कविता ::
कृष्ण कल्पित
डूब मरो
मैं तुम्हारे तलुओं पर
जैतून के तेल की मालिश करना चाहता हूँ
जिन हाथों से थामा था तुमने साइकिल का हैंडल
मैं उन हाथों को चूमना चाहता हूँ
गुरुग्राम से दरभंगा तक
अपने घायल पिता को कैरियर पर बिठाकर
ले जाने वाली स्वर्णपरी
मैं तुम्हारी जय-जयकार करना चाहता हूँ
तुम्हारी करुणा तुम्हारा प्यार तुम्हारा साहस देखकर हैरान हूँ
आश्चर्य से खुली हुई हैं मेरी आँखें
मैं उन तमाम तैंतीस कोटि देवी-देवताओं को
बर्ख़ास्त करना चाहता हूँ
जिन्होंने नहीं की तुम पर पुष्प-वर्षा
मोटर-गाड़ियों रेल-गाड़ियों और हवाई-जहाज़ों का आविष्कार
क्या आततायियों अपराधियों और धनपशुओं के लिए किया गया था
इस महामारी में तुमने अपने चपल-पाँवों से
बारह सौ किलोमीटर तक भारतीय सड़कों पर सात-दिनों तक जो महाकाव्य लिखा है
वह पर्याप्त है इस देश के महाकवियों को शर्मिंदा करने के लिए
डूब मरो शासको
डूब मरो कवियो
डूब मरो महाजनो
ओ, साइकिल चलाने वाली मेरी बेटी
मैं तुम्हें अंतस्तल से प्यार करना चाहता हूँ!
कृष्ण कल्पित हिंदी के सुपरिचित कवि-लेखक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : ‘कोरोना कविता का विषय नहीं’ और प्रस्तुत कविता का संदर्भ समझने के लिए यहाँ :
लॉकडाउन था, सो अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर गुरुग्राम से दरभंगा ले गई बेटी…
वीडियो: मोहन भारद्वाज और सीटू तिवारी pic.twitter.com/Mc7hkmyB4O— BBC News Hindi (@BBCHindi) May 19, 2020
कृष्ण कल्पित जी की कविता,इस समय की सबसे बड़ी कविता है जो इन्सान के सबसे निम्न स्तर को प्रकट करती है।
डूब मरो देश के नकली कवियो!तुम्हारी आत्मा पर क्रूरता का कोलतार और निःसंगता का अंगार बह रहा है।
कृष्ण कल्पित जी की कविता, डूब मरो, पढ़ी, पाड्कैस्ट पर सुनी और शेयर भी किया। अनमोल है।