कविताएँ ::
अंशिका निरंजन
बुनाई नहीं
जो कुछ भी बुना गया है
और नहीं लगता है ठीक
उधेड़ा जा सकता है।
सच है यह बात
और
बात बस बुनाई की नहीं है।
माफ़ी
उन्होंने छोटी-छोटी
ग़लतियों और कमियों पर भी
दिखाया देर तक ग़ुस्सा
दिए देर तक ताने
और फिर चाहा
कि औरतें दिल बड़ा करके
उन्हें कर दें माफ़!
औरतों ने उन्हें माफ़ भी किया
मगर हमेशा दिल ही नहीं बड़ा करके
कभी-कभी दुनिया छोटी करके भी किया माफ़।
राजनीति
सभी गुटों की अपनी पाबंदियाँ हैं,
सभी गुट अपनी पाबंदियों में हैं।
उस दिन उदासी
उस दिन
मन सुकून न पा सका—
नदी देखकर भी!
उस दिन
उदासी नदी से
बड़ी हो गई थी।
एक दिन
मैं कहीं से लौटकर
ठिठक गई पुलिया के पास
एक दिन
बमुश्किल दो मिनट!
घास पर बैठी चिड़ियों को देख रही थी
तभी एक चाचा निकले और टोका—
‘‘क्यूँ खड़ी हो बिटिया…’’
मैंने कहा—
‘‘यूँ ही…’’
मेरे गाँव में
तालाब है
लड़कियाँ भी
लेकिन गाँव को आदत नहीं हैं—
पुलिया पर लड़कियों को बैठे हुए देखने की।
अंशिका निरंजन (जन्म : 1993) की कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। उन्होंने ‘तुलनात्मक भारतीय साहित्य’ में दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. किया है। उनसे anshikaniranjan2407@gmail.com पर बात की जा सकती है।
प्रभावशाली कविताएं, कवयित्री को हार्दिक बधाई