लंबी कविता ::
प्रज्वल चतुर्वेदी
परंपरा के सातत्य में ही आधुनिकता आती है और फिर उसी में विलोपित हो जाती है।
‘बृहदारण्यक’ में याज्ञवल्क्य से उनका संवाद हो या उस पर आधृत कोई दार्शनिक अन्विति—भारतीय चिंतन-परंपरा में ब्रह्मवादिनी स्त्रियाँ हमेशा से उपस्थित रही आई हैं।
जीवन क्या है! उसे गति कैसे मिलती है! क्या कोई शाश्वत स्थिति है! अमरता की स्थिति क्या है! क्या वह कोई महत्त्वाकांक्षा है या फिर स्वभाविक जीवन-निष्पत्ति? …मानव-अस्तित्व के ये बुनियादी प्रश्न दुनिया की तमाम परंपराओं में, कतिपय कला-विधाओं के माध्यम से सामने आते रहे हैं।
डॉक्टर फ़ॉस्टस—क्रिस्टोफ़र मार्लो के महान् नाटक ‘डॉक्टर फ़ॉस्टस’ का एक बेहद दिलचस्प और मुख्य पात्र है। नाटकों के इतिहास में हैमलेट के अलावा कोई ऐसा पात्र नहीं हुआ होगा, जिसने मानव-सभ्यता को इतने मार्मिक विचार-बिंदु दिए हों। फ़ॉस्टस पेशे से डॉक्टर है और उसने संसार की तमाम विद्याओं से गुज़रकर यह जाना कि कुछ भी करके सर्वशक्तिमान नहीं हुआ जा सकता है। उसे नरक के देवता लूसिफ़र और उसके दूत मेफ़िस्टोफ़िलीस का सहारा मिलता है। वे फ़ॉस्टस को वैभव-संपन्न और शक्तिशाली जीवन के चौबीस साल देते हैं, इस सौदे के बदले कि उसे अपनी आत्मा लूसिफ़र को गिरवी रखनी होगी। इसे ब्रिटिश भाषा को समृद्ध करने वाले मुहावरों के इतिहास में ‘फ़ॉस्टियन बार्गेन’ कहा गया।
प्रज्वल चतुर्वेदी की इस लंबी कविता में मानव-अस्तित्व की इन्हीं बुनियादों और जीवन-क्षारकताओं का अंतरगुम्फन निहित है। यहाँ प्रज्वल का कवि अपने प्रयोगधर्मिता में फ़ॉस्टस के सर्वशक्तिशाली होने की महत्त्वाकांक्षा के बरअक्स ब्रह्मवादिनी के अमरत्व की माँग के संलाप संभव करता है। यहाँ ‘प्राभवत्या’ और ‘प्राबल्या’ जैसे पात्र हैं, जिन्होंने फ़ॉस्टस के जीवनपर्यंत ‘गुड’ और ‘बैड’ यानी ‘शुभता’ और ‘कलुषता’ के बीच चलने वाले द्वंद्व का काव्य-निरूपण संभव किया है।
इतिहास-चक्र में अनगिनत ऐसे अवसर आते हैं, जहाँ मानव-अस्तित्व के बुनियादी प्रश्नों की समीक्षा आवश्यक हो जाती है। यह काम कौन करेगा? ज़ाहिर है कि कोई कवि ही! बीसवीं सदी में एक अलग दृष्टि से यह काम कविता-संसार में प्रभावी रूप से टी.एस. एलियट ने किया था और राजनीति के संसार में अंतोनियो ग्राम्शी ने। समय की रफ़्तार बढ़ जाने से, अब इसकी ज़रूरत जल्दी-जल्दी पड़ेगी।
प्रज्वल और उनकी इस कविता के विषय में इतना बड़ा दावा तो मैं नहीं करूँगा; किंतु अगर ऐसी कोई रेख भी यहाँ उपस्थित है, तो यह संतोषजनक है। यहाँ कुछ विशिष्ट-दृश्य और बहुत सारे विशिष्ट-संलाप ज़रूर उपस्थित हैं, जिन्हें हिंदी-संसार को स्वागत-योग्य मानना चाहिए। साथ ही यह भी कि ‘क्लैशेज़ व क्लीशेज़’ के समय में हिंदी-संसार को बुनियाद की तरफ़ ज़रूर लौट जाना चाहिए; क्योंकि बदलावों की गति जब अपने अनुकूलतम स्तर पर पहुँच जाए तो मनुष्य वहीं, उसी शुरुआती बिंदु पर खड़ा मिलता है—जहाँ से उसने चलने को सोचा था।

डॉक्टर फ़ॉस्टस और ब्रह्मवादिनी
एक
ब्यूसेफ़ालस की पीठ पर
एक दिन उसने मन में ठाना कि भागते हैं छोड़कर इस जगह को
और अगर नहीं भाग सके तो भी पछतावा नहीं होगा
एक अंतहीन क़ैद तो पहले से हिस्से में थी ही
और जब से वह भागने के बारे में सोचने लगा था
उसके पैरों में उसके बाद एक बहुत सधी हुई झुनझुनी शुरू हुई
और नज़र उस बैल जैसे सिर वाले घोड़े पर पड़ी
जिसके स्वामी को एक बार उसने महज़ दृश्य बना कर छोड़ दिया था
उसने धीरे-धीरे उस घोड़े से पहचान बढ़ाई
उस पर बैठ कर सीधा चलता हुआ
हज़ारों साल बाद वह इस दुनिया में उतर आया
उसने फिर इस दुनिया को कैसा देखा?
