कविताएँ ::
सतीश छिम्पा

सतीश छिम्पा

प्यार और चुंबन

एक

मैं जो लिखता था
ग़ुस्से, प्रचण्ड आक्रोश और असहमति के काग़ज़ पर
बारूद, बम, पिस्तौल और गोलियों
और ख़ून की भाषा
अब, सहेजकर फूलों की भाषा
प्रेम कविताएँ लिखने लगा हूँ
सुनो उजले चेहरे वाली लड़की—
मैं तुम्हारे प्यार में हूँ!

दो

तुमने एक दिन कहा था
दुःख के हाथ लंबे नहीं होते
अवसाद लँगड़ा होता है
और मोहब्बत होती है
आकाश से भी अधिक विस्तृत
और
उसी दिन मुझे मोहब्बत की हथेली में
आकाश मुस्कुराता दिखाई दिया था।

तीन

बहुत मुलायम
गहरा
सघन पर होंठों के हल्के दबाव से लिया चुंबन
प्यार की गहराई को नापने का नहीं
इच्छाओं का मापक होता है।

चार

जिसने छुआ होगा इस धरती पर
सबसे सुंदर, मुलायम और तिलिस्मी स्त्री अधरों को
अपने होंठों से
पुरुष वह
दिनों तक रहा होगा
मद में मदमाता हुआ
नश्याई रंगों में रँगीजता पूर्ण पुरुष रूप में।

पाँच

धरती की सभी कलाओं में
हर एक काल और भूखंड में
मानवजनित सभी कलाओं में
महान है
चुंबन की कला
चुंबन इस सदी की सबसे प्यारी और महान स्थापना का नमूना है।

छह

इस काले अंधकार और वहशी दरिंदगी भरे दौर में चुंबन,
प्यार
और
आलिंगन
का
मापक
है—
भीतर के आदनी के जीने या मर जाने का।

सात

बहुत मुलायम
गहरा
सघन पर हल्का चुंबन
प्यार की गहराई को नहीं
नापता इच्छाओं को है।

आठ

जहाँ प्रतिबंधित हैं चुंबन,
तुम करो वहाँ आलिंगन, चुंबन और प्रेम
और प्रेम के गीत लहराकर उछाल दो—
हवाओं में….

नौ

चुंबन एक ख़ूबसूरत ज़रूरत है
प्यार में प्यार के लिए
दुनिया के सभी आशिक़ो,
तुम भर दो आसमान को
आलिंगनों की गरमास से
चुंबनों की ऊष्मा से रच दो
प्रेम का एक मौलिक महाकाव्य।

सतीश छिम्पा हिंदी की नई नस्ल से वाबस्ता कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे kumarsatish88sck@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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