कविताएँ ::
पार्वती तिर्की
छोटानागपुर के जंगल-पठारी अंचलों में निवास करने वाले कुड़ुख आदिवासी समाज में क़िस्सागोई प्रचलित है। कुड़ुख पुरखे पृथ्वी पर अपने विकास की कहानी कहते हैं। वे अपनी संस्कृति के निर्माण की कहानी कहते हैं। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ—‘ख़ेख़ेल’, ‘माख़ा’ और ‘तोकना’—कुड़ुख आदिवासी समाज में प्रचलित कहानियों का ही आधार लिए हुए हैं।
ख़ेख़ेल
एक
‘जलचर हमारे अगुवा हैं’—
ऐसा कहते हुए
पुरखों ने
एक लंबी कहानी
सुनाई—
धरती की रचना के क्रम में
सबसे पहले कछुआ
समुद्र के अंतस्तल पर गया
और अपनी पीठ पर
मिट्टी लादकर
ऊपर आया
फिर
केकड़ा गया
और अपने आठ हाथों से
मिट्टी को उठाया
अब जोंक की बारी आई
उसने अपने पेट में
मिट्टी भरी
और ऊपर लाकर
उगल दी—
ऐसे बनी ज़मीन
और पहाड़!
दो
इसके बाद
मनुष्य ने ज़मीन को
वर्षों तक
जोतकर बनाए
खेत!
और
पहाड़ को
वर्षों तक
सींचकर उगाए—
केंवरा के फूल!
तीन
केंवरा के फूल से
जंगल महक उठे
और
इससे आकर्षित होकर
जंगलों में
दईत आए!
चार
फिर
खेत के समीप
मनुष्य ने—
चालाटोंका बनाया
चालाटोंका से
दईतों से संवाद किया
अब जंगल में
दईतों का राज्य हुआ!
और
टोंका, खेत और ड़ाँड़ में
मनुष्यों का राज्य हुआ।
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संदर्भ :
• ख़ेख़ेल : धरती
• केंवरा : जंगली फूल
• दईत : अदृश्य शक्ति
• चालाटोंका : खेत-ड़ाँड़ के समीप खुला क्षेत्र निश्चित किया जाता है, जिसे चालाटोंका कहा जाता है। कुड़ुख आदिवासी यहीं से देव-भूत से संवाद करते हुए संतुलन स्थापित करते हैं।
• राज्य : क्षेत्र
• टोंका : छोटे पठारी भूभाग
• ड़ाँड़ : मैदानी क्षेत्र
माख़ा
जब मनुष्य
खेत, टोंका और ड़ाँड़
बनाने में
अनंत दिनों तक
जुटा रहा,
अनंत दिनों की
थकान को ढोए रहा,
उसने धर्मेश से
विनती की!
तब
धर्मेश ने
उनको ‘रात’ दिए!
फिर मनुष्य रात में सोए
और दिन में खेत कोड़े!
~~~
संदर्भ :
• माख़ा : रात
• धर्मेश : कुड़ुख आदिवासियों का देवता ‘सूर्य’
तोकना
आदिवासी नृत्य की उत्पत्ति संभवतः ऐसे हुई—
एक
रात भर के
आराम के बाद
मनुष्य जोड़ा ने
साथ मिलकर
खेत कोड़े
और तुम्बा रोपे
उसने ड़ाँड़ में
मड़ुवा और जटंगी बोए
फिर उस जोड़े ने
मड़ुवा से
हँड़िया बनाया
हँड़िया की मीठी सुगंध ने
प्रेमी को
गीत गाने के लिए
आतुर किया!
उसने गीत गाते हुए
अपनी संगी के जूड़े में
जटंगी के फूल खोंसे
प्रेम की रीझ ने
प्रेमिका को
नृत्य करने के लिए
आतुर किया!
फिर उन्होंने साथ मिलकर
गीत गाए और नृत्य किया!
दो
इसके बाद
प्रेमी जोड़ा
नृत्य करते हुए—
हँड़िया और जटंगी फूल के लिए
धरती को
हमेशा नतमस्तक हुए!
तीन
इसके बाद मनुष्य
सामूहिक रूप से
नृत्य करते हुए—
फ़सलों के लिए
पृथ्वी को
हमेशा नतमस्तक हुए
फिर वे समूह में
एक साथ
नृत्य करते हुए—
शिकार और बारिश के लिए
पृथ्वी को
हमेशा नतमस्तक हुए।
~~~
संदर्भ :
• तुम्बा : एक प्रकार की सब्ज़ी
• मड़ुवा : मोटा अनाज
• जटंगी : एक प्रकार का फूल
• हँड़िया : आदिवासियों का पेय पदार्थ
• तोकना : नाचना
नकदौना चिड़िया : एक
आसमान में उड़ते हुए
नकदौना गीत गा रही थी
उसके गीत की
मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही थी—
पुईं चे चे…
पुईं चे चे…
उसके इस गीत को सुनकर
सभी समझ गए…
कि
बारिश आने में अभी देरी है!
