लंबी कविता ::
प्रज्वल चतुर्वेदी
जरत्कारु
दिन से हारे हुए
तूफ़ान की घमंडी गरज में
युद्धरत-सेनाओं के मध्य
मंज़िल के उस पार
उद्दाम समुद्र के अंत:स्थल से होते हुए
रोती हुई कहानियों के लिए अक्सर
जहाँ आगे कुछ समझ नहीं आता जब
तब वहाँ होता ही है
एक रास्ता
एक रास्ता सामने
एक क़दमों के नीचे या
बीचोबीच
और गहराई में उतरा हुआ
यदि तुम कोई रास्ता खोज निकालो
तो उस पर दंभ मत करना आस्तीक
रास्ता स्वयम्भू है
उसके अनादि-अनंत होने पर तो
मैं नहीं कह सकती
परंतु ये रहे हैं तुम्हारे होने के पहले से ही
चूँकि वर्तमान नष्ट करके भविष्य देखने की परिपाटी का पालन मैंने भी किया है
ये रास्ते तुम्हारे न होने पर भी होंगे
बस जिस घास को तुम कुचलते
वो कोई और कुचलेगा
जिस पत्थर को तुम बाएँ पैर से ठोकर मारते
हो सकता है उसे कोई उठाकर किसी श्वान पर फेंक दे
तुम्हारी आँखों में किंतु दिखती है मुझे वही चमक
जो घड़ी की तीनों सुइओं को जानती हो
तो मैं तुमसे और क्या ऐसा कहूँ
पीछे मुड़कर तुम वहीं तक देख सकते हो
जहाँ से तुमने शुरू किया हो चलना
और भविष्य तो जानते ही ख़त्म हो जाता है
जरत्कारु जिसकी सूखती शिराएँ
मेरी सूखती शिराओं की प्रतिद्वंद्वी थीं
दो विलोमों के हमनाम हम थे
इसी ने हमारे हमसफ़र होने कि नियति को दृढ़ किया
और वासुकि ने तुम्हारे प्रादुर्भाव के लिए
मुझे अपने तिरोभाव की ओर धकेला
कभी-कभार कुछ कह देने की
प्रबल इच्छा का मोह त्यागना पड़ता है
कभी-कभी तो केवल इसलिए
कि जिससे कहने का मोह था
वही बहुत दूर जा चुका होता है
हो सकता है कि हो सुनने वाले उजालों की संख्या सैकड़ों में
लेकिन मुझसे कह सके
ऐसे किसी अँधियारे की कोई शक्ल नहीं है
अँधेरा अपने आपको देखने देता है
अपने भीतर नहीं
जो ख़ुद ही ऐसे कारा में फँसे हों
जहाँ दुर्बल अंतस अँधेरे में शक्लें गढ़ता जाता हो
वे कैसे कहेंगे कि छँटेगा अँधेरा
दिन से हारे हुए हैं वे ख़ुद ही
क्या पाएँगे आखिर वे किसी की दारुण कथाएँ सुनकर
भले ही तुम उसको न टाल सको
या हो सके कि वह परिवर्तन लाना ही तुम्हारी नियति हो
लेकिन तुमको जानना ही होगा इतिहास
भविष्य को टालने के उपक्रम में
आसमान से आने वाली आवाज़ों से
केवल आसन्न संकट के सामने से
उड़ जाने की चेतावनी मिलती है
उड़ जाने के लिए बेहद जगह देने वाला
आसमान किसी को उड़ने के लिए पंख नहीं देता
आस्तीक! वासुकि मानते हैं कि
सब ठीक करने के लिए
तुम्हारा होना ज़रूरी था
लेकिन क्या तुम जानते हो सब ठीक करने का अर्थ
घाव देने वाले वक़्त का हवाला देते हैं
हँसो जब तक ठीक नहीं हो जाते
मौत का हवाला देते हैं फूल देने वाले
कम से कम मुरझाने तक तो ख़ुश रहो
वक़्त चाहने वालों के पास होता है वक़्त ही वक़्त
इसीलिए वक़्त चाहने वालों को कोई वक़्त नहीं देता
बस देने वाले देते हैं हिदायत
मौत जीवन का परिशिष्ट है
साँसों का मार्ग भटक जाना भी
मौत चाहने वाले ऐसे नहीं मरते
सब ठीक करने का कोई मतलब नहीं होता है