उसको लग रहा था जैसे कोई वाद्य तलाश रहा हो अपने लिए एक कोई बदहवास स्वर
दिशाएँ सिर के ठीक ऊपर किसी षड्यंत्र के लिए एक हो रही थीं
दुनिया ठीक वैसी नहीं थी जैसे एकबारगी उसने देखा था इसे
पत्थर सजीव हो उठे थे
यहाँ ठंडे ख़ून में सनी रोटी की आँच नहीं लग रही थी
बस खाने वालों के गले जल रहे थे
इतने शोरगुल में एक भी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी
उसने सोचा यह किसी भी दुनिया का क्या दस्तूर है कि
(जबकि वह दो दुनियाएँ देख चुका था)
वे घोर कोलाहल से भरी रहें जिसमें उसके लिए
हर तरफ़ केवल चुप्पी हो
जहाँ झाड़ कर साफ़ किए जा रहे हों सारे संबंध
जहाँ लोगों को लगता हो कि उनकी चुप्पी से शोर कुछ कम हो जाएगा!
दुनिया अँधेरी रातों में मरने के लिए तड़प रही है
कॉफ़ी की केतलियाँ सिसक रही हैं
दुःख विडंबनाओं में पल रहा है
ब्यूसेफ़ालस ने उसे हल्के-से हिनहिनाते हुए इशारा किया
धीरे-धीरे आँखें घुमाओ दोस्त
पीछे देखो
एक सुंदर लड़की बिना किसी संगीत के नृत्य किए जा रही है
संगीत के अभाव में नृत्य?—
दुःख के उस पार ऐसा ही नृत्य है दोस्त!
बिना संगीत का—
संगीत तो किसी टूटे हुए दिल का पाठ है न!
फ़ॉस्टस :
तुम्हारी दुनिया में रंगीन आसमान गाती हुई नदियाँ
और उठते बादलों में सोते हुए स्वप्न हैं
मेरी दुनिया में सिर्फ़ दो चीज़ें हैं
दुःख और उसका संगीत
दुःख : तुम्हारी दुनिया में मेरे न होने का
संगीत : इस दुनिया के पुकारने की आवाज़ें
उठकर अपसारित होतीं दो आहों के बीच का अंतराल है
विडंबना केवल शब्द नहीं है
त्वरा केवल हर जगह अधिष्ठित होने की
इच्छा से भरी जल्दीबाज़ी भर नहीं
लालित्य की आभासी लालिमा
कपोलों की कालिमा को क्लांत करने को कम साबित हो सकती है
मात्र—
साँय-साँय में सुनाई देती
एक झूठी ध्वनि है
यथार्थ कुछ होता उससे पहले ही मैंने जान लिया
अयथार्थ—
वे…
वे कल्पनाएँ हैं… यथार्थ कल्पनातीत…
मैं आरंभ करूँ तो कहाँ से करूँ?
क्या कुछ भी इतना सुंदर नहीं बचा है
कि उसमें कुछ उलझा न हो?
मैं नहीं जानता
लंबी-लंबी डोरियों की
कितनी ही कतरनें एक गोले में सिमटी हुई हैं—
जिसे जहाँ से जितना काम भर का मिला
उसने उतना काट लिया
और… उनके नाम क्या थे!
मैं नहीं जानता
ब्रह्मवादिनी :
तुम भी एक नाम हो सकते थे
लेकिन किसी ने पुकारा नहीं तुमको
पर अपनी आशा क्यों भग्न करते हो?
