कविताएँ ::
सुजाता

सुजाता

बस थोड़ी देर सोना चाहती हूँ

नहीं, बत्तियाँ बुझाओ मत
पर्दे नहीं लगाओ
मत बंद करो दरवाज़े
थोड़ा शोर और थोड़ी रौशनी आती रहे
मैं बस थोड़ी देर ही सोना चाहती हूँ
ज़्यादा आराम नहीं चाहिए मुझे
एक लंबी सुकूनदेह नींद के बारे में सोच कर
डर जाती हूँ।

मैं सोई निश्चिंत और किसी बच्चे की आवाज़ न सुन पाई तो?
वह जो लौट रही है स्कूल से पस्त, निराश और बुख़ार में
जिसकी स्कर्ट पर लगा है ख़ून का धब्बा
वह जो लड़ कर लौटा है भुनभुनाता हुआ अपनी माँ के बारे में सुनकर अपशब्द
वह जो कचरा बीनते-बीनते नशे की लत में पड़ गया
जिसकी क्रूर आँखें और फैले हुए हाथ किसी को शर्मिंदा नहीं करते अब
वह जिसकी अभी चीख़ निकली है मणिपुर में
वह जो बिना बोले ताबूत में सो गया, जैसे नाराज़ था मुझसे
वह जो अभी फ़लस्तीन में रोई है अपनी माँ की मृत देह के पास
जिसके ख़ुद का सिर फट गया है बम-गोलों की वर्षा से
मलबे में दबने से पहले जिसका नन्हा हाथ उठा था मदद के लिए
उन्हें सुनने के लिए मैं कच्ची रखना चाहती हूँ अपनी नींद

काश मैं उनके लिए रख पाती थोड़ा भरोसा
इस दुनिया के प्रति
जो नष्ट हो रहा है
उनसे ज़्यादा मेरे मन में।

लेकिन यह सब मैंने अपने बारे में बना लिया
मैं न रहूँ तो इनमें से कोई भी बात मानी नहीं रखती
मेरे लिए भी
न कोख
न बच्चे
न नींद
न भरोसा
न यह कविता।

इसे पढ़ने से बेहतर हो कि आप पढ़ें बाआवाज़
दुनिया के सामने
एक घोषणा नफ़रत के ख़िलाफ़!
युद्ध के विरोध में
अपनी वचनबद्धता करें सिद्ध
या फिर एक प्रार्थना करें उस दुनिया के नष्ट हो जाने की
जो है बच्चों के ख़िलाफ़।

कुछ तो मेरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख1अहमद फ़राज़ का एक मिस्रा’

एक

प्रेम की हिचकियों के बीच
पानी का घूँट भी गुनाह है
तुम्हें ऐसे ही मर जाना चाहिए
अगर आँसू काफ़ी नहीं हैं
तर रहने के लिए।

दो

अक्सर ही करते हैं मर्द
स्त्रियों की तुलना
किसी से क़द की तुलना
किसी से रंग की
उन्हें सिखाया गया कि
क़द या रंग से क्या होता है?

सीखने वाले पुरुष अच्छे होते हैं
अगली बार वे बोले
अमुक का चेहरा तुमसे ज़्यादा है आकर्षक!

तीन

जिन्हें जुदाई बरदाश्त नहीं होती
लड़ लेते हैं जाने से पहले
जिन्हें बरदाश्त नहीं होती जुदाई
साथ रहते हैं और लेते रहते हैं बदला।

चार

मैंने कहा—
तुम कैसे हमेशा ही तैयार हो न
मुझे खोने के लिए!

उसने कहा—
तुम मुझे पाना क्यों नहीं चाहती?

पाँच

एक दिन हँसी ग़ायब हो गई
रात के आख़िरी पहर
अंदर से आवाज़ आई
Thou shalt love—
Thou shalt not kill—
ख़ुद से कहा मुझे प्यार करो
ख़ुद से कहा मुझे मारो मत।

छह

मैं फ़व्वारे के नीचे थी
प्यार की तरह बरस रहा था पानी

अब वह फ़व्वारे के नीचे है
मैं भरम में।

सात

मुझे भरम था
वह मेरी तलाश में आया
प्यास अक्सर डालती है
जानलेवा भुलावे में।

स्वप्न में बुद्ध

एक

मैं तुमसे चार क़दम पीछे थी
कभी दो मिनट पिछड़ गई तुमसे
आ ही रही थी
बस पहुँच ही रही थी।

एक सदी पीछे थी तुमसे
बुद्ध!

दो

हम एकांत में थे
एक मनोरम स्थान पर
मैं और बुद्ध

लताओं से खेलते हुए
बुद्ध ने कहा—
अगर मैं होता प्रेम में
इसी मिट्टी पर लिखता
तुम्हारे लिए कविताएँ

मैंने लाड़ से
उनके माथे पर गिरी लटें हटाईं
और कहा—
महान् लोग
कविताएँ नहीं लिखते।

तीन

बुद्ध ने कहा—
देखती नहीं दुनिया में कितना दुःख है!

मैंने कहा—
मिलकर बचाएँगे करुणा

बुद्ध ने कहा—
मैं बचाऊँगा तुम्हें दुःख से
तुम मुझे बचाओ।
मैं बचा लूँगा
सबके लिए करुणा।

चार

प्रेम का हमेशा
एक ही रूप नहीं रहता
प्रकृति की तरह
यह भी है परिवर्तनीय—
प्रवचन बाँचते बुद्ध ने कहा।

प्रेम के बाद बदल गया सब
अब मैं उन्हें
बिना प्रतिवाद किए
सुनती हूँ।

पाँच

वह आख़िरी रुदन था मेरा
जब बुद्ध ने कहा—
सब खाते हैं मेरी जान
तुम भी लटक जाती हो गले में

सँभालो भावनाएँ
बड़ी हो गई हो
और
मैं अब बड़ा हूँ।


सुजाता सुपरिचित-सम्मानित कवि-कथाकार-आलोचक और अध्येता हैं। ‘अनन्तिम मौन के बीच’ [कविता-संग्रह], ‘एक बटा दो’ [उपन्यास], ‘आलोचना का स्त्रीपक्ष’ और ‘विकल विद्रोहिणी : पंडिता रमाबाई‘ उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें हिंदी के पहले सामुदायिक स्त्रीवादी ब्लॉग ‘चोखेर बाली’ की शुरुआत करने का भी श्रेय प्राप्त है। उनसे chokherbali78@gmail.com पर संवाद संभव है।

1 Comments

  1. कैलाश मनहर जनवरी 28, 2025 at 2:44 अपराह्न

    बहुत अच्छी कवितायें

    Reply

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