सब ठीक करना पुराने रास्तों पर
पूर्ववत् चलने से नहीं निकलता
सब ठीक करने के लिए
रुकना कोई रास्ता नहीं होता
सब ठीक करने का मतलब घाव छुपाकर
फूलों की तरह मुस्कुराना
वक़्त रहते वक़्त बचाना
वक़्त के ख़त्म होते-होते तक बचे रहना
वक़्त रहते मर जाना
सब ठीक करने का मतलब होता है
सब उजाड़ देना
जीवन को विस्तृत करने के लिए
जो कुछ ठीक-ठाक है उसे मार देना
ग़लत को ग़लत कहने का अधिकार
क्योंकि हम साँप थे
सप्तर्षियों ने नहुष को हमारी तरह हो जाने का शाप दिया
इतिहास ने हमारी जाति को सदैव धोखे के पर्याय में जाना
उन्होंने हमारी क्रूरता का दोष हमारे ठंडे रक्त को दिया
महात्मा वासुकि ने हमें तथाकथित होने से बचाया और
हमने माता कद्रू के लिए उच्चै:श्रवा की पूँछ को अपनी त्वचा का रंग नहीं दिया
तब हमारे स्वभाव का रंग हमारी त्वचा पर परिलक्षित होता था
कद्रू कोई माता नहीं सिर्फ़ एक ईर्ष्यालु बहन थी
जिसने समय-समय पर सिर्फ़ हमारा लाभ उठाया
उसने हमें सिर्फ़ भीरु बनाया
और घास-पात के नीचे से लुक-छिपकर चलना सिखाया
हमारे अन्य भाइयों ने उसका लक्ष्य सिद्ध कर ही दिया था
क्या उसकी अहम् की तुष्टि के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं था?
मुझे लगता है हमारा साँपत्व उसी की देन है
विनता की भी हाय हमें अगर लग जाती
तो क्या पता अपने ही ज़हर से हम अपनी ही जिह्वा जला लेते
देखो अमृत चाटने की उम्मीद के साथ हमारी जीभ भी दो में विभक्त हो गई
और हमारे कानों ने हमें ही एक साथ दो जुदा-जुदा बातों को कहते हुए सुना
देखते ही देखते हम विरोधाभास की विसंगतियों से बहरे हो गए
हमें खाण्डव से बेमुरौवत मार-मारकर खदेड़ दिया गया
और अँधेरे की शरण में हम पाताल की अंतहीन हमरंग रातों में आ गिरे
जिसे हमने अपनी स्मृति से निकले रंगों में सजाया
आर्द्र कोमलता का स्पर्श हमने चुनचुनाती हुई उमस में पाया
हमें झूठ के पक्ष में दिखाने के लिए हमसे पैर भी छीन लिए गए
हम अपनी उन्हीं छातियों के बल पर रेंगते रहे
जहाँ हमारा एक सबसे प्रिय कोई सिर रखकर नक्षत्रों को
हमारे साथ गिनने के लिए तरसता रह गया
हम कि जिनके मुंह को कुचलना सर्वथा सुकर था
हम कि जिनकी रीढ़ तोड़नी सबसे आसान थी
हमारी उसी रीढ़ के दम पर उन्होंने अमृत के शोध में मंदराचल को घुमाया
उसी रीढ़ ने त्रिपुर के अंत के लिए पिनाक को झुकाए रखा
हमारी माता ने हमारे सबसे शक्तिशाली भाई को हमारा शत्रु बनाकर
हमारी रीढ़ के अस्तित्व को ही समाप्त कर देना चाहा
उसे अपने सौत होने का हमेशा भान रहा और गरुड़ के सौतेले होने का
कद्रू के इस अन्याय की हाय-हाय जब होनी शुरू हुई
तो इससे हमें कुछ विशेष लाभ नहीं हुआ
क्योंकि उसके पितामह उस समय ब्रह्मा थे
और उसके पति ही उसके पितृव्य थे और हमारे पिता भी
वह लौटकर नहीं आए
एक और मुमुक्षु की लालसाओं ने हमें सिकुड़े हुए
अंतहीन क़ैद के सुपुर्द कर दिया
हम साँप थे तो क्या हमें ग़लत को ग़लत कहने का अधिकार नहीं था?
