कविताएँ ::
कुंजकिरण
ब्रह्ममुहूर्त
परिक्रमा करता हुआ चंद्रमा
प्रकाश में भींजती हुई रात्रि
हम दोनों के समक्ष रखा हुआ
रात्रि का अंतिम प्रहर
ठिठुरन उसकी कैसी लगती है?
मौन जी उठता है
देह कौंध जाती है
इसी समय जन्म लेते हैं देवता
इसी समय सागर निगल जाता है वसुधा को
इसी समय बोल उठते हैं जंगल
इसी समय खिलते है दुर्लभ ब्रह्मकमल
संजीवनी चमकती है किसी पर्वत पर
इसी समय होता है चमत्कार
इसी समय स्वीकार होती हैं प्रार्थनाएँ
मैंने आँखें मूँद ली हैं
मैं केवल भाँप पा रही हूँ तुम्हारी छाया
तुम्हारी गंध चमक उठी है मेरी पीठ पर
और मेरी रीढ़ पर रेंग रहा है
तुम्हारा कोई
अनुपस्थित-सा स्पर्श।
अभिलाषा
उसके होंठों पर धूप आकर बैठ गई
जहाँ मैं अपने सारे दु:ख रखकर आया था
दुनिया के इस कस्सेपन में
पानी के घूँट जैसे थे उसके होंठ
और मैं जन्मों का प्यासा
मेरे भीतर किसी कोने में अँधेरा पड़ा हुआ था
उसके छूते ही ब्रह्मांड के सारे तारे
वहाँ आकर जगमगाने लगते थे
उसी रौशनी में बरसों बाद एक फूल खिला
और मेरा विलाप उसकी गंध में मिलकर उड़ गया
बुद्ध-से शांत उसके होंठों पर
चाँदनी देर तक बरसती रही
ओस के बोसे जमते रहे
और मेरे भीतर का
एक-एक क़तरा पिघलता रहा
मैं समाप्त-सा बैठा हूँ उसके समक्ष
यह मैं किस संसार में हूँ?
जहाँ देवता साक्षी हैं मेरे समर्पण के
उसके होंठ हिले
तब जन्मा प्रकाश
दर्पण जैसी उसकी हँसी में
झलका जीवन
मेरी देह पर तैरता रहा एक स्पर्श
मेरे होंठों पर भी जन्म लेने लगे बोसे
मैंने देखा स्वयं को
पुनः जीवित होते हुए
प्रेम-प्रभात
सितंबर का सुनहरापन और
पुनः जीवित होता है
मेरे जागते हुए स्वप्नों का संसार
अधजगी-सी रातें और
अधजगे-से सवेरे
इसके बीच बेचैन-सा बैठा मध्य प्रहर
फूलते हुए गुलमोहर अपनी
पत्तियों में लिख भेजते हैं कोई संदेश
एकांत ओढ़े हुए कोहरे
सुनाते हैं कोई अनजान-सा गीत…
आज जागता हुआ चंद्रमा
कामनाओं का साक्षी है
धीरे-धीरे गुनगुनी आँखों की चमक
आँगन पर पसरने लगती है
स्मृतियों के बादल से ढक जाती है अंतरात्मा
रात्रि के प्रथम प्रहर में
उड़ान भरने को व्याकुल मन
दूर कहीं निकल जाता है
देखता है तारों का नृत्य
आकाश के अनेकों गहरे रंग
सुनता है ग्रहों और पिंडों का संगीत
समा लेता है अनंत गहराइयाँ अपने भीतर
दोनों हथेलियों के बीच प्रेम लिए
तैरते हुए ब्रह्मांड में
वह समाप्त कर देता है
रात्रि का दूसरा प्रहर
वह खोज रहा है अपना एक भाग
पर स्मरण रहे
भोर का होना बाक़ी है अभी
किरणों का गुलाल बिखरने ही वाला है
गुनगुनी धूप छिटकने ही वाली है
दोनों हथेलियों के बीच धूप का प्रकाश
रात की ओस के प्याले पिघलने लगते हैं
सवेरे की किरण के साथ वह लेता है खोज
अपना दूसरा भाग
वह खोज लेता है तुम्हें
तृप्ति
उसकी भौंहों को चूमते हुए
उसकी गर्दन पर गिन रहा हूँ
पसीने की बूँदें
उसकी नसों के रास्तों को समझता हुआ
अब उसके दाहिने कांधे पर ठहर गया हूँ
एक तिल है वहाँ
जैसे होता है कोई चौराहा
किसी रास्ते के बीच
मैं मुसाफ़िर हूँ
सुस्ता-सुस्ता कर आगे बढ़ता हूँ
एक-दो चौराहे और मिले इस बीच
आगे चलते-चलते मैंने
उसकी आँखों से चुनी कुछ सिसकियाँ
उसके माथे पर रखा धूप का एक टुकड़ा
उसकी पीठ पर बनाई कई लकीरें
उसकी हथेलियों पर लिखे कितने गीत
उसकी उँगलियों पर गिने न जाने कितने दिन
उसके होंठों पर गूँथी न जाने कितनी कविताएँ
और उसकी कलाइयों पर रखे
केवल दो मोगरे के फूल
मैं मुसाफ़िर हूँ
इस बार थोड़ा थका हुआ शायद
उसकी नाभि के पास एक चौराहा दिखा है
कुछ देर अब यहीं ठहरूँगा…
मेरी कल्पना और वास्तविकता के ईश्वर अलग-अलग हैं
मैं अपनी कल्पना
और अपनी वास्तविकता के मध्य
एक ढेले के ऊपर बैठा हूँ
एक छोटे लकड़ी के टुकड़े से
मिट्टी पर अपने अस्तित्व का चित्र बनाता हूँ
और धीरे से कल्पना की दिशा में
थोड़ा-सा खिसक जाता हूँ
मुझे याद नहीं आ रहा
मेरा चेहरा कैसा दिखता था
मेरी आँखों की पुतली का रंग क्या था
मेरी चमड़ी कैसी दिखती थी
क्या मैं कविताएँ लिखता था
इस अंतिम प्रश्न से एकाएक
सब कुछ धुंधलाने लगता है
मैं घबरा जाता हूँ
मेरा गला सूखने लगता है
मैं वापस ढेले के ऊपर
उसी जगह आ जाता हूँ
चित्र अब भी अपूर्ण है!
मैं आँखें बंद कर लेता हूँ
और एक चमत्कार घटता है
अचानक आसमान नीला
और साफ़ दिखने लगाता है
मेरी पुतलियों का रंग भूरा दिखने लगता है
मेरी चमड़ी में झुर्रियाँ दिखने लगती हैं
पत्तों के रेशे
ख़ून की धमनियों-से दिखने लगते हैं
मैं ओस की बूँदों को
मकड़ी के जालों में गिनने लगता हूँ
मैं अब देख पा रहा हूँ
चींटियों को एक क़तार में जाते हुए
अब सब कुछ स्पष्ट है
कुएँ के पास की काई
जैसे अभी-अभी जन्मी है
धीरे-धीरे यह युवा होगी
मेरी चमड़ी की तरह…
चित्र अब पूरा है
मेरी कल्पना और वास्तविकता के ईश्वर अलग-अलग हैं!
कुंजकिरण की कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। वह रायपुर (छत्तीसगढ़) की निवासी हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य और पत्रकारिता की पढ़ाई की है। पेंटिंग, शास्त्रीय संगीत, मॉडलिंग में उनकी रुचि रही है और उन्होंने इस ओर भी काम किया है। उनसे kunjkiran10@gmail.com पर बात की जा सकती है।