कविताएँ ::
तापस
मैं बीच में खड़ा हूँ
मेरे पीछे भीड़ थी
और आगे हाईक्लास गाड़ियाँ
मेरे पीछे सफ़ेद था
मेरे आगे केसरिया
मेरे पीछे छूट जाने की परवाह थी
मेरे आगे कहीं छूट जाने जैसा कुछ भी नहीं था
मेरे पीछे था संघर्ष ही संघर्ष
मेरे आगे और आगे जाने की कुटिलता थी
मेरे पीछे हुकुम बजाना था
मेरे आगे अत्याचार करना था
मेरे पीछे से मेरे आगे तक बारह सौ किलोमीटर की रिक्तता थी
मेरे पीछे आँखों में कीचड़ था
मेरे आगे आँखों पर चश्मा।
तबीयत ठीक होने के उपलक्ष्य में
रास्ते में दिखा कंगारू
दरअसल नींद में
कुछ भी सुनाई और दिखाई नहीं देता
जब मैं नींद से लौटा और नींद ही में था तब तुम्हारी तबीयत के बारे में बाज़ार में खड़ी दो औरतें फुसफुसा रही थीं
गिलहरी भी औरतों के फुसफुसाहट पर कान लगाए थी
तुम्हें न तेज़ बुख़ार था
न ही तुम ठंड से काँप रही थी
फिर भी तबीयत तो ख़राब थी ही
हितैषी किराना की दुकान से काली मिर्च और फ़िटकरी की पुड़िया बँधवा रही थी तुम्हारी माँ जिसके कंधे पर बैठी थी वही गिलहरी,
जो ख़बर लायी थी तुम्हारे तबीयत ठीक न होने की
सुलभ शौचालय के ठीक सामने से दिख रही थी तुम्हारी माँ
गोला दीनानाथ की ओर पीठ किए दिख रखा था इमरान
इमरान अपने फ़ोन पर चिल्लाकर नौकरी छोड़ने की बात बार-बार दुहरा रहा था।
साइकिल अपने आप ख़ाली जगह को भर रही थी
गुरु प्रसाद मेडिकल का मालिक स्वस्थ सानंद अपनी दुकान का शटर उठाते हुए मुस्कुरा रहा था
ज़िला अस्पताल का कंपाउंडर स्ट्रेचर को किसी कार की तरह तेज़ दौड़ा रहा था।
तुम्हारे चौराहे पर भीड़ में नाला खोदा जा रहा है, तुम्हारी साँस अब बेहतर है
तुम्हारी माँ भीड़ से निकलकर कमरे तक पहुँचती है, तुम्हें देखकर वह इस तरह मुस्कुराती है, जैसे सालों पुराना घुटने का दर्द अब ख़त्म हो गया हो
बहरहाल तबीयत ठीक होने उपलक्ष्य में
मैं कविता भूल गया
और तुम भी सोचो की आगे की पंक्ति क्या हो!
1 बार मुस्कुरा 2
एक अंतहीन सिलसिला जिस पर रुकी हुई सारी गड़ियों के बीच लिखा जाना था
मेरे और तुम्हारे दूर होने के आकस्मिक क़िस्सों का सफ़ेद झूठ
या यूँ कह लो परछाईं में परछाईं
मुझे याद है की तुम अभी भी वही टूटा हुआ पुराना चप्पल पहनती हो जिस पर उतर चुके हैं तुम्हारे पैरों के निशान
सबसे सस्ता मेकअप तुम करती हो
तुम सुंदर को और सुंदर बनाने की क्रिया हो
बशर्ते मेरा होना एक भ्रम हो
और तुम्हारा मुस्कुराना सचाई।
घर
शहर का आदमी अपना घर पहचानता है
आसमान देखता है
यह समय किसी के कहीं भी चले जाने
और न लौटने की सचाई बन चुका है
घर के भीतर बहुत से लोगों का आना-जाना बंद है
बच्चा आँख बंद कर खोजता है खिलौने का घर
घर किसी खेल का अंतिम पड़ाव है।
लकड़ी
लकड़ी किसी भी काम आ सकती है
शमशानों पर जल रहे मृतकों की लाशों को जलाने के लिए ही नहीं
टूटी कुर्सी को बचाने के लिए भी!
मैंने दीवारों के भीतर अपनी आँखों से देखा है—
सूखी लकड़ी का तैरना
लकड़ी स्मृति में खड़ाऊँ बन जाती है
लकड़ी देती है दंड
लकड़ी पुलिस की लाठी भी है।
हृदय-सूत्र
छोटी दुर्घटनाओं का बड़ा क़िस्सा बनकर, या हल्की लाल चुनरी का पर्दा जिससे दीखता नई दुनिया का चरित्र
चौखट पर फेंका हुआ दयनीय शरीर
हाथों का कुंडा और हँसी की सिड़कनी
हरी तख़्ती पर रखा छोटा हाथ सेकता पैरों के पंजों को,
उल्टा लटका नाख़ून
माथे पर काला तिल मानो स्वर्ग की बिंदी
शहर का आधा रास्ता रुका हुआ है
भागता आदमी भीगती आँखें
होंठों पर पसीना
उस क्षण की प्रतीक्षा का आडंबर और पुराना खटिया।
नहीं
चौक है दुकान नहीं
मंदिर है गली नहीं
लोग हैं वादे नहीं
डिटेंशन सेंटर है असम नहीं
विरोध है दम नहीं
हिंसा है प्रेम नहीं
चश्मा है चंद्रमा नहीं
कोलाज है संस्था नहीं
भीड़ है दरार नहीं
घर है दीवार नहीं
क़ानून है आज़ादी नहीं
घास है पेड़ नहीं
नाला है नदी नहीं
झूठ है सच नहीं
ईर्ष्या है दया नहीं।
तापस की कविताएँ अब तक कम ही प्रकाशित हुई हैं, लेकिन प्रत्येक प्रकाशन के साथ उनके कवि में एक उल्लेखनीय विकास देखा जा सकता है। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : जीना और बुलेट पर प्रेमिका