गद्य कविताएँ ::
अंचित

अंचित

फ़्लैश फ़िक्शन : वस्ल के बाद फिर हिज्र के भी बाद

एक

विरह एकांत की चाह भी वैसे ही रखता है जैसे वस्ल की रखता है और नाउम्मीदी से वाबस्ता होने के बाद चाहों का तर्कसंगत लगना बंद हो जाता है।

मछलियों और झीलों के गाँव से आने वाले एक कवि ने मुझसे कहा था कि जब उससे प्रेम छूट गया, उससे कविता छूट गई।

जब कवियों के जीवन से कविता छूट जाती है तो उनके जीवन में क्या रह जाता है।

एक नॉवल में एक नायक ने कहा था कि प्रेम के लिए मरने से बेहतर कुछ नहीं। उसने पूरी किताब में यह नहीं कहा कि विरह में जीने से मुश्किल कुछ नहीं है।

ग़लत की मनुष्यता, सही के ईश्वरत्व से बहुत ऊपर होती है—एक भी दार्शनिक को नहीं जानता जिसने यह कहा हो।

फिर मैं कितना जानता हूँ।

दो तीन महीने तक कविता न लिखने और पढ़ पाने के बाद, मुझे लगा कि मर जाना चाहिए और एक सुबह साढ़े तीन बजे, एक सुसाइड नोट लिख कर, मैं नदी किनारे चला गया।

दो

जूलियन बॉर्ंज़ अपनी एक किताब में बार-बार कामू का कहा एक वाक्य दुहराते हैं :

आत्महत्या ही इकलौता सच्चा दार्शनिक सवाल है।

आप अज्ञातवास क्यों चाहते हैं?

अकेलेपन की तलब?

और शून्यता का नशा, मोहब्बत के नशे के बाद?

एक दिन में बीस-बीस सिगरेट फूँक लेने के बाद, यह सोचते हुए कि ज़िंदगी के तीस बरस में आप किसी के नहीं हुए—एक व्यक्ति के नहीं, एक विचारधारा के नहीं, एक ईश्वर के नहीं—क्यों नहीं हुए—यह विचार यहीं छोड़ देता हूँ।

कितने सारे ई-मेल्स में अँग्रेज़ी में आख़िरी पंक्ति लिखता था : “आई लुक फ़ॉर्वर्ड टू…” कुछ आगे है जो देख रहे हैं, कुछ आगे जिसका कोई अर्थ बनता है—कुछ। सही घेरों में निशान लगाएँ—मैं अस्तित्व शब्द लिखते-लिखते हिचकिचा जाता हूँ, कितना भारी शब्द है और हिंदी का कोई ऐसा शब्द नहीं जानता जिससे इसको लड़ा पाऊँ! अँग्रेज़ी का एक शब्द आता है—फ़्यूटिलिटी!

मुलाक़ात के मौक़े ख़त्म होते ही, सब स्थगित हो जाते ही, यही शब्द याद आता है, पर उसके स्तन चूमते हुए भी, उसकी साँस सूँघते हुए भी तो…

तीन

सकारात्मकता क्या होती है? और उम्मीद? ग्लास आधा भरा हुआ। जीवन संभावनाओं के नज़दीक। क्योंकि अंत में सब कुछ डोपामीन और दूसरे कैमिकलों के सहारे बताया जा सकता है। और यह कि जो तुम्हारे साथ घट रहा वह सिर्फ़ तुम्हारे साथ नहीं घटा। जिसको तुम अद्वितीय समझते हो, वह दरअसल मानक है।

सिर्फ़ एक प्रश्न पूछा जा सकता था—कलाकार फिर कला का क्या—जब त्रासदी भी तुम्हारी ख़ुद की नहीं, शोक तुम्हारा अकेले का नहीं फिर और सब कैसे सिर्फ़ तुम्हारा हो सकता है, फिर एकांत का क्या मतलब हुआ जो सदैव उपस्थित है, उससे अनुपस्थित को कैसे बचाओगे।

और मेरी समझ में आया कि मैं तुमको खोता जा रहा हूँ। और मैं इतना उदार नहीं कि तुमको हासिल किए बिना, तुम्हारी उपस्थिति से जूझता रहूँ।

एक पंक्ति का केंद्र दूसरी पंक्ति से टूट जाता है।

महसूस करने के दंभ और न झेल पाने के कष्ट के बीच फँसा हुआ हूँ।

विध्वंस भी कविता लिखने का कच्चा माल है।

चार

अकेलेपन में आप अपने जैसे शब्दों से टकराने की कोशिश करते हैं। बहुत कुछ है जो आप किसी से कहते रहे हैं। अब आप किससे कहेंगे। एक दिन आप अचानक दिखना बंद हो जाएँ आपको अच्छा लगेगा क्या? ये कितनी तुच्छ चाहें हैं और पूरा जीवन इसी से बना हुआ है। मुराकामी ने कहीं पूछा था कि लोग इतने अकेले क्यों हैं?

क्या मैं अपनी कुरूपता नहीं जानता था? बहुत रौशनी में मंच के बीच, दर्शकों के बीच, ख़ुद के ऊपर हँसता हुआ विदूषक होने की चाह रखना और उससे घबराना भी? अकेलेपन से नफ़रत भी करना और उसे चाहना भी? एक कमरे में बंद, बिना बोले, बंद फ़ोन, बंद इंटरनेट, अक्षरों से कहना कि वे तुम्हारे गले लगकर रोएँ? दुहरावों से ऊब जाने वालों के लिए दुनिया में जगह नहीं, अपने लिए न महसूस करना माँगना चाहिए, अपने लिए कविताओं से दूरी माँगनी चाहिए और फिर यह कि जो चाहता है आदमी, वही सबसे पहले छूट जाता है।

पाँच

नकारात्मकता कोई ख़ास शै भी नहीं। किसी तरह का शौर्य उसमें निहित नहीं। जितने खोखले उम्मीद के रिटहरिक हैं, उतने ही विष-बुझे नाउम्मीदी के बाण भी हैं। और फिर शोषितों और शहीदों में फ़र्क़ नहीं होता। जो भाषा तुम्हारे होने की परिचायक है, वह ख़ुद भी तो कहीं नहीं है।

रोने के लिए ग़ुसलख़ाने सही जगह हैं और यह ऐसा समय है कि आँसुओं के लिए हर व्यक्ति के पास आर्द्रता पर्याप्त है।

ऊब एक बीमारी का नाम है जो सुख के अंत में आपको लगती है।

यह भी समझिए कि आपके सुख का अंत जिस वजह से होता है, कभी भी आप पर उसका बस नहीं होता।

इसलिए अगर एक पंक्ति लिखूँ : “आई लुक फ़ॉर्वर्ड टू रिटर्न”, आप यह तो नहीं कहेंगे कि मेरी कविताओं में विरोधाभास है?

आख़िरी वाक्यों में क्या लिखता? कि नहीं जानता कि तुम्हारे रहते भी मैं आख़िरकार अकेला नहीं हो गया होता?

या यह कि पा लेने से ज़्यादा पा लेने और खो देने के बीच की संभावनाओं/आशंकाओं का नशा मुझे कभी ख़ुश नहीं रहने देता?

मैं निर्वासन की शिकायत कैसे करूँ जब वह वरदान बन मेरी तरफ़ आया है।

किसकी हत्या करूँ जब पूरा आत्म एक भाषा में बना है और वह भाषा अनुपस्थिति में ही ज़ाहिर होती है।

अंचित हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय तथा इस प्रस्तुति से पूर्व ‘सदानीरा’ पर शाया उनके काम-काज के लिए यहाँ देखें : भारत

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