बहुत सारे नाम—
अभी बुलाए नहीं गए हैं
पहचान से अधिक सास्र्प्य सार्य है
शब्द अपने अर्थ खोते हैं—अपनी कमनीयता नहीं
सुंदरता का फीका पड़ते जाना
उसको वहीं पा लेने की छटपटाहट है
सुंदता से मन खार हो जाना स्मृति की कमज़ोरी है
सुंदरता सबका आधार वाक्य है
तुम वहीं से शुरू करो
एक दृश्य जिसमें एक काँपती लौ अपनी स्थिरता पाती है
एक दृश्य जिसमें लड़खड़ाते हुए
प्रवेश करती है जीने की शक्ति
कोई गीत जो
विस्मृति के क्षितिज में घुसते हुए उड़ती
ग़ायब होती दो चिड़ियों के भय का राग है
एक पंक्ति
जिससे होंठों का दयार किसी नदी की तरह
फ़ैल जाए
जिसकी चौड़ाई पर कोई दंतावली
पानी में पड़ती हुई चंद्रमा की परछाईं
सबका आधार वाक्य सुंदरता है—
वहीं से शुरू करो
फॉस्टस :
जो सिर्फ़ उदासी की सीमाओं के इर्द-गिर्द मंडलाते हैं
उन मौसमों के रूपक बदलने चाहिए
कल्पनाएँ कोई दर्द निवारक नहीं हैं
एक दुनिया मैं देखकर आया हूँ—
जहाँ हज़ारों चिंगारियों को अपने आग़ोश में लिए हुए अँधेरा डकारता था
और एक दुनिया यह
जहाँ एक अकेली शरर अँधेरे की आँखों में घूरते हुए ठहाके लगाती है—
तुम यहाँ क्या कर रही हो?
उसने कहा कि उसने वह सब स्वीकार करने से इनकार कर दिया था
जिसको पाकर भी अमर नहीं हुआ जा सकता
और इसी वजह से वह कुछ ऐसा खोजने चली आई थी
जो अकेले होने के भय को मिटा दे
लेकिन एकांत कभी नहीं रहा निर्मल जल
यादों उर्फ़ सहानुभूतियों की काई हमेशा उस पर जमी रही
एक ही मन कई जगह लगाने में दिक़्क़तें तो आती ही हैं
इसीलिए दिल हज़ारों टुकड़ों में टूट जाता है
भीतर आत्माएँ अनंत इसीलिए नहीं हैं क्योंकि वे कभी भी
कहीं भी गिरवी रखी जा सकती हैं
वह जो उड़ रहा था हवा में जो दो लोगों के बीच एक सड़क की दूरी है लेकिन अमूमन जिसको हम सत्य कहते हैं जो कहीं भी कभी भी पाया जा सकता है पर हमेशा हर जगह नहीं होता जो भारी छड़ की तरह धीरे से बिना आवाज़ किए पानी में डूब जाता है और रात में सियार की आवाज़ की तरह पूरी रात पर चाँदी के एक वरक़ की तरह फ़ैल जाता है जिसे देखने के लिए वे बैल-जैसे चौड़े माथे वाले घोड़े पर चढ़ कर चले
उसने दूर से फ़ॉस्टस को दिखाया एक फ़नकार
जो एक बुझे हुए दीये के ऊपर झुका हुआ सिसक-बिलख रहा था
फ़ॉस्टस ने बहुत देर तक देखा उसे
उसने एक बार भी उस दीये को जलाने की कोशिश नहीं की
और अपने आँसुओं से उसकी बाती को भिगाता रहा
वे उस पर हँसे—हँसा किए बहुत देर तक
उसने कहा फ़ॉस्टस से कि शिकायत करने वाले
आधी रातों में बिल्लियों की तरह रोकर रात का सारा ज़ाइक़ा बिगाड़ देते हैं
और उसकी नरम हथेलियाँ फ़ॉस्टस की पीठ पर सरकती रहीं
क्या ऐसे ही धूप पेड़ के तनों से धीरे-धीरे सरकती है नीचे?
उसकी ठुड्ढी कुछ बोलते-बोलते फ़ॉस्टस के कंधे से सट जाती थी
और स्वरों के स्फोट से निकलने वाली उष्म हवा
उसके कानों के ऊपर से गुज़रती थी
क्या ऐसे ही हवा के धीमे प्रवाह गुज़रते हैं फुनगियों को बिल्कुल हौले से छूते हुए?
फ़ॉस्टस को कोमलता का कोई एहसास नहीं होता था
ऐसा कभी था ही नहीं यह कहना अतिरेक होगा
जैसे पठार के ऊपर रूई रगड़ने से पत्थर को तो कुछ नहीं होता
लेकिन रूई की बत्ती बन जाती है
लेकिन कुशल अभिनयकार उसने
कहा कि इन सबको मांसलता में महसूस करने के लिए एक आत्मा की आवश्यकता थी
जैसे आत्मा ही प्रेम का आस्पद हो!
