कविताएँ ::
गीतांजलि अग्रवाल

गीतांजलि अग्रवाल

काव्य-तत्त्व-चिंतन

मैंने देखी एक कविता नई-नई फूटती हुई गमले में
मैंने सुनी एक कविता पक्षियों के कलरव में
मैंने सूँघी एक कविता गरम सरसों के साग में
मैंने चखी एक कविता तिलकुट और गुड़धानी में
मैंने स्पर्श की एक कविता आँख-मिचौली में।

स्त्री-इच्छा

जीवनचक्र के अलग-अलग कालखंडों में
स्त्री की सृष्टि घूमती है
तीन पुरुषों के इर्द-गिर्द।

इनमें से दो को वह मानती है ईश्वर
और तीसरे से चाहती है—
मनुष्यता!

बे-होश

एक शाम मैंने देखा था
सूरज को पानी में डूबते हुए

वह अब तक वापस नहीं लौटा है

अब भी वक़्त है
आसमान में एक नाव चलाई जाए
बादलों का ढक्कन खोल
पानी के कुछ छींटे उसके ऊपर मारे जाएँ
उसकी पीली क़मीज़ का कॉलर झकझोर
उसे होश में लाया जाए

वह अब तक वापस नहीं लौटा है।


गीतांजलि अग्रवाल की कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। उनका संक्षिप्त परिचय उनके ही शब्दों में यह है :

जन्म : 1985
जन्म स्थान : मथुरा, उत्तर प्रदेश
शैक्षणिक योग्यता : B.Ed, M.SC, M. Phil( chemistry)
(M. SC, M.Phil में गोल्डमेडलिस्ट)

अध्ययन और अध्यापन दोनों में ही विशेष रुचि रही है। वर्तमान में आधुनिक गृहिणी की भूमिका और दायित्व का निर्वहन कर रही हूँ।

ई-मेल : gitanjaliagarwal@gmail.com

1 Comments

  1. प्रमोद सितम्बर 6, 2022 at 6:10 अपराह्न

    सुन्‍दर कव‍िताएँँ हैं।

    Reply

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