लगभग एक माह के मौन के बाद ‘सदानीरा’ फिर दृश्य में दख़ल के लिए उपस्थित है। इस हाहाकार में ‘सदानीरा’ के दख़ल की शक्ल रचनात्मक ही रही है, रचनात्मक ही हो सकती है। लेकिन कभी-कभी रचनात्मकता को बरतने का नियमित, नियमबद्ध और तयशुदा ढर्रा भी ऊब और विकार से भर देता है; इसलिए हमने सोचा कि कुछ रोज़ चुप रहकर देखें, इस नियमितता से बाहर निकलकर देखें।

इस अंतराल के बाद अब हम कुछ ताज़गी अनुभव कर रहे हैं। हम जानते हैं कि नए-नए रचनाकार और उनका नया-नया काम हमारे कोश में ही सुरक्षित है। यह नवाचार जल्द प्रकाश में आकर सार्वजनिक होगा और रचना की दुनिया सचमुच की प्रतिभाओं को पहचानेगी। बहुत कुछ अभी अपनी आँच पर है, निर्णय लेना या देना भूल के सिवा और क्या होगा! फिर भी हम चाहते हैं कि हम बहुत सारे कच्चेपन के लिए आवाँ हो सकें।

हम ऑनलाइन के साथ-साथ प्रिंट में भी बने रहें, तमाम आपदाओं के बावजूद हम इस यत्न में हैं। आगामी वर्ष में हम कुछ विशेष-अंकों और पुस्तिकाओं के साथ इस यत्न को और बेहतर और विस्तृत शक्ल देने वाले हैं।

इस संकल्प में कुछ स्वीकार भी ज़रूरी हैं—हमारे पास बहुत सारी रचनाएँ आती हैं, लेकिन उनमें से बहुत सारी ही किसी काम की नहीं होतीं। हम चाहते हैं कि रचनाकार रचनाएँ लिखने का ही नहीं, उन्हें भेजने और प्रकाशित कराने का शिल्प भी सीखें। वे इस पूरी प्रक्रिया से परिचित हों ताकि एक सुरुचिपूर्ण हिंदी-दृश्य संभव हो सके और सुरुचि पर केवल चंद जनों का ही अधिकार न रह जाए।

इस क्रम में यहाँ यह स्वीकार भी ज़रूरी है कि ‘सदानीरा’ पर गद्य और हिंदी कविता के लिए जगह पहले ही कम थी, इधर कुछ और कम हो गई है। अब हमने ‘सदानीरा’ को केवल विश्व कविता और रचनाशीलता के अनुवाद और उन हिंदी रचनाकारों पर एकाग्र कर दिया है, जिनका प्रकाशन अभी तक कहीं नहीं हुआ है या जिन पर हिंदी की धुंधली नज़र ठीक से नहीं पड़ती है। इसकी एक वजह वैसे यह भी है कि हमारे पास कमतर चीज़ों के लिए समय भी कम रहता है, तिस पर ‘सदानीरा’ को प्रिंट में लाना एक थकाने वाला, पर प्यारा और टिकने वाला काम होता/लगता है।

‘सदानीरा’ में एक रचनाकार के पुनर्प्रकाशन पर विचार हम छह महीने से पहले नहीं कर पाते हैं, जबकि रचनाएँ प्राय: प्रकाशित करने योग्य होती हैं। ऐसे में हमारा सुझाव है कि एक रचनाकार को भिन्न-भिन्न जगहों पर अपनी रचनाओं का प्रकाशन कराना चाहिए। ऑनलाइन में ‘समालोचन’, ‘इंद्रधनुष’, ‘हिन्दवी’ और प्रिंट में ‘तद्भव’, ‘आलोचना’ को इस सिलसिले में पढ़ा-चुना जाना चाहिए।

‘सदानीरा’ में अपनी मूल रचनाएँ या अनुवाद-कार्य भेजते समय आप अगर इन बिंदुओं का ख़याल रखेंगे तो हमें बहुत मदद मिलेगी :

1. सबसे पहले अपनी तरफ़ से जहाँ तक संभव हो भरपूर श्रम करके वर्तनी आदि ठीक रखें, ताकि हमें इस ओर कम मेहनत करनी पड़े।

2. संकेत-चिह्न जैसे : , ! । – — इनका प्रयोग करते समय शब्द और संकेत-चिह्न के बीच स्पेस न रखें।

3. चंद्रबिंदु, नुक़्ता आदि का ख़याल रखें, ये किन शब्दों में आते हैं या नहीं; इसके लिए ‘रेख़्ता’ और ‘गूगल’ पर चेक कर सकते हैं।

4. अनुवाद के लिए चुनी गई रचनाएँ आपने बतौर अनुवादक हिंदी में अनुवाद करने के लिए किस सोर्स (वेबसाइट या किताब) से ली हैं, का उल्लेख करें।

5. यह सब करने के बाद फ़ाइनल फ़ाइल ही हमें ई-मेल करें, यानी अन्यत्र यानी व्हाट्सएप या फ़ेसबुक मैसेंजर पर न भेजें।

नव वर्ष की अनंत मंगलकामनाओं के साथ—

अविनाश मिश्र

संपादक
‘सदानीरा’

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