और उस लड़की ने फ़ॉस्टस को अपनी आत्मा का एक टुकड़ा दे दिया
फ़ॉस्टस :
याचना के बाद जो प्राप्त हो—
क्या वह सिर्फ़ अपमान नहीं है?
और जीवन क्या है?
अपमानों का लंबा योगफल :
वीभत्स शंख-ध्वनि है
जो हमारी आकांक्षाओं को जगाने वाली है
इसीलिए चाहना में लज्जा नहीं है
याचना में भी नहीं
यह कोई दुस्साहस भी नहीं कि हथेली में आसमान दिखाई दे
मिले! मेरी अमरता को आत्मा मिले!
जैसे समुद्र में एक छोटी नाव पर बहुत दिनों से फँसा हुआ नाविक आख़िरी बचे हुए रोटी के एक टुकड़े से कुछ देर जी सकता है लेकिन और देर जीने की इच्छा में वह उसे काँटे में फँसा कर मछली को चारा डालने की कोशिश करता है लेकिन बहुत देर तक कोई मछली चारा पकड़ने नहीं आती और रोटी गल के बह जाती है—मिले हुए आत्मा के टुकड़े के साथ फ़ॉस्टस ने वही किया
दो
हज़ार सपनों से सजी एक रात का क़त्ल
येनाहं नामृता स्याम् किमहं तेन कुर्याम्
जिसको पाकर मैं अमर नहीं होऊँगी, उसे मैं लेकर क्या करूँगी?
यह थोड़ा चाहने वाले थोड़े-से लोगों का प्रश्न नहीं है
यह बहुत चाहने वाले बहुतों का प्रश्न हो सकता था
जिनके सवालों से गंधक की तीखी बू आती है
और वे अपने आँचल से अपनी हँसी छानती हैं जिसमें बड़े-बड़े सुराख़ हैं
हमारा फ़ॉस्टस
उसको ढूँढ़ रहा है जिसने
उसकी आदमख़ोर आत्मा को
अपने दुपट्टे के आख़िरी तागों में उलझाकर बचाए रखा
वह देखो आता है वह
जैसे आता है कथानक में मोड़
अंत समय की रेखा के हर बिंदु पर
होता है साथ ही
कई अंत हो सकते हैं एक आरंभ के
कई-कई व्याख्याओं के अधीन
एक अंत के कई आरंभ नहीं—
यह कथानक के अंत के इशारे को अपने साथ लेकर आता है?
फ़ॉस्टस :
दिल बहुत छोटा होता है मुट्ठी जितना बड़ा शायद
लगभग ऐसा ही कुछ कहते हुए उसने मुझे अपने दिल में नहीं रखा
लेकिन अंदर ही अंदर मुझे ख़बर थी कि मेरा रेतीला वजूद चुटकी भर भी नहीं था
जिसकी वजह से लोग मुझे मसल डालने से भी कतराते रहे
यह उसे पता था कि
अँगुलियों से चिंगारियाँ छिटकाने के लिए
मेफ़िस्टोफ़िलीस के साथ हुए क़रार पर मैंने
अपने लौह-ए-दिल में डूबे हुए अँगूठे का निशान दे दिया है
यह जानते हुए कि लहू चखने की लालच में
मैंने अपना कलेजा शैतान को गिरवी रख दिया है
यह जानते हुए भी कि मुझ पर आदमख़ोरी के आरोप हैं
उसने मुस्कुराते हुए अपने कलेजे का एक टुकड़ा मुझे दे दिया
कहते हुए कि मुझे जीने के लिए इस टुकड़े की बहुत ज़रूरत पड़ेगी
मैं पलट कर उससे इतना भर कहना चाहता था—
देखो, बुरा मत मानना
लेकिन मेरे अफ़्सुर्दा दिल में हर तरफ़ केवल वीरानियाँ हैं
कहीं किसी कोने में देखोगी तो उसकी तूतियाँ घुट रही हैं
कहीं सिर उठाकर देखने पर पता चलेगा
दिल की छत चिप्पियों में ढह रही है धीरे-धीरे
सूखने की जल्दी में वहाँ हरियराने की भी फ़ुर्सत नहीं है
और कभी-कभी तुम देख लोगी उसी में
अँगूठा बोर कर बचा-खुचा लहू चाटते हुए मुझे
लेकिन अंततः मेरी आत्मा ने मुझसे कुछ नहीं कहा न ही मैंने उससे
और जब मैं उसको मुस्कुराते हुए दिखा तो
उसने देखा कि मेरे दाँतों में कलेजे का एक टुकड़ा फँसा हुआ था
जिसे निगल जाने के लिए मेरी जीभ उसे तालू से बार-बार दबाती थी
हमने प्रण किया था—जो कुछ भी हम भूल पाएँगे उसे ठीक होना माना जाएगा
लेकिन उसकी टोक से मैं गिरता ही रहा
ख़ुद को याद दिलाते हुए कि इसका आँचल तो तार-तार हो चुका है
और दिल बिल्कुल बेज़ार जिस पर मैं अपना दिल टटोलूँ तो याद आए—
ख़ून पीने और उसी में डूबते-उतराते रहने की इच्छा से
मैंने तो अपना सब कुछ—दिल, कलेजा और आत्मा शैतान को गिरवी रख दिया है
जब किसी चमन से उठती हुई बहार मेरी आँखों में धूल झोंक देती थी तो
तुम्हीं सोचो वीरानियों में एक भी पत्ती हरी करने के लिए मैं अपना ख़ून क्यों बहाता?