हाय-हाय करते हमारे उच्छ्वास डरावनी फुँफकारों में बदल गए
और छल न करने के लिए मिले हुए शाप की टीस हिसहिसाहट में
हम कभी यह नहीं जान सके कि आपस में घुले हुए
अमृत और विष की तासीर क्या होगी
हम चूँकि साँप थे हमें सही का चुनाव करने के लिए
जनमेजय के सर्प-सत्र यज्ञ में जल जाने का शाप मिला
कोई हमारा हमनाम था कुछ हमारे हमरंग थे
हमदर्द हम केवल अपने थे
हमने आज को भी ऐसे ही सँजोया
जैसे कल भी हमें इसी को जीना हो
उसकी महत्त्वाकांक्षा और तक्षक हमारे अबोध दुश्मन थे
जिससे हमें अपनी रक्षा करनी पड़ी और
जिसकी रक्षा हमें करनी पड़ी क्योंकि हमने उसे भाई कहा था
उत्तंक के सामने हाथ-पाँव जोड़ने पड़े
हम इतने तिरस्कृत थे कि
एक ओर हमारे शव से परीक्षित् ने शमीक का अपमान किया
भला होता कि उत्तरा के गर्भ से उत्पन्न परीक्षित् सदैव से मरा हुआ होता
तो आज हमें यह दिन न देखना पड़ता
हो सकता था कि किसी गंधर्व के विमान में चिंताहीन
विहार कर रही होती मैं इस क्षण
क्या किसी तपोनिष्ठ द्वारा जनमेजय से नहीं कहा गया—
अनुपश्य यथा पूर्वे प्रतिपश्य तथापरे
सस्यमिव मर्त्यः पच्यते सस्यमिवाजायते पुनः
अथवा उसके जीवन में ज्ञान की न्यूनता और
शापों को पूरा करने आधिक्य रहा
उसके पितामह को तो
युद्ध की वेला में अकस्मात् ही बताया गया था—
नायं हन्ति न हन्यते
पर ये सारी बातें सुनकर भूलने के लिए हैं
वहीं दूसरी ओर शृंगी ने
अपने शाप को पूरा करने के लिए तक्षक को निमित्त बनाया
क्या तक्षक केवल शृंगी के अपमान का बदला लेता?
इसमें हमारा साझा अपमान था
हमें बचाने के लिए कोई विष्णु खंभा तोड़कर नहीं आएगा आस्तीक!
लेकिन तक्षक अगर ब्राह्मण की बात को मिथ्या होने देता
तो उसका सुदर्शन ज़रूर यहाँ का एक चक्कर लगा गया होता
सरीसृपों से उसको बड़ा वैर है और ब्राह्मणों का बड़ा चाटुकार
भृगु की लात वह अपने वक्ष पर सह गया था
उसने पहले भी ग्राह का सिर काट लिया था तब उसने नहीं देखा
उसका भक्त गज यदि ग्राह को कुचल देता तो क्या होता
गरुड़ को उसने अभय दे दिया
शेष पर तो इसलिए सोता है ताकि हमारी सहानुभूति भी उसको मिले
तक्षक बचपन से ही तीखा बोलने वाला डरपोक था
लेकिन उसे स्वीकार नहीं था कि विनता दासी बने
और उसको कद्रू के शाप का भागी होना पड़ा
जिन तमाम शरारतों को देखकर आह्लादित हुआ जा सकता था
वही उसके लिए अभिशाप हो गईं
और उसका ख़ून बाँटने के कारण
हमें भी भागीदार होना पड़ा
जरत्कारु बनाम जरत्कारु
आस्तीक!
तुम ही हमारी आख़िरी उम्मीद हो बेटे!
ख़ूब कमर कसकर तैयार होना होगा
तुम्हें इस यज्ञ को रोकने के लिए
इस यज्ञ में होता च्यवनवंशी चंडभार्गव होंगे
उद्गाता कौत्स होंगे ब्रह्मा जैमिनी और पिंगल अध्वर्यु
और महानतम विद्याधरों में शायद उद्दालक
प्रमतक और असित
देवल एवं श्वेतकेतु हों
और पापाय परिपीडनं कहने वाले व्यास भी
मुझे शंका होती है कि इनके सम्मिलित अहम् के सामने
तुम केवल अदने-से बालक
कैसे रोक लोगे ख़ुद को अभिभूत होने से?
