : ‘‘ड्यूरर ने कभी एक जीवित गैंडा नहीं देखा था, वह सेकेंड हैंड सूचनाओं पर काम कर रहा था. चित्र का आकार गढ़ने के लिए उसे उपलब्ध सूचनाओं का विश्लेषण करना था. अतीत के अध्ययन का यह एक बेहतरीन मॉडल है. हमें अतीत के बारे में उपलब्ध सूचनाओं के टुकड़ों को एक आकार देना होता है… और निश्चय ही वह आकार गलत हुआ करता है जैसे कि ड्यूरर का गैंडा. अतीत के साथ हमारे अनिवार्य संघर्ष का यह एक अद्भुत प्रतीक है– लेकिन यह एक सिसिफसियन संघर्ष है जिसमें हम हमेशा हारेंगे.’’
इस काल्पनिक चित्र का बहुत समय तक प्रत्यक्ष प्रमाणवाद और अनुभववाद की दार्शनिक बहसों में उदाहरण के रूप में भी इस्तेमाल किया गया.
पुर्तगाल के सम्राट किंग मैनुअल प्रथम ने इस गैंडे को मेडिसी पोप लियो-दस को भेंट करने का निर्णय लिया. इसके बदले वह पोप से कुछ राजनैतिक अनुकंपा पाने का इच्छुक था. लिहाजा गैंडे को दिसंबर 1515 में रोम को रवाना कर दिया गया. दुर्लभ मसाले और चांदी की तश्तरियों सहित बेशकीमती उपहारों के साथ गले में हरा मखमल लपेटकर सजाए गए गैंडे को समुद्र मार्ग से भेजा जा रहा था. फ्रांस के बादशाह किंग फ्रांसिस प्रथम ने गैंडे को देखने की इच्छा व्यक्त की तो रास्ते में कुछ समय के लिए मारसेई के किसी द्वीप पर जहाज रोक कर उन्हें यह गैंडा दिखाया गया. रोम पहुंचने से पहले अचानक आए एक तूफान की चपेट में आकर जहाज के डूबने से गैंडे की मौत हुई.
![self Portrait albert durer](https://sadaneera.com/wp-content/uploads/Self-Portrait-albrecht-durer-225x300.jpg)
![A Lying Lioness albert durer](https://sadaneera.com/wp-content/uploads/A-Lying-Lioness-300x140.jpg)
![albert durer the small hors](https://sadaneera.com/wp-content/uploads/the-small-horse-201x300.jpg)
![](https://sadaneera.com/wp-content/uploads/dogunknown-300x223.jpeg)
![dog at rest by durer](https://sadaneera.com/wp-content/uploads/dog-at-rest-300x214.jpg)
![two seated lions](https://sadaneera.com/wp-content/uploads/two-seated-lions-1521.jpgHalfHD-300x213.jpg)
दूसरी कथाएं
अलबर्ट ड्यूरर ने अगर रास्ता न बदला होता तो वह एक सुनार होते. एक खानदानी सुनार की बारीकियां और अलंकारिकता उनकी कला की ताकत है.
जर्मन और नॉर्दर्न रिनेसां के इस प्रतिनिधि कलाकार को ऑयल, वाटरकलर, ड्रॉइंग, प्रिंटमेकिंग, वुडकट सभी माध्यमों पर बराबर महारत हासिल थी.
यहां उनके द्वारा बनाए गए जीव-जंतुओं के ही चित्रों को चुनने का कारण यह है कि अठारहवीं सदी में जॉर्ज स्टब्स के बनाए घोड़ों के चित्रों के सामने आने से पहले तक जानवरों के चित्रण को बस तकनीकी अभ्यास ही माना जाता था और अधिक गंभीरता से नहीं लिया जाता था. ड्यूरर ने इससे लगभग तीन सौ साल पहले बहुत गंभीरता, विविधता और संवेदना के साथ मानव के अलावा दूसरे जंतुओं का चित्रण किया. इन चित्रों में जीवों के साथ उनका निजी रिश्ता तो दिखता ही है, यह भी लगता है कि वह दूसरे जीवों को सम्मान से देखने और उन्हें प्रकृति का महत्वपूर्ण हिस्सा मानने के अभ्यस्त थे.
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महेश वर्मा हिंदी के उल्लेखनीय कवि-कलाकार और ‘सदानीरा’ के अन्यतम सहयोगी हैं. उनकी कविताओं की पहली किताब ‘धूल की जगह’ शीर्षक से प्रकाशित है. उनसे maheshverma1@gmail.com पर बात की जा सकती है. यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 19वें अंक में पूर्व-प्रकाशित.