प्राभवत्या :
क्योंकि आख़िरी पत्ती आख़िरी उम्मीद है?
फ़ॉस्टस :
नहीं, नहीं, नहीं ये सब बेकार की बातें हैं कि आख़िरी पत्ती आख़िरी उम्मीद है
ये भी बहस की बात है कि रक्त मुझे जीवन देता है या मैं रक्त को जीवन देता हूँ
क्या आशा से भरी हुई एक सुबह हज़ार सपनों से सजी एक रात का क़त्ल कर सकती है?
(हाँ बिल्कुल कर सकती है और करती है
वह उनके कानों में कोयल की तरह कूक कर
जीवन देने का वादा करती है और
एक पतली लंबी-सी अंगार-रेखा से
उनके गले को चीर देती है
और उनका ख़ून फैलता है
आसमान नीला होता जाता है)
इसका जवाब तो वहीं है जहाँ सपने रहते हैं
असभ्य, बर्बर, जंगली सपने!
वे आँखों के किनारों पर बस क्यों नहीं जाते?
शायद उन्हें नहीं पता किसी बँधी हुई रौशनी के बारे में
अगर रौशनी एक चिड़िया होती—तो इसके आने पर कौन गाता?
हरेक आँख और नींद से गुज़रने के बाद—
उनकी आँखों में हक़ीक़त होते हैं
जागना और टूटना एक ही बात नहीं है
उनके टूटने पर रात और काली हो जाती है
हृदयहीन सपने!
तुम को प्यार करने वालों की एक पूरी दुनिया है
तुम्हारा हर क्षण इसीलिए बदल जाना स्वाभाविक है
तुम मेरे टूटे हुए हृदय का एक टुकड़ा क्यों नहीं ले जाते?
पंख लगाकर धरती पर रेंगने वाले सपनो!
तुम इन श्याम-श्वेत बादलों पर क्यों नहीं उतर आते?
एक ही गाँव में रहने वाले सपनो!!
अपने किसी टूटे हुए साथी के लिए झुंड बनाकर क्यों नहीं गाते?
बिखरे हुए टूटे हुए सपनो!
तुम चुपचाप कैसे टूट जाते?
तुम टूटकर क्यों नहीं चिल्लाते?
तीन
दिशा-जाल
फ़ॉस्टस :
भारी शोरगुल में ले जाकर मुझे पटक दिया
वहाँ विनाश था
अनैतिकता थी
आगे निकल जाने की गलाकाट प्रतियोगिता थी
पहले मैं घबराया फिर मैंने राहत की साँस ली
मुझे याद आया मेरे पास आत्मा तो थी नहीं
तो फिर कोई भीतर कैसे या भीतर में कराह कैसी?
बस लगता था कि गंधक की तीखी बू से मेरी नाक जल जाएगी और
मेरा सिर उठती हुई लपटों की गर्मी में फट जाएगा
वह सत्ता बार-बार उद्घोष करती थी
विविधता असंख्य मौक़ों के मौजूदगी का परिणाम है
और सिर्फ़ यही एक आवाज़ स्पष्ट सुनाई देती थी
शेष सारी आवाज़ें एक बड़े कमरे में गूँजती भन-भन
वह कई सवालों में घिरा हुआ था
और वे हर तरफ़ से उसके पास आते थे
बीलज़ेबब ने उसे बताया कि
नरक में दिशाएँ नहीं होतीं
यहाँ परछाइयाँ बहुत लंबी हैं और सूरज कभी नहीं उगता
यहाँ मरने के बाद कई बार मरना होता है
और जब मरना नहीं होता तो मरने की इच्छा होती है
यहाँ पर सबसे ज़्यादा पूछे जाने वाले सवाल हैं
क्या कहें? क्या करें? कहाँ जाएँ? कहाँ न जाएँ?
