कविताएँ ::
जोशना बैनर्जी आडवानी

जोशना बैनर्जी आडवानी

‘अ’ से बहुत सारे ‘अ’

आँखें अँजवाई1आँखों में काजल या सुरमा लगवाना। माँ से कितनी दफ़े
आँखों में अटी थी एक आकर्षक दुनिया
अनुमोदन2समर्थन। नहीं रहा पिता का जिन कार्यों के लिए
अकिंचन उन कार्यों में गलता रहा जीवन का आकर्षण
अंधकारमय समय में अपने ओष्ठ पर नहीं रखने दिए किसी को ओष्ठ
अजल ही किए कई उपवास
अमूमन ही छुट्टी वाले दिन गिलोय की तरह चढ़ता रहा समय
अनत3ना झुका हुआ, सीधा। रहने का प्रयास किया हर दिवस
अकारण मुस्कुराती रही सबको देखकर
अमुक्त ही रही जीवन की अमृदुता से
अंधकाराच्छन चलने का अभ्यास किया
अवदाह4भीषण ताप। में खोजे वृक्ष

अनुकांक्षित है एक दिवस जिसमें किसी का दख़ल न हो
अल्पावकाश मिले नौकरी से
असज्जित ही रहे कमरा
अयाचित5बिन माँगा। ही मिल जाए प्रेम
अयोमार्ग6रेलमार्ग। कर सकूँ कई यात्राएँ अकेले ही
अतुष्टि7अप्रसन्नता। में चीज़ें टूटें तो उन्हें टूटने दिया जाए
अलुब्ध रहूँ संसार की अल्लम-गल्लम चीज़ों से
अवश होकर न लेनी पड़े रोज़ ली जाने वाली औषधियाँ
अशंकित रह सकूँ एक पूरे दिन

अंजस8सरल। जीवन की कामना में
अंशतः
अकृतार्थ हो रहें हैं हम
अक्षम, अगतिक, अचक्के ही
अटके रह जाएँगे हम
अमनुष्य हो कर देखेंगे घटनाएँ
अमोल जीवन को खो देंगे एक दिन

अठोतरी9एक सौ आठ मनकों की माला।

आठ सहेलियों में चर्चा का विषय था कि अश्रु बहकर कहाँ चले जाते हैं
पहली सबसे बड़ी उम्र की लड़की ने कह दिया नीलोत्पला10छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी जिसे महानंदा नाम से भी जाना जाता है। में जाकर मिल जाते हैं
सहसा किसी ने पूछा अनुकांक्षाएँ जो पूरी नहीं होतीं वे कहाँ शरण पाती हैं
दूसरी लड़की जिसके पिता धमतरी में पत्थर काटते थे कह उठी सिहावा11रायपुर के समीप धमतरी जिले में एक पर्वत। में जम जाते हैं
जब पूछा गया कि पीड़ा में भी मुड़ जाने की लचीली कला देह के किस अंग में है
गौना हुआ था जिस तीसरी लड़की का धीमें स्वर में बोली जाँघों में
हम सब ताकते रह गए उसे
चौथी लड़की जो कुम्हड़ा12काशीफल। सिर पर रखकर चली आई थी
बोली जब बना चुकी होऊँगी चूल्हे में अपनी देह झोंककर तरकारी-रोटी
खा लेंगे सभी
पर मेरी देह की गंध से स्नेह नहीं करेगा कोई
पाँचवीं लड़की की कामना थी कि वह ऐरावत13इंद्र का हाथी। की सवारी करे
ऐसा कह देने भर से ही सबने उसकी ख़ूब खिल्ली उड़ाई
अल्लम-गल्लम बकते रहे सब
छठवीं लड़की अंधी थी
माँ-बाबा मर चुके थे
कहने लगी कि पता नहीं कौन उसकी छाती मसल देता है जब तब
गंध से पहचानती है तो दादी डाँटकर समझा देती है कि
चाचा के बारे ऐसा नहीं कहते पाप लगता है
दंड मिलेगा
उसकी आँखों में झोंक दिया गया था दंड-विधान
सातवीं लड़की को ख़ूब पढ़ाई करनी थी
देश-दुनिया घूमना चाहती थी
अजायबघरों पर किताब लिखना चाहती थी
एक घर ख़रीदेगी परिवार के लिए अच्छी नौकरी लगने पर
अभी प्रतीक्षा में है
पिता ने कन्या छात्रवृत्ति योजना में फ़ॉर्म भरा है
आठवीं लड़की सोच रही है उसे क्या कहना चाहिए
किस विषय पर बात करे
यकायक उठकर सबको गले से लगा लेती है
आठ सहेलियाँ खिलखिलाकर हँस देती हैं

आठ लड़कियों के आठ दुःख
आठ सौ लड़कियों के होंगे आठ सौ
और इस तरह जितनी लड़कियाँ उतने दुःख
किस अठोतरी में इतनी दिव्यता जो जप भर लेने से मिट जाएँ इनकी पीड़ाएँ
आठ लड़कियों के लिए एक सौ आठ मनकों की एक अठोतरी
निर्रथक है
निर्रथक है अठोतरी

गप्प

वे काम निपटाकर आए हैं
समय हाथ पर रखकर
हाथ पर रखे समय को
त्यौरियाँ दिखाते हुए वे
किन्हें दाग़ देंगे
किन्हें करेंगे नग्न