तुम्हारे पतले-पतले हाथों-पैरों को देखकर
मैं आश्वस्त नहीं हो पाती कि
तुम्हारे पास सजग और मज़बूत तर्क होंगे
मुझे रह-रहकर यह बात सालती है कि
मुझे व्यावहारिकता के लिए तपस्या करनी चाहिए थी
ताकि तुम्हारे पिता की अनुपस्थिति से
तुम्हारी सामाजिकता प्रभावित न होती
और तुम्हें अपनी माता के नाम से जाना जा सकता
तुमको फिर भी निस्पृह देखती हूँ तो मुझे
थोड़ी हिम्मत मिलती है
खेलने से अतृप्त बच्चा सोचा करता है
बहुत जल्दी बदलते हैं रात और दिन
जीवन से अतृप्त वृद्ध सोचता है
बहुत जल्दी बदलती हैं साँसें
मुझे तुम्हारे पिता की आज्ञाओं का पालन करने में
यदि पल भर भी देर हो जाती
तो वे मुझे फटकारते हुए कहते कि
धूल ही समय है
एक निमिष के चौथे हिस्से में
ब्रह्माण्ड में बीसियों सहस्त्र नए नक्षत्र चमक उठते हैं
मुझे इस बात पर अब यक़ीन आया करता है
जब मैं तुम्हारी चंचल पलकों के पीछे
तुम्हारी चमकती हुई गोल आँखों को देखती हूँ
उसकी सिर्फ़ नींद तोड़ने पर वह चला गया
उसे जगाने के बाद मुझे लगा
जिसका अहंकार इतना बड़ा हो कि
सूर्य उससे अर्घ्य लिए बिना नहीं डूबेगा
उसकी तंद्रा को तोड़ना ही पर्याप्त है
साँझ होते हुए
जरत्कारु की नाड़ियाँ
स्वर्ग-प्राप्ति के लिए उपयुक्त रही होंगी
वह तो चिल्ला-चिल्लाकर कहा करता था कि
वह पितरों को अपनी तपस्या के बल पर मुक्ति दिला देता
लेकिन उसकी तपश्चर्या ने
एक मड़ई छाने की योग्यता भी नहीं छोड़ी उसमें
ऐसा था उसके तपस्या का पुरुषार्थ
कि उसने मुझे भीख में माँगकर भीख की तरह ही रखा
और मेरे भरण-पोषण का दायित्व उठाने से मुकर गया
आस्तीक! अपने बीते कल को मुक्ति दिलाने के लिए तुम
कभी भी किसी के भविष्य को बाँधकर मत रखना
कल कब का मुक्त हो चुका होता है
कल की क्षुधा कल ही मर जाती है
गर्त में गिरने से मत घबराना
पाताल ही हमारे मुक्ति का लोक है
और सांसारिकता का त्याग करके घर लौटने वाला ही सुखी होता है
पलायन में मुक्ति नहीं होती
काश! जरत्कारु इतना तो समझ पाता
आसमान के किसी एक टुकड़े को
अपने प्राण का आधार नहीं बनाना चाहिए
अपने सामर्थ्य को सिद्ध करने के लिए स्वर्ग जाना मूर्खता है
आस्तीक! स्त्री के प्रेम के सम्मुख कोई भी स्वर्ग बहुत छोटा है
उसकी भुजाओं का आस्तरण किसी भी तपस्या के योग्य
किसी भी सिंहासन से अधिक सुकोमल
उसकी प्रतीक्षारत अनिमिलित आँखें
जहाँ वह तुमको बैठा सकती है
हम दोनों ही पिताओं द्वारा जन्म के पूर्व से ही परित्यक्त हैं बेटे!