यहाँ हर मंज़िल नाराज़ है और हर रास्ता ख़फ़ा
यहाँ चुराए हुए संगीतों पर सधे हुए गीतों का शोर है
और हर तरफ़ से लाल आँखें किए हुए आकाश
ऊपर देखने के लिए मना करता है
यहाँ अकेली आत्माओं से अधिक ख़ाली कोने हैं
वे नारे देते हैं और वे नारे आवाज़ें नहीं
शोर हैं और उनको कोई नहीं सुनना चाहता
धीरे-धीरे उसने अपने मन को समझाया
जब वे जर्जर किवाड़ों में बाँबियाँ बनाते हैं या
पुरानी किताबों में पड़कर उनको खाना शुरू कर देते हैं
विनाश की बात तब दीमकों के समूह में कौन करता है?
और उनमें अगर समझने की क्षमता नहीं है—
तो सीलन लगी काठ को छोड़कर वे क्यों नहीं लग जाते ज़ंग लगे लोहे में?
कौन हैं वो मच्छर जो दूसरों का ख़ून चूसना अनैतिक समझते हैं?
कौन हैं वे फूल जो बग़ीचे में नहीं रोपे जाने पर खिलना छोड़ देते हैं?
कौन है वह इंसान जो बाक़ियों के मुक़ाबले तेज़ दौड़ सकने के बावजूद
बाक़ियों के बराबर दौड़ता है?
और कौन हैं वह—
जो दीमक लगी किताब
मच्छरों से भरी हुई नींद
नागफनी के फूल
और अपने से आगे निकल गए आदमी से समझौता नहीं कर लेता?
प्राबल्या :
जिसके अभाव में झुकने पर बना रहता है टूटने का डर
मैं मानती हूँ सूखी जगहों में होता है एक अभाव
जिसमें वही नमी रहती है जो सूखे को खोजती है
सूखे की अपनी कहानी है और नमी उसका दुर्भाग्य है
महर्बुद्धि फ़ॉस्टस!
क्या तुमने वहाँ खड़े होने की कोशिश की?
क्या तुमने नहीं सोचा कि समझौता करना
ख़ुशियों के भीड़ की चुप बग़ावत पर तोपों से गोले बरसाने जैसा है?
प्राभवत्या :
क्या बेतुकी बात है यह—?
उस सूखे रहने के ज़माने में जब
आस-पास चीज़ें इतनी झुराई-बुझी थीं
कि उनमें कुछ भी सोख लेने की होड़ मची थी
डॉक्टर! क्या तुम एक कथरी जैसे नहीं थे?
एक-एक बूँद से भीगते और भारी होते हुए
क्या कभी तुम धरती के साथ
बादलों के नीचे बारिश के लिए कभी इंतिज़ार और
कभी उसकी खोज में भटकते हुए एक ज़माने का सूखा लिए हुए पता नहीं
कितनी ही अनजान जगहों पर नहीं गए कितनों से नहीं मिले
जिन्होंने हो सकता था तुमको सिखाया होता
सारी कथाएँ अपना-अपना भाग्य लेकर आती हैं
जैसे नदियों के साथ-साथ चलती है समुद्र की गहराई
हर ठोस हक़ीक़त का एक आसमान भी होता है ठीक वैसे ही
फ़ॉस्टस!
तुम उलझने में अपनी बहादुरी मानते हो
लेकिन सच तो यह है कि गुड़ में चिपके चींटे को भी
कुछ देर तक उलझना ठीक लगता है
कितनी भी प्यास लगी रहे
कितनी भी देर से लगी रहे
लेकिन अंततः कोई भी एक दुनिया के
सारे रसों का उपभोग करने में असमर्थ होता है
कोई भी तृष्णा इस दुनिया से बड़ी नहीं
क्योंकि पूर्ति के समस्त साधन यहीं हैं
फ़ॉस्टस :
जहाँ स्रोत हैं
साधन वहीं होंगे
तृष्णाओं का चरित्र सीमाओं को पार करना होता है
तो सीमाओं को वे पार करती हैं
जिनके साधन तो यहीं कहीं पड़े मिल जाते हैं लेकिन
वह मरियल टूटी-फूटी सड़क की तरह
किसी महादेश के बड़े से चौराहे पर जाकर मिल जाती हैं
मुझे तो साधन यहीं दिखते हैं
पर गंतव्य कहीं और नज़र आता है
इतनी सारी प्यास है—ये
अपनी परिणति को प्राप्त होने के लिए हमारी यात्राओं को प्रशस्त करती हैं
पूरी दुनिया को जीतने की आकांक्षा सिकंदर को जन्म देती है
मनुष्य—वह तो तृष्णाओं की पूर्ति का हेतु है
इसीलिए तृष्णाएँ अपने उत्तरों में विलीन नहीं होतीं
बल्कि सटीक उत्तरों की प्रचंडता से लथपथ हो नाच उठती हैं
वे अस्तित्वों के न होने से घबराती नहीं हैं
और उनका निर्माण कर डालती हैं
और आदमी का कातर मन है कि
उसको भी खोने से डरता है जो कि है भी नहीं
वे अनंत हैं और उनसे वह शून्य बना हुआ है
जिसे तुम आसमान कहते हो
प्राभवत्या :
भीतर से एक तरंग फूटती है
वही प्रतिध्वनित होती है व्योम में
जैसे घन के प्रहार में ध्वनि छुपी होती है
क्या मनुष्य उन तृष्णाओं का भोक्ता भी नहीं?
