कविताएँ ::
गोविंद निषाद

गोविंद निषाद

आज़ादी का सूनापन

आज़ादी का अमृत महोत्सव है
सूनी है वह‌ इमारत
जिसमें किया गया था
आज़ादी का साक्षात्कार
सज गई हैं
शहर की सभी इमारतें
बड़े-बड़े झंडों और लाइटों से
उनको भी सजाया गया है
जहाँ लिखे गए फ़ैसले
कोड़े और फाँसी लगाने के
आज़ादी के रणबाँकुरों के ख़िलाफ़
जहाँ बनाई गई नीतियाँ
देश को ग़ुलामी में जकड़ने के लिए
लेकिन सूना है आनंद भवन
जहाँ किया जाता था
आज़ादी का साक्षात्कार
यह सूनापन अमृत में
विष लगता है
यह विष ही आज की नियति है।

आज़ादी के मूल्य

माइक पकड़े
एक बूढ़ा बोल रहा है
पड़ गई हैं झुर्रियाँ—
उसके चेहरे पर
धँस गए हैं—
उसके गाल
चेहरे पर सफ़ेद लंबी दाढ़ी है
गंभीर है उसकी भाव-भंगिमा
वह‌ सुना रहा है आज़ादी के मूल्य
बता रहा है आज़ादी के फ़लसफ़े
बड़ी ही तल्लीनता से
उसकी आवाज़ में एक कसक है
वह बार-बार बोले जा रहा है
आज़ादी का मतलब
जो आज बेमतलब होते जा रहे हैं
वह टटोल रहा है
युवा स्मृतियों को
जो उसने सँजोई थीं
आज़ादी की लड़ाई में
कि उसे उम्मीद है
एक दिन यह पीढ़ी भी समझेगी
आज़ादी के मूल्य
बूढ़े ने देखा एक युवा
उसकी बातों से बेख़बर
मशग़ूल है अपनी आभासी दुनिया में
उस आभासी दुनिया में
जहाँ आज़ादी का मतलब
नारे लगाना और झंडा फहराना है
यह देखकर बूढ़े की आँखों से आती चमक
एक घने अँधेरे में खो गई।

नदी में इतिहास

आज़ादी की स्मृतियों में
हरीश खोज रहा है नदी को
वह लगाता है डुबकी गंगा में
तैरता है सती चौरा घाट पर
जहाँ दर्ज है भोला केवट के कारनामे
वह चहक उठता है
जुब्बा साहनी के क़िस्से सुनकर
खोजता है किसी झूरी बिंद को
जिन्होंने उतार दिया था फिरंगियों को मौत के घाट
वह नदी की तह में उतरना चाहता है
जहाँ मिल सके स्मृतियों के अवशेष
जो समा गए नदी में फिरंगियों की नाव के साथ
उन नावों की स्मृतियों को जोड़कर
वह निर्मित करता है एक इतिहास का पुल
जो आज़ादी की लड़ाई में उसका हिस्सा है।

चरवाहा

इतिहास की मेढ़ पर बैठा चरवाहा
चरा रहा है गायों और भैंसों को
जिसे वह लाया है जमींदार की बरदऊर से
जमींदार उसे बुलाता है किसी बेढंगे नाम से
न आने पर देता है गालियाँ
वह जोतता है लाला का खेत
बदले में पा जाता है दो छटाक अन्न
जिसे वह समझता है अमृत
एक दिन
इतिहास ने उससे पूछा—
तुम्हारी आज़ादी के मायने क्या हैं?
जमींदार का नाम लेकर तोड़ दी उसने लाठी
इतिहास डरकर सरपट भागा
उस तरफ़
जहाँ कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था।


गोविंद निषाद हिंदी की नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक हैं। उनसे और परिचय तथा ‘सदानीरा’ पर इस प्रस्तुति से पूर्व प्रकाशित उनकी कविताओं के लिए यहाँ देखें : कुछ लोगों के नदी पर आने से

4 Comments

  1. शनि गौतम अगस्त 16, 2022 at 6:25 पूर्वाह्न

    बहुत बेहतरीन कविता लिखी है आपने सर।

    Reply
    1. Brijesh Kumar vidrohi अगस्त 16, 2022 at 11:12 पूर्वाह्न

      शानदार गोविंद! बधाई हो ऐसे ही लिखते रहो।

      Reply
  2. Azad अगस्त 17, 2022 at 7:43 पूर्वाह्न

    बहुत ही बेहतरीन लिखे हैं भईया।।

    Reply
  3. RAMA SHANKER SINGH अगस्त 19, 2022 at 7:00 पूर्वाह्न

    बहुत अच्छा लिखा गोविन्द आपने। अंतिम वाली कविता मुझे बहुत अच्छी लगी

    Reply

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