कविता ::
ज़ुबैर सैफ़ी
एक पॉर्न फ़िल्म
दृश्य एक
दो शरीर एक दूसरे में सिमटे हुए हैं
और चहुँ ओर सीत्कार हो रही है
पट-पट के परेशान कर देने वाले
संगीत की धुन फ़ोन से आ रही है
आपके कवि ने अपनी पिस्तौल
हाथ में थामी हुई है
और आनंद से उसका मुँह
लगभग खुलने ही वाला है
दृश्य दो
आपका कवि अपने हेडफ़ोन की
उलझी हुई गाँठ खोल रहा है
बेचैनी में गाँठ नहीं खुलती
और उलझती जाती है
ये शरीर की बेचैनी है
वह अपनी पैंट खोलकर
अंडरवियर उतारने का प्रयत्न नहीं कर सकता
उसने समूची पैंट के साथ
लुथड़ी बना हुआ अंडरवियर उतारकर
फ़र्श पर फेंक दिया है
उसकी बेचैनी इन्कॉग्निटो ब्राउज़र पर लिख रही है—
इंडियन पॉर्न
आप पहचान गए होंगे
कि यह कवि भारतीय है
और आनंद के युद्ध के लिए
ख़ुद को तैयार कर रहा है
पाठकों से पूछते हुए—
क्या वे भी तैयार हैं?
दृश्य तीन
वह अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर
कोई लड़की तलाश रहा है
कवियों की ही तरह
जिसका शरीर देखकर
वह पिस्तौल से गोली दाग़ दे
और बूढ़े बैल की तरह हाँफता हुआ
अपने बिस्तर पर जा गिरे
और उसके बाद लड़की को
एक जुमला लिखे
आफ़्टर ग्लो से लरज़ते हुए—
यह महसूस कराने का शुक्रिया!
दृश्य चार
आपका कवि अधनंगा है
वह कविता में
एक ख़ूबसूरत बदन को बाँध रहा है
और साथ में टाँगों के बीच तकिया फँसाए
मरी हुई नली वाली पिस्तौल की नोक से
तकिये में सूराख़ बना लेना चाहता है
वह पायजामे में हाथ डालता है
मगर कोई तनाव नहीं
उसे ‘नामर्दी जड़ से ख़त्म, हर शनिवार मिलें’ के
विज्ञापन दिखाई दे रहे हैं
वह नहीं जानता है कि इस ‘तनाव’ का
उस ‘तनाव’ से क्या रिश्ता है
दृश्य पाँच
वह एक स्त्री के कमरे में है
चिपचिपाहट को जंघाओं पर धरे
बिस्तर पर बैठा
और अपनी साथी से
नज़र नहीं मिला सकता
तनाव से भी भारी चीज़
इस क्षण आँखें हैं
तनाव के चलते
लज्जित होने की घड़ी है यह
दीवार घड़ी बोल रही है
दो सेकेंड!
सिर्फ़! सिर्फ़!
दृश्य छह
एक वरिष्ठ कवि फ़्रेम के भीतर है—
कान पर फ़ोन लगाए
फ़ोन के दूसरी तरफ़
उसकी पोती की उम्र की नवोदित कवि है
वह कविता के रूप में उससे प्रश्न कर रहा है—
क्या पहना आज नव वसंत ने?
और पिस्तौल टटोल रहा है
इसके कुछ क्षण बाद वह सान लेगा पजामा
और तलाशेगा निम्न रक्तदाब की दवाई
दवाएँ रक्तदाब बढ़ा सकती हैं
मगर लज्जा नहीं
दृश्य सात
एक नए नगर में
कविता-पाठ के लिए
एक होटल में
कुछ कवि ठहरे हुए हैं
सब कवि चाहते हैं कि
उस शहर में रहने वाली
उनकी प्रशंसिकाएँ उनसे
होटल-रूम में मिलने आएँ
और वे लाभान्वित हो सकें
इसलिए वे नहा चुके हैं
और कमरे में इंतिज़ार करते हुए टहल रहे हैं
एक कवि बार-बार अपना फ़ोन निकालकर
चेक करता है
दूसरा कवि तेज़ डिलीवरी ऐप पर देखता है
तरह-तरह के निरोध
यूँ कविता का विरोध
एक नए नगर में प्रारंभ हुआ
दृश्य आठ
कवि नंगा है
ग़ुस्लख़ाने में साबुन के झाग में लिथड़ा हुआ
हाथ में पिस्तौल थामे
वह साबुन और जीवन-सत का रंग
एकीकृत कर देना चाहता है
पिस्तौल-नली को आगे-पीछे करने के क्रम में
वह आगा-पीछा भूल गया है
उसका दम फूल गया है
आँखें मूँदे वह पिछली कुछ घटनाएँ
याद कर रहा है
कुछ क्षण और!
बस! बस!
कुछ क्षण और
इस क्षण वह धरती का केंद्रीय भाव है
कुछ क्षण बाद वह लौट आएगा—
पुन: मनुष्यता में!
दृश्य नौ
कवि पिस्तौल की नली से
खींचातानी के बाद निढाल पड़ा है
उसकी साँसें पंखे की ऊँचाई भर की हो गई हैं
जंघाओं से निकल रही है गर्मी
वह पपड़ाए होंठों पर ज़बान फेरता है
यह कामुकता का संतुष्टि में परिवर्तन है
कवि जलीय रूप से प्यासा है
कवि को पानी चाहिए
संसार का पानी बह चुका है
दृश्य दस
कवि जीवित नीली फ़िल्म है
उसका जीवन भी
कविता भी
उसके काम भी
उसका लिखना-पढ़ना
सब मस्तिष्क से संभोग की कला है
यह दृश्य इस पॉर्न फ़िल्म का अंतिम दृश्य है
अब आप भी यहाँ पर स्खलित हो सकते हैं!
ज़ुबैर सैफ़ी की कविताओं के ‘सदानीरा’ पर प्रकाशित होने का यह दूसरा अवसर है। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखिए : शब्द और आशाएँ ख़ारिज हो चुकी हैं
कवि ने कविता ‘शूट’ की है। असल और असलहे की शिल्प युक्ति से बनी फ़िल्म — इसे कमसिन बुढ़ापा, शोर की सिसकी, चुप-चीत्कार, नंगी पतलून, ‘जीने’ पर जीवन, जैसी व्यंजनाओं के शीर्षनोटों के साथ भी देखा जा सकता है।
यह कविताएँ साहित्य-हिंदी परिसरों-चैट संसार और महानुभाव-प्रभावों के सिले गलीचे में सुराख कर रही हैं। सर्रीयल मन को सरकती हुई पतलून से ढाँकने वाले पुरुष की कामना, पीड़ा, उसका हरामीपन–सबकुछ है यहाँ। बधाई ज़ुबैर भाई को।