और फ़ॉस्टस! हमारे जम्हाते हुए मुँह से अपने लिए वाह निकलवाकर
तुम्हारे जैसी औसतताएँ वैशिष्टय-निर्माण का स्वाँग रचती हैं
फ़ॉस्टस :
जब पेट का आयतन प्यास से कम हो तो
उसके आयतन को बढ़ाने में कोई हर्ज़ नहीं है
प्राभवत्या :
और वह कुम्हड़े के फल की तरह बेडौल होकर लटक आए तो—फिर?
प्राबल्या :
मैंने एक बार गुड़ के एक टुकड़े में काँटे लपेट कर
फेंक दिया था एक कुत्ते के सामने
जिसकी मिठास और काँटे चुभने के पीड़ा को वह सिर्फ़
कूँ-कूँ में ही अभिव्यक्त करता था
उससे न ही टुकड़ा छोड़ते बनता था
न ही खाते
क्या यह एक बढ़िया शोध था?
फ़ॉस्टस :
मैंने दिशाहीन भटकते हुए नरक में देखा
अजीब-ओ-ग़रीब शोधों को होते हुए
रंगीन आसमान वाली दुनिया में
एक बूँद अमृत हज़ार-हज़ार गरल के प्यालों पर भारी पड़ती है
वे एक बूँद अमृत में अब तक हज़ारों प्याले ज़हर मिला चुके थे
और ज़हर मृत होता जाता था
वो उसमें जितना ज़हर डालते उनको उतना ही अमृत मिलता
और फिर भी वे रुक नहीं रहे थे
प्राभवत्या :
और फिर भी वे रुक नहीं रहे थे क्योंकि
अमर होने से उनका कोई प्रयोजन नहीं था
वे ज़हर की ताक़त आज़मा रहे थे
क्योंकि उन्हें अमृत की ताक़त नहीं पता थी
प्राबल्या :
यह रसायन बाँटने में बड़ा लाभकारी है
अमृत की ताक़त मैं कहूँ?
अमरता परिवर्तन को रोक देती है—
परिवर्तन—वह चेतना का आत्म!
स्थिरता में क्या विरेचन संभव है?
फ़ॉस्टस :
लेकिन… लेकिन… लेकिन…
ज़िंदगी कोई क्लासिकल ट्रेजेडी नहीं है कि विरेचन हो गया और काम ख़त्म
यहाँ हमेशा मंच सजा रहता है और
अनेकानेक नाटक क्रिया बिंदु और समय के परे
एक साथ सब चल पड़ते हैं
और नाटकों के कोरस से मुक्ति नहीं मिलती विरेचन नहीं होता
अपने फिसल कर गिरने की स्थिति हास्यास्पद विसंगति उत्पन्न करती है
और पर्दों के उठने-गिरने में कोई पात्र कहीं भी दृष्टि से
ग़ायब नहीं होता और कोई भी रौशनी केवल एक चेहरे पर ही नहीं गिरती
जीवन का पाथेय कोई शुभकामना कोई आशीष कुछ नहीं
केवल नकारात्मक बुद्धि जो किसी नहीं का नकार खोजना जानती है
मैंने एक दिन पहरेदारों से छुपते-छुपाते
पी लिया कुछ बूँद उस रसायन का
उसके बाद से मुझे लगने लगा था—
इस नरक की हर इंच भूमि पर मैं सो चुका था
और हर गुज़रने वाली सल्फ़र की गंध से भरे झोंके से बतिया चुका था
मैंने बहुत कल्पनाएँ कीं किंतु
जब तक कुछ दिखाई नहीं देता कल्पना करना असंभव है
प्राभवत्या :
अब जब तुम डूब रहे हो फ़ॉस्टस!
