लगभग एक माह के मौन के बाद ‘सदानीरा’ फिर दृश्य में दख़ल के लिए उपस्थित है। इस हाहाकार में ‘सदानीरा’ के दख़ल की शक्ल रचनात्मक ही रही है, रचनात्मक ही हो सकती है। लेकिन कभी-कभी रचनात्मकता को बरतने का नियमित, नियमबद्ध और तयशुदा ढर्रा भी ऊब और विकार से भर देता है; इसलिए हमने सोचा कि कुछ रोज़ चुप रहकर देखें, इस नियमितता से बाहर…
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