कविताएँ ::
आयुष चतुर्वेदी

आयुष चतुर्वेदी

धुआँ

हम अजनबी अकेलों को देखकर खिलखिलाए
और परिचित जोड़ों को देखकर
मुँह छिपाए फिरते रहे

हमारे लिए बनाई गईं पुलिस-चौकियाँ
मेट्रो स्टेशनों के भीतर

अजायबघरों के सबसे मामूली संदूक़ों में
रखा गया हमारा प्रेम

नीलामी हुई तो हम सबसे सस्ते बिके

तुमने कहा—
तुम इतने ज़्यादा अच्छे हो कि
तुम्हारी पूजा की जा सकती है

और हम झगड़ने लगे
यह एक देवता और प्रेमिका की बहस थी

दैवीय और दीमकीय प्रपंचों से भरे कमरे में
देवता हार गया
तेल-मसालों से भरी मध्यवर्गीय बकचोदियों से ऊबकर

मैंने कहा—
माचिस की तीली बुझा दो
बुझा दो माचिस की तीली
अगरबत्ती मत जलाओ
अगर बत्ती जलाओगी तो
अगरबत्ती का धुआँ दिखेगा

सुगंध झूठी है

यह कहते हुए मेरी आँख खुली…
बिस्तर अकेला था
मैं भी
तुम जा चुकी थीं

अब हममें एक मुकम्मल नींद
जितनी दूरी थी

मैंने तुम्हें बुलाना चाहा
पर आवाज़ नहीं निकली
बाहर निकला तो
सिर पर फोड़ा गया नारियल
नाक में डाला गया पंचामृत
और दूध से धोया गया मेरा लिंग

मुझे लगा मैं अपवित्र हूँ
पर मैं तो देवता हो चुका था

अगर मुझे शिव माना गया
तो तुम सती हुईं
मैंने तीसरी आँख पर ज़ोर डाला
तो सिर-दर्द होने लगा

मैंने नई पार्वतियाँ नहीं ढूँढ़ीं
हिमवानों को श्वसुर नहीं बनाया
भाँग-गाँजा कुछ भी नहीं पिया

दस रुपए का धुआँ ख़रीदा
और भस्म हो गया
अजायबघर के सबसे मामूली संदूक़ में।

तकबीर

जीवन में समाकर
जब हम यह उम्मीद कर रहे थे
कि जीवन से कुछ अच्छा निकलेगा
जीवन ने हमें निराश किया

तुम्हारे पूर्व-प्रेमियों की क़तार में
सबसे आगे खड़ा था मैं
तुम्हें सबसे पहले चाहा था मैंने

पेड़ों, रास्तों, पानी, फूल, रौशनी, चाँद जैसे रूपक चुनकर
तुम्हारे जूड़े में एक कविता खोंसने की चाह में
मरा जा रहा था मैं
तकबीर का नारा लगा रहा था
और मारा जा रहा था

एक मुसलमान का हिंदू से प्यार करना
ज़्यादती से बढ़कर एक अपराध बन चुका था
जबकि मैं कह भी रहा था—
तुम्हें मांस पसंद नहीं

शहर की वे गलियाँ
जो महकती हैं तुम्हारे पिता को
उन्हीं में है मेरा घर, मेरे पिता, मेरे भाई-बहन

तुम्हारे पिता मांस नहीं खाते
लेकिन मैं उन्हें वंचित नहीं कह सकता

तुम्हारे पिता मुझे मेरे पिता जैसे ही लगे
जैसे मांस सिर्फ़ खाने जैसा

मैं अपनी कामनाएँ तुम्हें समर्पित करता हूँ
मेरे बाद तुम्हारे सभी प्रेमी हिंदू हैं
भविष्य में एक मुसलमान जीवन
तुम्हें अप्रिय लगता

लेकिन मेरी प्रिय,
मैं अब किसी भी दिन मारा जा सकता हूँ
जबकि कश्मीर में नहीं है मेरा घर
किसी दूसरे शहर की उन गलियों में है
जो तुम्हारे पिता को महकती हैं
तुम्हारे दादा जहाँ अस्सी साल के जीवन में
कभी नहीं गए

मेरे बाद तुम्हारे सभी प्रेमियों से
मुझे सहानुभूति है
उन्हें अच्छी भाषा मिले
तुमसे प्रेम मिले
हालाँकि मैं अब कभी भी मारा जा सकता हूँ
तुमसे प्रेम करना उतना बड़ा गुनाह नहीं
जितना यह कि
मेरे शरीर में बकरों, मुर्ग़ों और बड़े का गोश्त है

तथ्य अपाच्य होने पर हत्या हो रही है
पेट की शनाख़्त पोस्टमॉर्टम से पहले हो रही है
शहर की मंडियों में सब्ज़ियाँ
अब महँगी हो चली हैं
दुर्घटनाएँ बढ़ रही हैं
कविताएँ घट रही हैं
एक वायरस दो से तीन बार आकर जा चुका है
लेकिन तब भी अपनी आसन्न गिरफ़्तारी से
डरता हुआ मैं
इसी बात को लेकर परेशान हूँ कि
मैं यह खुलकर नहीं कह सकता—
मैंने तुम्हें सबसे पहले चाहा था।

अयोग्य

यह अयोग्यों का समय है साथी
प्रेम से लेकर राजनीति में उनका ही है वर्चस्व
सारे साम्राज्य हैं उनकी ही बपौती
उनके ही अधीन है
हमारी टुकड़े भर आज़ादी

और साथी अयोग्यता का असर ग़ज़ब का है
हो सकता है
तुम्हारी माँ को मिला हो अयोग्य पति
तुम्हारी प्रेमिका को एक अयोग्य प्रेमी
और तुम्हें कभी मिले एक अयोग्य दामाद

अयोग्यता आसानी से मालूम नहीं चलती
सरकारी प्रमाण-पत्र भी अब देर से आते हैं
जीवन प्रमाण-पत्रों की प्रतीक्षा में ख़त्म होता है

‘नॉट फ़ाउंड सूटेबल’—
अब केवल अकादमिक मुहावरा नहीं है
कहने को तो कहा जा सकता है—
हमारा सुप्रीम लीडर भी अयोग्य है
लेकिन जोखिम है साथी

जोखिम उठा सको तो ठीक
वरना जिम्मा उठाओ कि अयोग्य बनोगे
अयोग्यता साबित करो तो
तुम कहीं भी पहुँच सकते हो
कहो कि मैंने पढ़ी है—
जनरल जी.डी. बख़्शी की किताब
और तुम देखोगे—
तुम प्रोफ़ेसर बन रहे हो
कहो कि तुम लड़कियाँ छेड़ते हो
तो हो सकता है
तुम्हें दिला दी जाएँ असंख्य प्रेमिकाएँ

यह अयोग्य समय है साथी
और योग्यों के पास है
केवल यही उपाय
कि वे अयोग्य बनें
और कहें—
जीवन कितना सुंदर हुआ है आजकल
लोग आज भी
एक गाल पर थप्पड़ खाने के बाद
दे देते हैं दूसरा गाल
फिर तुम देखोगे कि
तुम्हें भी मिल जाएँगे
कई सरकारी चुम्बन

लेकिन तुम्हारी माँ को
यह पसंद नहीं आएगा साथी
तो देख लो
जोखिम उठा सको तो ठीक…


आयुष चतुर्वेदी की कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। इससे पूर्व उनकी कुछ कविताएँ सोशल नेटवर्किंग साइट्स के कुछ साहित्यिक पृष्ठों पर नज़र आई हैं। उनसे ayush2411.hindustan@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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