हम दोनों की माँएँ थीं
पर मेरी माँ का होना न होना तो बराबर ही था
उसने हमें साँप बना दिया
और जरत्कारु ने मुझे संबोधित करते हुए
कभी भामिनी या प्रिया नहीं कहा
वह मुझे हमेशा से सर्पिणी जानता और बुलाता रहा
जैसे कि उसके बाहर
मैं केवल भीख में मिली उसके पितरों की मुक्ति थी
मैं नागकन्या थी और अपने वंश में प्रथम
मेरा दिल जीत लेने के लिए
कोई भी अपना प्रेम निवेदित करते हुए कहता
उसकी आँखें शीशे की थीं और मैं उनमें चमकने वाली रौशनी
उसका विचारशून्य मस्तिष्क
मकड़ियों के जाले में आच्छादित अँधेरा कमरा
और मैं वो विचार उस कमरे में जो हवा और खिड़की है
उसका स्वप्न अगर हमारे मिलने का एकांत नहीं है तो
उसका देखा हुआ सब भूल जाने के योग्य
लेकिन मैं सिर्फ़ इनकी कल्पना ही कर सकती हूँ
जैसे दरिद्र किंतु स्वाभिमानी औरतें
अपने आँगन में आग सुलगा उस पर बटुआ रखकर
पानी उबालते हुए
पड़ोसियों के मन में उठते हुए धुएँ के साथ
भ्रम उत्पन्न करती हैं कि
आज उनके यहाँ चूल्हा जला है
आस्तीक! आकाश को नीचे धरती
उसके छाती पर से गिरे बादलों की तरह दिखती है
और धरती आसमान को अपने
सूखकर भाप हुए दुखों में
अयथार्थ कल्पनाएँ हमें क्षण भर को आराम देती हैं
अपने अबोधपन में जब तुमने हमारे यहाँ आते-जाते वासुकि को
पिता कहकर संबोधित किया था वह हँस पड़ा था
मेरी हँसी कातर हो चली थी
तत्त्व और ब्रह्म का सारा ज्ञान रखने वालों ने
एक कातर हँसी के पीछे कोई मीमांसा नहीं खोजी
उनको लगा हमारा हृदय पत्थर का है
जहाँ नासूर नहीं हो सकता
मुझे सूखी हुई वृद्धा जानकर कभी मुझ पर तरस मत खाना
मैंने इस अवस्था को प्राप्त होने के लिए तपस्या की है
मैं किसी मेनका की तरह अपने संतान के लालन-पालन का दायित्व
शकुंतों के लिए छोड़कर
स्वर्ग की ओर नहीं भागी
अफ़सोस! मैं स्वर्ग की ओर नहीं भागी!
किसी रात को मैं भी
आसमान के दो लाल छोरों के बीच
उड़ने वाली चिड़िया के साथ
प्रतीक्षारत रही स्याह आसमान को
रंग बदलते हुए देखने के लिए
तुम्हारा कल्याण हो
स्वस्ति नोऽस्तु प्रियेभ्य:
तुम रौशनी खोजो और लेकर चले जाओ
जनमेजय के सर्प-सत्र में
रास्ते की खोज में शायद तुम भटकते हुए खो भी जाओ
लेकिन आस्तीक! रौशनी की खोज में
भटकते हुए तुम नहीं खो सकते
यदि तुम भी उसी की इच्छा रखो
जिसकी इच्छा बहुतेरों को है
तो देने वाले के लिए मुश्किलें पैदा होंगी
जिसको सभी चाहते हैं
यदि वह तुम्हें मिल जाए
तो उसके साथ बहुत सारे आँसुओं और शापों का बोझ
तुम्हारे सिर पर लद जाएगा
उसी को पाने के लिए जीवन भर प्रार्थना दूसरों से छल
और जीवन भर की प्रतीक्षा कायरतापूर्ण होगी
रास्ते में किसी का अहित मत करना
निरपराध अगर कुतिया भी हो तो उसकी हाय लगती है
जनमेजय को यह ज़रूर याद दिलाना
हमने कभी भी अश्वसेन और उसकी माँ का प्रतिशोध लेने के लिए
कोई यज्ञ नहीं किया
यदि मंत्रों के बल पर इंद्र अपने सिंहासन समेत गिर सकते हैं
तो क्या अर्जुन पूरा का पूरा स्वर्ग लिए नीचे नहीं गिरेगा
और तुम्हारा पिता जरत्कारु पछताते हुए गिरेगा
वहाँ मौजूद ऋत्विजों से कहना कि यज्ञ में जल रहे साँपों के
बहते मेद से वे अपना अभिषेक करें और हमारा कल्याण हो
एक ऐसे यज्ञ को वे हमारे लिए भी बनाएँ जिसमें
यज्ञों के सारे उदाहरण और विधियाँ इसमें धू-धूकर जल उठें
जिसमें हमारा परित्याग करने वाले पिता पति
जलकर भस्म हो जाएँ और हमारा कल्याण हो
उसमें जलकर भस्म हो जाएँ सारे शापों में छिपे हुए अहंकार
