कविताएँ ::
प्रेम वत्स

प्रेम वत्स

किसी नए की तरह

वह नया आदमी भी
जी लेगा जीवन को
जीवन की तरह

नहीं तो कर ले
समझौता वह भी
किसी नए की तरह

धार के पार जो गाम बसा है
क्या लगता है कब से है
और कितनी बार का पार है वह कि उसे
हो जाना पड़ता एक अविच्छिन्न धार के पार

वह भी चला जाएगा
धार पार एक दिन
देखना वह नया आदमी भी
रस्ता बदल लेगा एक दिन
रस्ता पहुँचने के पहले
गाम की तरफ़ तो नहीं पर
हाँ… किसी नए की तरह

यह अचानक से
दैव के बली हो जाने का क्षण है
राजसत्ता औ’ लोकवत्ता पै
धरम के भर गड़गड़ी मूतने का क्षण है
क्षण सुमिरने का नहीं
बिसुरने का है
हो सक्कै जितना जल्द

यह बौराने का क्षण है
ख़ासकर तब जब आपको
पावन बताई गई अमुक तारीख़ को
बंद कर दिया गया हो
एक बौराए गाँव के भीतर
किसी नए की तरह

सचेत नींद के दृश्य

जहाँ रुदन था
वहाँ डबडबाहट रही होगी
जहाँ पर तैरना लिखा था
वहीं पर फिसलन भी छिटकी होगी

पीठ अपनी सतह से ऊबड़-खाबड़
जा-ब-जा उठते-बैठते रहे होंगे
पेट में कँपाती रही होंगी
गुरगुराहट भरी दुश्वारियाँ
जिधर से निकलकर
बौखलाना होता होगा
वहीं पर उस लड़की का घर भी रहा होगा

घड़ी जब बजा रही होगी अंधकार
तब हो रहे नियमित निजी हमलों के बीच
संतुलन भरे मानसिक स्वास्थ्य के लिए
लठलठ चाय में नींद की दवा घुलाई गई होगी

नए रूस ने यूक्रेन के निपटारे से आजिज़ आ
तब तक ढूँढ़ लिया गया होगा
नए फारमोसे में बेमुरव्वत नया तालिबान

उस दिन जिसकी सुबह
इजराइल को जबड़न पकड़-धकड़
बिठाया गया होगा इराक़ के ब्याह बेदी पर
तभी गोल गुंबद फट पड़ा होगा

उसकी एक रात की गली में
हा-हुसैन से हौंक दिया गया होगा
पूरे के पूरे येरूशलम को नंगा

अँधेरी मुँडेर पर टँगा दिखता होगा
दो पाटे धरम-ग्रंथ के बीचोबीच
सूली पर ताज़ा खौलता ईरानी ख़ुदा

जहाँ बिलखा था
वहीं पर हमसाया दिखा होगा
जहाँ नमाज़ पढ़ी थी
वहीं पर अल्लाह मियाँ भी पड़े होंगे
(…कहने को जिनके प्यारे कर दिए गए होंगे वे सब)


प्रेम वत्स (जन्म : 2004) की कविताओं के कहीं प्रकाशित होने का यह प्राथमिक अवसर है। वह मधेपुरा (बिहार) से हैं और फ़िलहाल प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, कोलकाता में स्नातक (तृतीय वर्ष) के छात्र हैं। उनसे premvatsa39@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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