~~~
संदर्भ :
• आदिवासी कई चिड़ियों की भाषा जानते हैं। नकदौना हरे रंग की लंबी पूँछ वाली चिड़िया है। नकदौना हर बारिश से पहले अपना गीत संदेश भेजती है।
नकदौना चिड़िया : दो
एक
नकदौना
घर के आँगन पर
घूम-घूम कर
और
ख़ूब चहक-चहक कर
आसारि राग के गीत
गा रही थी —
पुईं चे चे…
पुईं चे चे!
कह रही थी—
बारिश होने वाली है,
ख़ूब झईड़ है!
दो
नकदौना के आसारि राग के
गीत के बाद
ख़ूब बारिश हुई!
इसके बाद कुड़ुखर ने
अपनी भाषा में
बारिश के होने को कहा—
‘चेंप पुईंयीं’
बारिश हुई!
बारिश के होने पर
जंगल के फ़ूल
झकमकाकर खिले
तब उन्होंने अपनी भाषा में
फूलों के खिलने को कहा—
‘पूँप पुईंदआ’
फूल खिले!
इस तरह कुड़ुखर और नकदौना ने
संवाद की एक साझी भाषा
निर्मित की,
और
आसारि के गीत
साथ में गाए।
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संदर्भ :
• आदिवासियों को चिड़ियाँ और पंछियों की गतिविधियाँ बदलते परिवेश की जानकारी देती है। नकदौना अगर आसमान में गीत गाती है, तो बारिश देर से शुरू होने के संकेत होते हैं। यदि नकदौना धरती के क़रीब आकर गीत गाती है, तो यह आदिवासियों के लिए ख़ूब बारिश का संदेश/संकेत होता है।
• आसारि राग : कुड़ुख आदिवासी गीत अलग-अलग राग में गाए जाते हैं। आषाढ़ के मौसम में गाए जाने वाले राग को ‘आसारि राग’ कहते हैं।
• झईड़ : बारिश
• कुड़ुखर : कुड़ुख आदिवासी समूह के लोग
लकड़ा
पुरखे गोत्र उत्पत्ति की कई कहानियाँ सुनाते हैं—
हे भई!
तुम क्यों मेरा रास्ता रोकते?
मैं तुम्हारा ही
भाई हूँ —
जंगल से गुज़रते हुए
बाघ से सामना होने पर
किसी ने ऐसा कहा!
फिर
बाघ ने उसका रास्ता
कभी नहीं रोका
उस दिन से
वह मनुष्य और बाघ
एक कुल के हुए।
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संदर्भ :
• लड़का बाघ को कहते हैं, यह कुड़ुख आदिवासियों का एक टोटेम अथवा गोत्र है।
सुकरा-सुकराइन
आसमान में सुकरा और सुकराइन तारे जब पास होते, तब कुड़ुख आदिवासी ब्याह के गीत गाते हैं—
एक
बारिश
चाँद
और
आसमान का अकेला तारा—
सुकरा!
मानो सभी
सुकरा के साथ
प्रतीक्षारत हैं।
दो
सुकरा तारा
हल्दिया रहा है,
हल्दी रंग का हो रहा है
ब्याह के लिए
अब वह तैयार है
आसमान का
सबसे चमकीला तारा—
सुकरा
सुकराइन तारे से
ब्याह रचेगा!
भिनसारिया
दोनों पास होंगे
और
अब बेंजा राग के
गीत गाए जाएँगे।
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संदर्भ :
• सुकरा : आसमान में सबसे तेज़ चमकने वाले तारे का नाम
• सुकराइन : तारा का नाम
• भिनसारिया : सुबह
नोट : ‘ख़ेख़ेल’ और ‘माख़ा’ शब्द कुड़ुख भाषा से है। इन शब्दों में ‘ख़’ का उच्चारण अधिक दबाव देकर किया जाता है। अतः देवनागरी लिपि में इन शब्दों को लिखने पर नुक़्ता का प्रयोग किया गया है।
पार्वती तिर्की की कविताओं के प्रकाशन का ‘सदानीरा’ पर यह प्राथमिक अवसर है। वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से ‘कुड़ुख आदिवासी गीत : जीवन राग और जीवन संघर्ष’ विषय पर शोधरत हैं और हाल ही में राँची विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़सर के पद पर चयनित हुई हैं। उनसे ptirkey333@gmail.com पर बात की जा सकती है।
पारंपरिकता से परिपूर्ण ऐसी कविताओं की लगातार आवश्कता हिंदी साहित्य को महसूस हो।लगातार ऐसी कविताएं लिखी जाती रहें जिससे साहित्य में प्रतिनिधित्व बना रहे।
पार्वती को शुभकामनाएं
अच्छा लगा पढ़ कर।
पार्वती तिर्की की कविताएँ जमीन से जुड़ी कवितायन हैं।
Ek acha experienced reality fact baato ko bahut he saral
Spast apne ye likha hai.. I like it…
Aapke jaisi Apki Kavitaye bhi natural hain, bahut accha laga man khil utha mera…keep it up..