उत्तंक का क्रोध भभकता हुआ चिटचिटाए
मदयंती के कुंडलों को यज्ञ की चिता पर से कोई डोम ले जाए
माताओं की क्रूरता समिधाएँ बनकर
उसमें धधक कर बुझ जाएँ
और हमारा कल्याण हो
खाण्डव की प्रचंड अग्नि का होम
अश्वसेन की माता के ठंडे रक्त से हो
यज्ञ के धुएँ से उच्चै:श्रवा की पूरी देह काली पड़ जाए
कृतघ्नताओं और देवताओं का नाश हो
अमृत को मिट्टी में मिलाकर उससे
उस यज्ञ की वेदिकाएँ और स्तूप बनें
समस्त लोकों का नाश हो जाए
उनके साथ उनके मिल जाने की सारी लालसाएँ
सुलग-सुलगकर बुझ जाएँ
और हमारा कल्याण हो
जनमेजय और उसके सारे भाई
अपने सिंहासनों समेत उस यज्ञ में भून दिए जाएँ
हमारा कोई नृप न बचे और हमारा कल्याण हो
इंद्र के वज्र से दधीचि की आत्मा मुक्त हो
विष्णु के सुदर्शन के आर निस्तेज हो जाएँ
दिव्यास्त्र का सारा ज्ञान उसमें घी की तरह गिरे
हमारा कल्याण हो
शिष्यों को सठियाने की उम्र तक
अपने आश्रम में रखने वाली परंपराओं का नाश हो
अन्याय के प्रति चुप रहने वालों की वाणी का नाश हो
तटस्थ रहने वाले इस यज्ञ में गिरने वाली वसाओं में डूब जाएँ
हमारा कल्याण हो
हमें भीख में माँग कर लाने वालों के हाथ
उसी यज्ञ की अग्नि से जलें
सहवास के पश्चात् मुँह फेरने वालों की आँखें फूट जाएँ
जो पितरों के उद्धार के लिए विवाह करते हैं
उनके पितर इस यज्ञ की आहुतियाँ बनें
हमारा कल्याण हो
ऐसे महान् यज्ञ का धुआँ
सभी को व्याप्त करता हुआ क्षमाशील बनाए
जिसको उठता हुआ देखकर विनता हमें माफ़ करें
हम जरत्कारु को माफ़ कर सकें
तक्षक को जलाकर मार देने की
आप सबकी इच्छाओं का शमन हो
हमारे मरे हुए कुटुम्बियों की आत्माओं को शांति मिले
और हमारा कल्याण हो
धरती अपने को आसमान से गिरे हुए बादलों का टुकड़ा मानना छोड़कर
अपने ठोसत्व को स्वीकार ले
हमारी बाँबियों से अँधेरे को ये धुआँ खदेड़ दे
और हमारा कल्याण हो
इस यज्ञ से उठिए और हमारा यज्ञ करवाइए
हम आपको तक्षक का सारा धन दे देंगे
जिससे आपका भी कल्याण हो
आस्तीक! उन्हें अपने दु:खों से नहीं
उनके दु:खों से संबोधित करना
और देखते रहना कि तुम्हारी माँ की इच्छाओं से
अलग ही दिखें तुम्हारी प्रार्थनाएँ
तुम्हारी वाणी से तुम्हारे पिता की अनुपस्थिति का एहसास
उनको न हो
वे विद्याओं का सम्मान कम
और अहंकार अधिक करते हैं
उनका दंभ देने में दिखता है
और उनके पैर उनके कमंडलों की भाँति गोल होते हैं
और उनके कपड़ों पर जो पीलापन तुमको दिखेगा
वह छिपे हुए सत्य का भय है
तुम्हारा जन्म जिसके लिए हुआ
जाओ उसे पूरा करो
वैसे तो जन्म का कोई उद्देश्य नहीं होता
लेकिन जाओ
जाओ और जरत्कारु जैसे स्वार्थियों को समझाओ
यदि उनसे प्रतिशोध लिए जाएँगे
तो वे कंदराओं में बाँबियाँ बनाकर रहना आरंभ कर देंगे
उन हत्यारियों को रोको
जाओ!
तुम्हारा कल्याण हो!
प्रज्वल चतुर्वेदी की कविताओं के प्रकाशन का ‘सदानीरा’ पर यह चौथा अवसर है। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखिए : दूसरे का बोझ ढोने वाला नहीं मरता अचानक | मैं उसकी राख से स्याही बना रहा हूँ | कहने का अभिप्राय से कितना लेना-देना है?
यह सुदीर्घ कविता बहुत बड़ी व्यंजनाओं की खेवक है। बेहतर होता कि इसके लिए कोई परिचयात्मक टिप्पणी या नोट दिया जाता। क्योंकि, जरत्कारू जैसे मिथकीय पात्र और उनकी कथा इतनी लोकप्रिय नहीं हैं।
बहरहाल, प्रज्वल को बधाई।
मुझे जरत्कारु कविता बेहद अच्छी लगी।लेकिन जरत्कारु मिथ्या पात्र मैंने कभी नहीं सुना। बधाई