आख़िरी बार कल्पना करो कि तुम एक नाव में बैठ कर
दूर क्षितिज में प्रवेश कर रहे हो
दूर पैंडेमोनियम के शृंग पर
युगों से नाचती थी—दीख पड़ती थी
धुएँ के बादलों से घिरी ज्वाला
हज़ारों स्वप्न अपनी टिमटिमाहट में भभकते थे
इन चराग़ों में जले थे रात कितने
आ रहे थे वेदना के घात कितने
ट्रॉय की हेलेन याद आती थी उसे
होता था जिन क्षणों में वह उद्विग्न
और उठकर बैठ जाता था
साथ उठती थीं झुकी आँखें
आँखें उठती थीं किसी को खोजने को—
तीरगी ऐसी कि काली पुतलियों ने
पोत ली है राख—लेकर रात से
कालिमा आँखों में भर आई हुई
स्वप्न के हैं बिंब सारे सो गए
स्वप्न में भी सो रहा वह
रौशनी किसकी हुई कोई ख़बर?—
क्या लिए थी आ रही सूनी डगर?
दृश्य नश्वर—कुछ नहीं थी—सभी विस्मृत
तब बहुत आराम था
तब कहाँ कुछ जीतने का काम था!
प्रज्वल चतुर्वेदी की कविताओं के प्रकाशन का ‘सदानीरा’ पर यह पाँचवाँ अवसर है। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखिए : दूसरे का बोझ ढोने वाला नहीं मरता अचानक | मैं उसकी राख से स्याही बना रहा हूँ | कहने का अभिप्राय से कितना लेना-देना है? | जरत्कारु
| डॉ फ़ास्टस और ब्रह्मवादिनी |
प्रज्वल की उम्र में मैं कटरा और कर्नलगंज की गलियों में यूं ही घूमा करता था. इलाहाबाद मतलब ही तब मेरे लिए कटरा, यूनिवर्सिटी, कर्नलगंज, कंपनी बाग और बैंक रोड ही हुआ करता था. हां कभी-कभी किसी धरना-प्रदर्शन में सिविल लाइंस या कचहरी जाना भी होता था.
मैं जब भी प्रज्वल को पढ़ता हूं तो सोचता हूं कि क्या लड़का है यह? इतनी सी उम्र में वह जो लिख रहा है—इस तरह की कविताएं तो आजकल कम ही दिखती हैं—जहां वह कवित्व के साथ अपने मर्म को उकेरता है तो चित्रकार के रूप में बदल जाता है.
मैंने उसे देखा है कि वह अपनी कविता के साथ जीता है. ऐसा लगता है कि वह एक अलग दुनिया बना लिया है—जहां एक कवि जाना चाहता है. मुझे रवीन्द्र नाथ टैगोर की कहानी ‘आखिरी प्यार’ याद आ रही है—जिसमें चित्रकार ने जो चित्र बनाया, उसे सबसे सर्वश्रेष्ठ चित्र माना जाता है लेकिन इसमें जो वह खोता है—वह अकल्पनीय है.
प्रज्वल ने लंबी कविताओं में ‘जरत्कारू’ के बाद दूसरा चमत्कार किया है. वह इस कविता में एक किरदार को वर्तमान की दुश्चिंताओं से जोड़ते हुए मानव की बेचैनी के साथ खेलता हुआ बच्चा नजर आता है—जो जानता है कि दुनिया फ़ोस्टस और ब्रह्मवादिनी के इतर शायद कहीं मौजूद हो. यह शिल्प के स्तर पर तो बेजोड़ हैं ही—इसमें कोई दो राय नहीं है.
कला के सौंदर्य को प्रतिरोध के सौंदर्य में परिवर्तित होना उसकी कविताओं की एक खास विशेषता है. वह एक साथ दोनों में आवाजाही करता है. कला उसके यहां आकर जो सौन्दर्य सृजित करती है—वह ठोंस नदी की नीवरता की याद दिलाता है, जहां वह बैठा है; वह एक शांत सी जगह हैं लेकिन दूर उसी पानी के गिरने की आवाज आती है—जो मधुर संगीत में बदलती है. यह मधुर संगीत ही उसकी कविताओं में प्रतिरोध है. इसे देखते के लिए वहां तक जाना होगा—जहां पानी पत्थरों से टकराकर गिर रहा है. वहां यह संगीत एक ऐसे प्रतिरोध में परिवर्तित होता है जो हिंसा नहीं गांधी बन जाता है—जहां वह असहयोग आंदोलन के साथ भारत छोड़ो आंदोलन भी करता है.
प्रज्वल पूरा कर आसमां खाली है—तुम उड़ो इतना कि नीचे का तुम्हें सबकुछ साफ़-साफ़ दिखाई दे.