औरतें, आदमी, नेता, युवा,
मोदी, ट्रंप, आलिया, करन, कंगना, कवि
साँस, ननद, नर्तकी कोई या रिया चक्रवर्ती

उन्हें जिनसे वे ईर्ष्या रखते हैं
गप्प करेंगे गप्प
गपेंगे भरी दुपहरी भर
गप्प से खा जाएँगे उनकी शालीनता
गप्प में तैरेंगे, डूबेंगे, उभरेंगे

आलापिनी

मैं अमला शंकर की अपूर्णनीय क्षति को नहीं भर सकती
मैं किताब के पन्नों से पंखा झलते हुए बिहुला की कथा सुना सकती हूँ
मैं क़तई नहीं बन सकती जलधर सेन जैसी पत्रकार
मैं सुबह तक धागा कात सकती हूँ और सुना सकती हूँ चंडीदास की प्रचलित कविताएँ
मैं हेमेंद्र बरूआ के चाय बागानों में से एक बागान ख़रीदूँ
इतना धन नहीं मेरे पास
मैं गृहदाह, पल्ली समाज, देना-पावना और चंद्रनाथ पर बहुत कुछ कह सकती हूँ
मैं वेदांतवादिनी नहीं
मैं गार्गी का अवतार नहीं ले सकती
मैं गर्ग संहिता के गोलोका कांड से देवर्षि नारद और मिथिला नरेश के बीच का संवाद सुना सकती हूँ
मुझे त्रिपिटक ग्रंथों का ज्ञान नहीं
मैं मोहिनीअट्टम की भाव-भंगिमाओं के विषय में लगातार चार घंटे बोल सकती हूँ
मैं देश-दुनिया नहीं घूमी
मैं मिस्र, असीरिया, बेबीलोनिया, पर्शिया के इतिहास से जुड़े तथ्य बता सकती हूँ

मैं समय में पीछे जाकर
आम्रपाली और अजातशत्रु को छिपकर देखना चाहती हू्ँ
जासूसों के बारे में सोचती हूँ तो माताहारी के बारे में बहुत कुछ जानना चाहती हूँ
मैं भवभूति के पास बैठूँ दिन के दो पहर
ऐसा चाहती हूँ

मुझे देखते ही सारी गौरेयाँ आ जाएँ मेरे पास
मेमने सारे खेलने आया करें मेरे घर
बिल्लियाँ कभी भी मेरे कँधों पर आकर बैठ जाएँ
मैं हारिल पक्षी की तरह थाम सकूँ किसी ख़ास को
मैं पैदा होने वाले सभी बच्चों को सिकुड़ती हुई धरती का नक़्शा थमा दूँ
मेरे दुःख की जगह पर कोई महात्मन् नहीं बैठा
वहाँ बैठी है माहवारी के ख़ून में पहली बार लिपटी एक भयभीत लड़की
मेरे जूते सिल्विया के घर तक नहीं जा पाते
मेरी आँखों में मेरे माँ-बाबा बच्चों की तरह उछलकूद करते हैं आए दिन

मेरे साधारण से जीवन की अति साधारण आलापिनी
बज उठती है जब तब
मेरा मनोविनोद करती हुई कहती है मुझसे—
दुखियारी नहीं आलापिनी बनो

जोशना बैनर्जी आडवानी हिंदी की नई पीढ़ी से संबद्ध कवयित्री हैं। उनकी कविताओं की पहली किताब ‘सुधानपूर्णा’ से शीर्षक से प्रकाशित हो चुकी है। उनसे और परिचय तथा ‘सदानीरा’ पर इस प्रस्तुति से पूर्व प्रकाशित उनकी कविताओं के लिए यहाँ देखें : हे देव, मुझे घने जंगल की नागरिकता दो!

6 Comments

  1. राजकुमार सितम्बर 11, 2020 at 10:19 पूर्वाह्न

    बेहद खूबसूरत रचनाएं ❤️

    Reply
  2. राजकुमार सितम्बर 11, 2020 at 10:21 पूर्वाह्न

    बेहद खूबसूरत रचनाएं ❤️
    अठोतरी सबसे मार्मिक लगी।

    Reply
  3. Geeta gairola सितम्बर 11, 2020 at 3:00 अपराह्न

    जोशना हमेशा मुझे चकित कर देती है।उसका शब्द चयन में रिदम होता है,बंगला भाषा।की को जो मीठी लय होती है वो पाठक को रसमय कर्नदेती है।कविता की गूंज देर तक ध्वनित होती है।

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  4. सीमा सिंह सितम्बर 11, 2020 at 3:13 अपराह्न

    बेहद प्रभावशाली कविताएँ

    Reply
  5. Parul bansal सितम्बर 13, 2020 at 7:02 पूर्वाह्न

    अठोतरी आपकी बेमिसाल रचना लगी मुझे

    Reply
  6. आनंद पचौरी सितम्बर 20, 2020 at 11:22 पूर्वाह्न

    आवाक कर देने वाली कविताएं।भाषा की गहनता विलक्षण है।लिंक पर मिली सभी रचनाएँ अद्भुत भाषा शैली और गहरे चिंतन की अभिव्यक्ति हैं।बहुत शुभकामनाएं।सहज सरल प्रवाह मय लेखनी सदा ही गतिमान रहे। जुग जुग जिओ।

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